नैनीताल (उत्तराखंड): पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु मारखोर अब नैनीताल जू यानी चिड़ियाघर की शोभा बढ़ाएगा. अब नैनीताल आने वाले पर्यटक मारखोर का दीदार कर सकेंगे. दार्जिलिंग चिड़ियाघर से मादा मारखोर को नैनीताल चिड़ियाघर लाया गया है. फिलहाल, उसे स्वास्थ्य परीक्षण के लिए चिड़ियाघर में रखा गया है. जिसे अगले हफ्ते से दर्शकों के दीदार के लिए रखा जाएगा. पहले से ही एक नर मारखोर नैनीताल जू में मौजूद है. ऐसे में अब जू में इनकी संख्या दो हो जाएगी.
दार्जिलिंग चिड़ियाघर से लाया गया मादा मारखोर: नैनीताल के पंडित गोविंद बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान के रेंजर प्रमोद तिवारी ने बताया कि एनिमल एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत एक मादा मारखोर, एक जोड़ा गोल्डन फिजेंट, एक जोड़ा सिल्वर फिजेंट को नैनीताल चिड़ियाघर लाया गया है. नैनीताल जू के बायोलॉजिस्ट अनुज कांडपाल ने बताया कि मारखोर उच्च हिमालय क्षेत्र यानी लेह लद्दाख, भारत और पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है. इसके अलावा मारखोर पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु भी है.
चिड़ियाघर की बात करें तो भारत में मारखोर सिर्फ दो चिड़ियाघर नैनीताल और दार्जिलिंग जू में पाया जाता है. ऐसे में इनकी संख्या बढ़ाने को लेकर लंबे समय से नैनीताल और दार्जिलिंग जू के बीच लगातार पत्राचार की कार्रवाई चल रही थी. केंद्रीय चिड़ियाघर प्रबंधन से अनुमति मिलने के बाद बीती 10 मार्च 2024 को मारखोर की मादा प्रजाति को नैनीताल लाया गया है. दार्जिलिंग से लाई गई मारखोर के बाद नैनीताल जू में इनकी संख्या अब 2 हो गई है. क्योंकि, पहले से ही एक नर मारखोर यहां मौजूद था.
बेहद खतरनाक होता है मारखोर: नैनीताल चिड़ियाघर के बायोलॉजिस्ट अनुज कांडपाल बताते हैं कि हिमालय क्षेत्र में रहने के कारण मारखोर की शारीरिक और सींग की बनावट बेहद मजबूत होती है. मारखोर इतना शक्तिशाली होता है कि अगर किसी को सींग से मार दे तो उसकी जान जा सकती है. इसके अलावा बताया जाता है कि यह सांपों को भी अपने दांतों से चबा डालता है.
क्रैपा प्रजाति से ताल्लुक रखता है मारखोर: मारखोर एक जंगली बकरे यानी कैप्रा प्रजाति है, जो खासकर दक्षिण एशिया या मध्य एशिया का मूल है. मारखोर पाकिस्तान, भारत, काराकोरम रेंज, अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों और हिमालय में पाया जाता है. इनके सींग बकरों की तरह होते हैं. जबकि, उनका वजन वजन 110 किलो तक हो सकता है. साल 2015 से मारखोर को आईयूसीएन (IUCN) रेड लिस्ट में निकट संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध किया है.
नैनीताल जू को जानिए: बता दें कि साल 1984 में नैनीताल जू को स्थापित करने की कवायद शुरू की गई थी. जिसे साल 1995 में पर्यटकों के दीदार के लिए खोल दिया गया. पूरे 11 एकड़ में फैला नैनीताल जू समुद्र तल से करीब 2100 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है. जिस वजह से इस जू को उत्तर भारत का एकमात्र हाई एल्टीट्यूट जू माना जाता है. जू में विभिन्न प्रजातियों के 231 वन्यजीवों को संरक्षित किया गया है. जिसमें 33 प्रजातियों के 95 सुंदर पक्षी भी शामिल हैं.
वहीं, इन वन्यजीवों के दीदार के लिए रोजाना सैकड़ों पर्यटक यहां पहुंचते हैं. नैनीताल जू के कई प्राणी अपनी औसत उम्र भी पार कर चुके हैं. वहीं, कुछ की पहले ही मौत हो जाने के कारण प्राणियों के जोड़ों का अभाव बना हुआ है. जिसे देखते हुए अब जू प्रबंधन कुछ और प्राणियों को लाने की कवायद में जुट गया है.
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