नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश में 111 किलोमीटर के कांवड़ यात्रा मार्ग पर निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई की वजह से पर्यावरण को हुए नुकसान के आकलन के लिए एक उच्च-स्तरीय संयुक्त जांच दल का गठन किया है. एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने यह आदेश जारी किया है. मामले की अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी.
एनजीटी की ओर से गठित संयुक्त जांच दल में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर, ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक का एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और मेरठ के डीएम शामिल हैं. एनजीटी ने संयुक्त जांच दल को चार हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. एनजीटी ने निर्देश दिया कि वो ये पड़ताल करें कि बिना पेड़ों को अनावश्यक रुप से गिराये कांवड़ यात्रा के लिए कोई वैकल्पिक रुट था, या पेड़ों को गिराने के अलावा दूसरा कोई विकल्प था. एनजीटी ने संयुक्त जांच दल को निर्देश दिया कि वे अपनी जांच के दौरान स्थानीय लोगों से बात कर सही स्थिति का पता लगाएं.
सुनवाई के दौरान वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा कि नहर के दाहिनी ओर पांच मीटर का कच्चा रोड मौजूद है, लेकिन पेड़ों को गिराकर 15-20 मीटर चौड़ी रोड अलग से बनाई गई. उन्होंने कहा कि 15 से 20 मीटर चौड़े रोड की अनुमति दी गई, लेकिन ये करीब 40 मीटर चौड़ी बनाई गई. वशिष्ठ के इन आरोपों का एएसजी केएम नटराज और उत्तर प्रदेश सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने विरोध करते हुए कहा कि रोड की वास्तविक चौड़ाई 20 मीटर है और कुछ इलाकों में इसकी चौड़ाई घटाकर 15 मीटर की गई. ताकि पेड़ों को कम से कम काटा जा सके. बता दें कि एनजीटी ने गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर वन संभागों में एक लाख से ज्यादा पेड़ों का काटने के मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई शुरु की है.
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