पटना : चुनाव में एक-एक वोट का महत्व होता है. यह एक वोट किसी को ताज पहना सकता है, या फिर वह एक वोट न मिलने से किसी के ताज पहनने का सपना अधूरा रह जाता है. लोकतंत्र के लिए चुनाव को महापर्व कहा गया है और इस महापर्व में एक-एक वोट की अहमियत होती है. इसी अहमियत को लेकर चुनाव जैसी बड़ी प्रक्रिया होती है. चुनावी प्रक्रिया को लोकतांत्रिक देश में अपनाया जाता है. ताकि जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता का सेवक चुना जा सके.
'पापी पेट की वजह से..' : इसको लेकर कई सालों से राजनेता अपने-अपने क्षेत्र में वोटरों को रिझाने की कोशिश भी करते हैं. हालांकि बिहार में एक ऐसा बड़ा तबका है, जिसे राजनेता या फिर चुनावी प्रशासन भी नजरअंदाज कर देता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के उन प्रवासी वोटरों की जो यहां मतदाता तो हैं लेकिन पापी पेट की वजह से वह यहां वोट देने नहीं आते.
45 लाख 78 हजार वोटर बिहार से बाहर : एक आंकड़े के मुताबिक बिहार के बाहर लगभग 45 लाख 78 हजार मजदूर काम करते हैं. यानी कि प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र से लगभग 1 से सवा लाख मजदूर बिहार के बाहर रहकर काम करते हैं. अब इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह एक से सवा लाख वोट बैंक हैं जो अपने क्षेत्र से बाहर चले गए हैं. जब यह लोकतंत्र का महापर्व आता है तो वह उससे वंचित रहते हैं. उनका वोटर आईडी कार्ड महज पहचान पत्र के लिए ही रह जाता है. उसका उपयोग वह कई चुनाव तक नहीं कर पाते हैं.
सवर्ण सबसे ज्यादा हुए बाहरी : एक आंकड़े के मुताबिक बिहार के कुल आबादी का 3.50% लोग बिहार से बाहर रह रहे हैं और इसमें सबसे अधिक 5.68% सवर्ण जाति के लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए कमाने बिहार के बाहर चले गए हैं. चुंकि बिहार में रोटी, जाति और वोट की बात ज्यादा होती है, तो ऐसे में यह भी बताना जरूरी है कि पिछड़ा वर्ग से 3.30 फीसदी और अत्यंत पिछड़े वर्ग से 3.30 फीसदी लोग बिहार से बाहर हैं. इस तरह अनुसूचित जाति के लगभग ढाई फीसदी लोग, अनुसूचित जनजाति के लगभग 2.84% लोग बिहार के बाहर हैं. दूसरी तरफ 3.22 ऐसी जातियां हैं जिनके बारे में आंकड़े तैयार नहीं है लेकिन, वह अलग-अलग जातियों में बंटे हुए हैं.
मजबूरी वोट नहीं देने देती : जहां एक उम्मीदवार की किस्मत का फैसला एक वोट से होता है. वहीं प्रत्येक लोकसभा से लगभग 1 लाख से सवा लाख वोटर होते ही नहीं है. उनकी मजबूरी होती है कि वह चाहते हुए भी इस लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं होते हैं. उनके सामने कई दिक्कतें हैं. पहली दिक्कत है कि वह एक संगठित मजदूर होते हैं. उन्हें छुट्टियां समय पर नहीं मिलती है. वह किसी तरह अपने घर में होने वाले पर्व त्यौहार के लिए छुट्टी बचा कर रखते हैं और ऐसे में यदि चुनाव में वह अपने घर आते हैं तो फिर पर्व त्यौहार में होने वाली खुशियों से वह वंचित रह जाएंगे.
वोट करने आना महंगा सौदा : दूसरी तरफ, अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए वह अपने घर से दूर हैं. और ऐसे में उन्हें बहुत पैसे नहीं मिलते हैं तो उनकी छुट्टी होने के बावजूद भी वह अपना मनमसोस कर रह जाते हैं. जैसे यदि वह पंजाब-हरियाणा में रहते हैं और उन्हें 15 हजार मासिक वेतन मिलता है और वह चुनाव में घर आते हैं तो लगभग उनका खर्च 8 से 10 हजार हो जाते हैं. ऐसे में उन्हें यह महंगा सौदा लगता है और वह चुनाव में नहीं आ पाए.
''क्या बताएं, कोयंबटुर में रहते हैं. 22 हजार रुपया महीना मिलता है. एक बार घर आते हैं तो 7 से 8 हजार रुपया खर्च हो जाता है. ऐसे में एक वोट देने के लिए इतना रुपया कैसे खर्च पाएंगे, आप ही बताइये?''- संदीप कुमार, पूर्णिया निवासी
''चेन्नई में रहकर रोजी-रोटी चलाते हैं. किसी तरह परिवार का पालन पोषण करते हैं. वोट देने के चक्कर में 6 हजार रुपया क्यों खर्च करेंगे. इससे बेटे का ट्यूशन फीस दे देंगे. वोट नहीं देने का गम रहेगा.''- विवेक कुमार, समस्तीपुर निवासी
''इस बार हमलोगों के लिए अच्छा हुआ. हैदराबाद से ईद मनाने घर आए थे. कुछ दिन के बाद ही वोट हो गया. हमलोग खुश हैं. अगर ज्यादा दिन रुकना पड़ता तो दिक्कत हो जाती.''- आफताब आलाम, किशनगंज निवासी
वोटिंग त्योहार के समय होता तो अच्छा था : हाल के दिनों में एक स्थिति यह बनी है कि किसी क्षेत्र में किसी जाति का नेता चुनाव लड़ रहा होता है और उन्हें यह पता होता है कि उनकी जाति के कई हजार लोग बाहर मजदूरी करने चले गए हैं. वह उनका वोट बैंक हो सकते हैं तो ऐसे में उन्हें अपने क्षेत्र में लाने की जिम्मेदारी लेते हैं. लेकिन, अमूमन यह बहुत महंगा होता है तो ऐसे में नेताजी भी पीछे हट जाते हैं.
त्योहार के समय वोट होने से फायदा : हालांकि चुनाव प्रशासन से जुड़े हुए पदाधिकारी, लोगों से यह जरूर अपील करते हैं कि वह जहां के वोटर हैं वह वहां पहुंचकर वोट दें लेकिन, ऐसा संभव बहुत नहीं हो पाता है. प्रवासी वोटर इसका फायदा उस समय उठा पाते हैं जब चुनाव होली, दशहरा, दिवाली, ईद के समय होता है और वह उस समय अपने गांव आए होते हैं तो एक साथ दोनों काम कर लेते हैं.
चुनाव आयोग प्रवासी वोटर के लिए कर सकता है अपील : वरिष्ठ पत्रकार कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि, बिहार जैसे राज्यों में प्रवासी वोटर फैक्टर हो सकते हैं. बशर्ते कि वह समय पर अपने क्षेत्र में वोट डालने आएं. जहां एक-दो वोटो से उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होता है. वहां कई-कई लाख वोटर बाहर होते हैं. ऐसे में चुनाव आयोग को भी इसको लेकर कुछ ऐसे नियम या फिर प्रावधान बनाने चाहिए, जिससे कि जो अपने क्षेत्र से बाहर रह रहे हैं उन्हें वोट देने की सहूलियत हो जाए.
''कई देशों में इस तरह की व्यवस्था ऑनलाइन की जाती है. हालांकि भारत में यह कितना संभव है यह कहना अभी मुश्किल है. दूसरी ओर, चुनाव आयोग ऐसी प्राइवेट कंपनियों से भी आग्रह कर सकता है जिनके जहां प्रवासी मजदूर काम करते हैं चुकी यह हर साल की प्रक्रिया नही है, यह 5 साल में एक बार वोट डाली जाती है तो, लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह कंपनियां अपने कर्मचारियों को यह सुविधा दे सकती है.''- कुमार राघवेंद्र, वरिष्ठ पत्रकार
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