पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में आने और सरकार बनाने के बाद 12 फरवरी को विधानसभा में बहुमत साबित करना है, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिये है. पहले उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास करना होगा.
बहुमत साबित करना नीतीश के लिए होगी चुनौती!: ऐसे तो नीतीश कुमार के पास एनडीए के घटक दलों का 128 सदस्यों का बहुमत प्राप्त है जो बहुमत के आंकड़ा 122 से 6 अधिक है, लेकिन सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चा है. राजद की तरफ से जिस प्रकार से खेला होने की बात कही जा रही है उसके कारण नीतीश कुमार के लिए बहुमत प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है.
सिर्फ 7 दिन में देना पड़ा था नीतीश को इस्तीफा: बता दें कि नीतीश कुमार पहले भी 2000 में केवल 7 दिनों में बहुमत नहीं होने के कारण इस्तीफा दे चुके हैं. हालांकि इस बार स्थितियां कुछ अलग है क्योंकि बहुमत नीतीश कुमार के पास है. अगर विधायक अपने नेता का साथ नहीं छोड़ेंगे तो एनडीए के लिए बहुमत साबित करना बेहद आसान होगा.
साल 2000 में बड़ी पार्टी थी RJD: साल 2000 विधानसभा चुनाव में जब झारखंड भी बिहार के साथ ही था. कुल 324 सीटों पर चुनाव हुआ था. उस समय राजद को 124 सीट पर जीत मिली थी. बड़ी पार्टी होते हुए भी बहुमत के आंकड़े से आरजेडी काफी दूर थी. बहुमत के लिए उस समय 163 विधायकों की जरूरत थी.
जादुई आंकड़ा जुटा नहीं पाए थे नीतीश: कांग्रेस भी अलग चुनाव लड़ी थी और उसके 23 विधायक जीत कर आए थे. वहीं बीजेपी और नीतीश कुमार की समता पार्टी 122 सीट ही जीत पाई थी. 20 निर्दलीय भी उस समय जीते थे जिसका समर्थन नीतीश कुमार ले रहे थे. उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी.
राबड़ी देवी बनीं थीं मुख्यमंत्री: 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन 7 दिन के अंदर ही बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था. बाद में राबड़ी देवी फिर से बिहार की मुख्यमंत्री बनीं थीं. लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस और अन्य का सहयोग लेकर सरकार बना लिया था.
2000 में बिहार में स्थिति: साल 2000 बिहार विधानसभा चुनाव के समय बिहार झारखंड एक था. 324 सदस्य विधानसभा के चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला. केंद्र में एनडीए की सरकार थी और नीतीश कुमार को शपथ दिला दिया गया. राजद 124 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाने के कारण केवल 7 दिन में ही नीतीश कुमार को इस्तीफा देना पड़ा. नीतीश कुमार को बीजेपी समता पार्टी सहित निर्दलीय के विधायकों को मिलाकर भी 21 वोट कम पड़ रहा था.
वर्तमान बिहार विधानसभा अध्यक्ष को हटाना चुनौती: बिहार में इस बार नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद समीकरण बदल गए हैं. 243 सदस्य विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 से 6 अधिक 128 सदस्य साथ हैं, लेकिन राजद के तरफ से विधानसभा अध्यक्ष को मैदान में उतार दिए जाने के बाद कई तरह की चर्चा है.
लालू, तेजस्वी से लेकर राजश्री तक का खेला होने का दावा: साथ ही लालू प्रसाद यादव की नजर जदयू और बीजेपी के कई विधायकों के साथ जीतन मांझी पर भी है. इसलिए लगातार कहा जा रहा है कि खेला होगा. तेजस्वी यादव के तरफ से भी कहा गया है कि बिहार में आगे खेला होगा. उनकी पत्नी ने भी सोशल साइट एक्स पर पोस्ट कर 17 जदयू विधायकों के गायब होने का दावा किया है.
मांझी भी दे रहे टेंशन: जीतन राम मांझी भी एससी एसटी विभाग मिलने से खुश नहीं है. उन्होंने तो खुलेआम यह बात भी कह दिया कि महागठबंधन के तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री का ऑफर मिला है. इस तरह की कई बातें हैं जिसके कारण इस बार नीतीश कुमार के लिए बहुमत प्राप्त करना और विधानसभा अध्यक्ष को हटाना एक बड़ी चुनौती है.
नीतीश ने की पीएम मोदी से भेंट: ऐसे इस बार भी केंद्र में एनडीए की ही सरकार है. फ्लोर टेस्ट से पहले बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है. अपनी चिंता भी जता चुके होंगे.
"2000 वाली स्थिति इस बार बिहार में नहीं है. उस समय भी बहुमत हो जाता है लेकिन स्थिति कुछ ऐसी बन गई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था, लेकिन इस बार तो पूर्ण बहुमत है."- संजय गांधी, एमएलसी जदयू
'महागठबंधन के साथ भी हो सकता है खेला': वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन भारती का कहना है कि राजनीति में कुछ भी संभव नहीं है लेकिन ऐसा नहीं है कि एनडीए को ही सिर्फ खतरा है, महागठबंधन खेमे में शामिल दलों राजद और कांग्रेस को भी खतरा है. इसलिए तो कांग्रेस के विधायकों को बिहार से बाहर रखा गया है.
विपक्ष बदलता रहा लेकिन नीतीश नहीं बदले: 2000 वाली स्थिति नीतीश के लिए इसलिए पैदा नहीं हो रही है क्योंकि उस बार बहुमत इनके पास नहीं था. इस बार बहुमत इनके पास है. 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन अभी 17 -18 साल बिहार में मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाने का अनुभव है.
नीतीश जिधर सरकार उधर: राजनीति के माहिर खिलाड़ी के रूप में नीतीश कुमार की पहचान है. इसलिए तो जिसके साथ जाते हैं उसी की सरकार बिहार में बन रही है. 2000 विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में नीतीश कुमार हमेशा बहुमत सिद्ध करते रहे हैं. कभी कोई परेशानी सामने नहीं आई.
2024 में बिहार की स्थिति: नीतीश कुमार महागठबंधन से निकलकर एनडीए में शामिल हुए हैं और फिर से मुख्यमंत्री बने हैं.243 सदस्यीय विधानसभा में 128 विधायक नीतीश कुमार के साथ हैं जो बहुमत के आंकड़ा से 6 अधिक हैं. इस बार भी राजद 79 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है.
महागठबंधन के पास 114 विधायक: नीतीश कुमार के पाला बदलने के कारण पहले से आरजेडी कोटे से विधानसभा अध्यक्ष बने अवध बिहारी चौधरी परेशानी बने हुए हैं, लेकिन इस बार अंतर यही है कि 2000 में बहुमत नहीं था. इस बार नीतीश कुमार के पास बहुमत का आंकड़ा है. वहीं महागठबंधन के पास 114 विधायक हैं और बहुमत के आंकड़ा से आठ ही कम है.
12 फरवरी को नीतीश सरकार की अग्नि परीक्षा: नीतीश कुमार को 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में बहुमत साबित करना है.जदयू और बीजेपी में तोड़फोड़ नहीं हुआ तो आसानी से बहुमत नीतीश कुमार साबित कर सकते हैं. उसके लिए लगातार रणनीति भी तैयार की जा रही है.
एनडीए के समर्थन से सरकार चला रहे सीएम: अभी बीजेपी के पास 78 विधायक हैं, जदयू के पास 45 विधायक हैं, एक निर्दलीय का भी समर्थन मिला हुआ है और हम पार्टी के चार विधायक हैं, इसलिए बहुमत का आंकड़ा नीतीश कुमार के साथ इस बार साफ दिख रहा है. इसी के आधार पर उन्हें राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिलाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ आठ मंत्रियों ने इस बार शपथ ली है.
विश्वास मत के बाद मंत्रिमंडल विस्तार: जिन 8 मंत्रियों ने शपथ ली है उनमें भाजपा कोटे से दो उपमुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं. अब विश्वास मत जब प्राप्त होगा तो फिर मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. लेकिन इन सब में कई पेंच भी जरूर हैं. कांग्रेस ने टूट से बचने के लिए अपने विधायकों को लालू प्रसाद यादव के इशारे पर हैदराबाद में शिफ्ट कर दिया है और फ्लोर टेस्ट के दिन ही कांग्रेस विधायकों को पटना लाया जाएगा.
बिहार की 6 सीट पर राज्यसभा का चुनाव: अभी 6 सीट पर राज्यसभा का चुनाव होना है और आने वाले समय में विधान परिषद के 11 सीटों पर भी चुनाव होना है. लोकसभा चुनाव में भी कई विधायक टिकट चाहते हैं. ऐसे कई मुद्दे हैं जो विधायकों को लुभा सकते हैं और फिर यदि दूसरी सरकार बनी तो उसमें मंत्री बनने का भी अवसर मिल सकता है. यही सब कारण है कि कई तरह की चर्चा है.
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