नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि जब भी कोई साथी किसी रिश्ते को जारी रखने के लिए अपनी अनिच्छा दिखाता है, तो ऐसे रिश्ते का चरित्र, जब यह शुरू हुआ था कायम नहीं रहेगा.
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा, 'वर्तमान मामले में हमें नहीं लगता कि संबंध आपराधिक शिकायत को प्रारंभिक स्तर पर रद्द करने को उचित ठहराने के लिए सहमतिपूर्ण रहे थे. हम यह भी नहीं सोचते कि शिकायत जिसके अनुसरण में एफआईआर दर्ज की गई है, कथित अपराधों की सामग्री का अभाव है.
शीर्ष अदालत ने शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए उसके और उच्च न्यायालय के समक्ष मामले से संबंधित सभी रिकॉर्ड में महिला की पहचान को छिपाने का निर्देश दिया. पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 30 मार्च, 2023 के आदेश के खिलाफ राजकुमार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जुलाई 2022 में उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था. हम, तदनुसार, लागू आदेश और वर्तमान में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हैं. याचिका खारिज कर दी जाएगी. अंतरिम आदेश, यदि कोई हो भंग कर दिया जाएगा.
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और महिला एक रिश्ते में थे लेकिन बाद में ऐसे रिश्ते में खटास आ गई और एक-दूसरे के खिलाफ कई तरह के आरोप लगे. याचिकाकर्ता के वकील ने शंभू खरवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में शीर्ष अदालत के हालिया फैसले पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि सहमति से बनाए गए संबंध बलात्कार के अपराध को जन्म नहीं दे सकते.
शीर्ष अदालत ने 5 मार्च को पारित एक आदेश में कहा, 'हम इस अदालत की समन्वय पीठ द्वारा लिए गए इस दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं, लेकिन जहां तक विषय कार्यवाही का सवाल है, आरोप शिकायतकर्ता की ओर से निरंतर सहमति प्रदर्शित नहीं करते हैं.' पीठ ने कहा कि कोई भी रिश्ता शुरुआत में सहमति से हो सकता है लेकिन आने वाले समय में वही स्थिति हमेशा बनी नहीं रह सकती है. इसमें कहा गया, 'जब भी कोई पार्टनर इस तरह के रिश्ते को जारी रखने के लिए अपनी अनिच्छा दिखाता है, तो ऐसे रिश्ते का जो चरित्र शुरू हुआ था, वह कायम नहीं रहेगा.'
पीठ ने कहा कि यह याचिकाकर्ता द्वारा कथित तौर पर किए गए विभिन्न अपमानजनक कृत्यों के माध्यम से लिया गया है. याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि ये सभी याचिकाकर्ता की शिकायतकर्ता के खिलाफ ब्लैकमेलिंग/जबरन वसूली की शिकायत का जवाबी हमला था. पीठ ने कहा, 'इस तथ्यात्मक पृष्ठभूमि में यह नहीं माना जा सकता कि एफआईआर किसी अपराध का खुलासा नहीं करती है.
आरोपों को स्वाभाविक रूप से असंभव नहीं माना जा सकता है, जो कि एफआईआर को रद्द करने का एक आधार है. जैसा कि हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल और अन्य (1992) और अन्य के मामले में इस अदालत के फैसले में कहा गया है. महिला ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 342, 354, 366, 376 (2) (एन), 312, 201, 420, 506 और 509 और धारा 66 के प्रावधानों के तहत उसके खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की थी.