पटना : पटना के अशोक राजपथ स्थित खुदा बख्श लाइब्रेरी अपने आप में बेहद ही खास है. यहां कई नायाब किताबों का अनूठा संग्रह है और नौवीं शताब्दी के प्राचीन पांडुलिपियों के संग्रह होने के कारण यह देश के राष्ट्रीय पुस्तकालयों में शामिल है. यहां 22000 के करीब दुर्लभ पांडुलिपि मौजूद है. यहां कई दुर्लभ पांडुलिपियों में कई पांडुलिपि औरंगजेब के शासनकाल की भी है. इसी में एक है 'तुहफत-उल-हिंद', जिसे हिंदी की सबसे पहली डिक्शनरी कहा जाता है. हालांकि यह पुस्तक फारसी लिपि में है जिसे औरंगजेब ने अपने बेटे के लिए तैयार करवाया था.
मिर्जा खान ने तैयार किया था था पुस्तक : खुदा बख्श लाइब्रेरी के पुस्तकालय सहायक जाकिर हुसैन ने बताया कि औरंगजेब द्वारा हिंदी की यह डिक्शनरी 'तुहफत-उल-हिंद' साल 1674 में तैयार करवाई गई थी. औरंगजेब ने अपने बेटे शहजाद आजम शाह को भारत की संस्कृति से अवगत कराने और भारतीय भाषा के संबंध में जानकारी समृद्ध कराने के लिए यह पुस्तक तैयार करवाई थी. इस पुस्तक को शहजादा के उस्ताद मिर्जा खान पेसर फखरुद्दीन मोहम्मद ने तैयार किया था. इस पुस्तक में आठ अध्याय हैं जिसमें एक अध्याय हिंदी शब्दावली का है और पूरी पुस्तक फारसी लिपि में है. अर्थात, हिंदी के शब्द भी फ़ारसी लिपि में है.
पुस्तक में है हिंदी के 3162 शब्द : जाकिर हुसैन ने बताया कि यह पुस्तक 1674 में लिखी गई थी जिसमें 3162 हिंदी के शब्दकोश हैं. पुस्तक में ब्रिज भाषा के जरूरी और प्रयोग में आने वाले शब्द और उनके अर्थ फारसी में लिखे गए हैं. शब्द को फारसी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखा गया है लेकिन लिपि फारसी है और अधिकांश शब्द वही है जो सामान्य बोलचाल में आने वाले शब्द होते हैं. उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को कातिब़ ने 1796 में हू-बहू हाथों से उतारा था और यही पुस्तक लाइब्रेरी में आज के समय उपलब्ध है. 1211 हिज्री की यह किताब है. उदाहरण के लिए पुस्तक में लड़की, राजीव, आसा, इत्यादि शब्द अर्थ सहित है. पुस्तक मूल रूप से संगीत के अध्ययन से संबंधित है. इसी में एक चैप्टर हिंदी शब्दकोश का है.
किताबों का हो रहा डिजिटाइजेशन : खुदा बख्श लाइब्रेरी के दूरसंचार अधिकारी मसूद आलम ने बताया कि लाइब्रेरी के किताबों का डिजिटाइजेशन किया जा रहा है. 22000 के करीब पांडुलिपियों हैं और इनमें से लगभग 8000 से अधिक का डिजिटाइजेशन हो चुका है. लेकिन यह अभी आम लोगों के लिए ओपन नहीं किया गया है. सभी पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन हो जाएगा तो सॉफ्टवेयर के माध्यम से आगे इंटरनेट पर अपलोड करने की प्रक्रिया की जाएगी और आम लोगों के लिए वर्चुअल मोड में पुस्तक के उपलब्ध हो पाएंगी. लेकिन इन पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़ने के लिए शुल्क देने होंगे और यह शुल्क भी अभी निर्धारित नहीं है.
कैसे पढ़ पाएंगे दुर्लभ पांडुलिपियों को : लाइब्रेरी के पुस्तकालय सहायक जाकिर हुसैन ने बताया कि इस लाइब्रेरी में नौवीं सदी के हिरण की बहुत पतले छाल पर लिखे हुए दुर्लभ पांडुलिपि उपलब्ध है. इसमें कुरान की कुछ आयतें लिखी हुई हैं. इसके अलावा दारा शिकोह और जहांगीर के हस्तलिखित लेख भी उपलब्ध हैं.
''यह दुर्लभ पांडुलिपि स्टील के अलमारी में बंद है जिसे बाहर से भी नहीं देखा जा सकता है. इन्हें पढ़ने के लिए एक प्रक्रिया होती है. जो भी रिसर्च करने वाले लोग इसे पढ़ना चाहते हैं उन्हें इसके लिए लाइब्रेरी में आवेदन देना होता है. फिर यह आवेदन कमिश्नर ऑफिस जाता है. कमिश्नर ऑफिस से वेरीफाई करने के बाद एक तिथि निर्धारित होती है कि किस दिन उसे पढ़ सकते हैं.''- जाकिर हुसैन, पुस्तकालय सहायक, खुदा बख्श लाइब्रेरी, पटना
लाइब्रेरी के आलमारी की दो चाबी : जाकिर हुसैन ने बताया कि जिन दुर्लभ पांडुलिपियों को स्टील के अलमारी में बंद किया गया है वह दो ताले से बंद होते हैं. एक चाबी पटना कमिश्नर के पास होता है और दूसरा चाबी लाइब्रेरी प्रभारी के पास होता है. कमिश्नर ऑफिस से जिस दिन की तिथि मिलती है, उस दिन कमिश्नर ऑफिस के लोग चाबी लेकर आते हैं और फिर यहां से एक चाबी से अलमारी खुलता है. फिर उस दुर्लभ पांडुलिपि वाले पुस्तक को निकाला जाता है. जब व्यक्ति उसे पुस्तक को पढ़ लेता है तो फिर दोबारा से अलमारी में पुस्तक बंद कर दिया जाता है और फिर दोनों ताले से बंद कर चाबी अलग-अलग जगह चली जाती है.
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