नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कोयला परिवहन पर अवैध उगाही से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी को अंतरिम जमानत दे दी है. शीर्ष कोर्ट ने यह देखते हुए कि वह पहले ही 19 महीने की सजा काट चुका है और आईपीसी की धारा 384 या आईपीसी के किसी अन्य प्रावधान के तहत उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं हुआ है.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विश्वनाथन की पीठ ने कहा, 'आज की तारीख में याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 384 या आईपीसी के किसी अन्य प्रावधान के तहत कोई अपराध नहीं है. आरोपपत्र केवल आईपीसी की धारा 204 और 353 के तहत दायर किया गया है, और दोनों धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत शेड्यूल्ड ऑफेंस नहीं हैं.'
सुनील कुमार अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. हाईकोर्ट ने 8 अप्रैल को उनकी जमानत खारिज कर दी थी. अग्रवाल का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और वकील तुषार गिरी और साहिल भलाइक ने किया.
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा था कि मामले में एक निश्चित अपराध दर्ज किया जाना चाहिए. अन्यथा, एजेंसी अपने आप कैसे आगे बढ़ सकती है? न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने राजू से पूछा कि 'पीएमएलए एक पैरास्टिक ऑफेंस है. जीवित रहने के लिए इसमें एक विधेयात्मक अपराध होना चाहिए. यह अपने बूते स्टैंड नहीं करता है.'
केंद्रीय एजेंसी ने इस बात पर जोर दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों की जांच किसी अन्य अपराध में किसी अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा की गई जांच से स्वतंत्र थी. राजू ने कहा, परिणामस्वरूप, ईडी मामले में आरोपी व्यक्ति को जरूरी नहीं कि उस पर प्रिडिकेट ऑफेंस का आरोप लगाया जाए.
शीर्ष अदालत ने आज अपलोड किए गए अपने आदेश में कहा, 'आरोप पत्र में कर्नाटक पुलिस द्वारा की गई टिप्पणियों के संबंध में राजू ने निष्पक्ष रूप से कहा है कि अब तक, छत्तीसगढ़ पुलिस ने आईपीसी की धारा 384 के तहत कोई अपराध दर्ज नहीं किया है, न ही उनके द्वारा कोई जांच की गई है. ये ईडी के संज्ञान में लाया गया है.'
छह सप्ताह का दिया समय : राजू ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा की गई जांच की स्थिति और उसके परिणाम, यदि कोई हो तो उसका पता लगाने के लिए कुछ समय दिया जाए. पीठ ने ईडी को उस जांच की स्थिति का पता लगाने और संबंधित सामग्री के साथ अतिरिक्त हलफनामा रिकॉर्ड पर रखने के लिए छह सप्ताह का समय दिया.
बेंच ने कहा कि अग्रवाल पहले ही लगभग एक साल और सात महीने की सजा काट चुके हैं और उन्हें 2022 की एफआईआर या 8 जून, 2023 के आरोपपत्र में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है.
बेंच ने कहा कि 'नतीजतन, लेकिन प्रार्थना के संबंध में कोई अंतिम राय व्यक्त किए बिना, हम ये पाते हैं कि याचिकाकर्ता ने अंतरिम जमानत पर अपने विस्तार के लिए प्रथम दृष्टया मजबूत मामला बनाया है.'
पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को विशेष अदालत, रायपुर, छत्तीसगढ़ की संतुष्टि के अनुसार जमानत बांड प्रस्तुत करने के अधीन अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त को तय की गई है.
ये है मामला : ईडी ने आयकर विभाग की एक रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू की और कर्नाटक के बेंगलुरु में दर्ज एक मामले में सह-अभियुक्त के खिलाफ जुड़े आपराधिक मामले में रायपुर में ईसीआईआर दर्ज करने के बाद अक्टूबर 2022 में अग्रवाल को गिरफ्तार किया.
12 जुलाई, 2022 को पुलिस स्टेशन कडुगोडी, व्हाइटफील्ड, बेंगलुरु, कर्नाटक में सूर्यकांत तिवारी और उनके सहयोगियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के साथ धारा 186, 204, 353 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. एफआईआर आयकर जांच के उप निदेशक, विदेशी संपत्ति जांच इकाई -1, बेंगलुरु की एक शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 30 जून, 2022 को आयकर विभाग की तलाशी के दौरान सूर्यकांत तिवारी ने अधिकारियों को बाधा पहुंचाई थी. अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए और कोयला परिवहन के कथित अवैध उगाही के बारे में महत्वपूर्ण आपत्तिजनक दस्तावेजों और डिजिटल सबूतों को नष्ट कर दिया. जांच लंबित रहने तक उस एफआईआर में 9 सितंबर, 2022 को आईपीसी की धारा 384 के तहत अपराध भी जोड़ा गया.
शीर्ष अदालत ने कहा, 'ऐसा लगता है कि सूर्यकांत तिवारी और याचिकाकर्ता की कंपनियों के बीच अचल संपत्तियों की बिक्री और खरीद के विभिन्न कथित लेनदेन हुए हैं.' केंद्रीय बोर्ड और प्रत्यक्ष कर (सीबीडीटी) ने आयकर विभाग द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट के साथ, एफआईआर के संबंध में मामला ईडी को भेज दिया. इसके चलते 29 सितंबर, 2022 को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा विषय अपराध मामला दर्ज किया गया.
शीर्ष अदालत ने कहा, 'इसके बाद, कर्नाटक पुलिस ने 08 जून 2023 को एफआईआर (2022) में आरोप पत्र दायर किया, जिसमें आईपीसी की धारा 384 और 120बी के तहत अपराध हटा दिए गए. ऐसा लगता है कि आईपीसी की धारा 186 के तहत अपराध भी हटा दिया गया था. हम ऐसा इस कारण से कह रहे हैं क्योंकि आरोप पत्र केवल आईपीसी की धारा 204 और 353 के तहत दायर किया गया था.'