नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में खाली हुई राज्यसभा की 56 सीटों में से 30 सीटें जीत लीं. इनमें से 20 सीटें बिना किसी विरोध के और 10 सीटें चुनाव के जरिए जीतीं. इसके बाद राज्यसभा में भाजपा सांसदों की संख्या 97 हो जाएगी. एनडीए के कुल 117 सांसद हो जाएंगे.
राज्यसभा में बहुमत के लिए 121 सदस्य चाहिए. यानी एनडीए बहुमत से मात्र चार सीटें दूर है. अगर सभी 56 सदस्य शपथ ले लेते हैं, तो सभी सांसदों की संख्या 240 हो जाएगी. जम्मू कश्मीर से राज्यसभा की चार सीटें हैं, लेकिन उसके लिए भी मतदान नहीं हुआ है. नामित सदस्यों की सूची में एक सीट खाली है. कुल 12 सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करते हैं. इस तरह से राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं. लेकिन इस वक्त यह संख्या 240 है.
इस समय राज्यसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होगी, जिनके सदस्यों की संख्या 97 होगी. दूसरे स्थान पर कांग्रेस पार्टी होगी, जिनके सदस्यों की संख्या 29 होगी. इस बार जिन 56 सीटों के लिए सदस्य चुने गए, उनमें से कुल 41 सीटों पर उम्मीदवारों की जीत निर्विरोध है. 15 सीटों के लिए मंगलवार को चुनाव हुए. इनमें से 10 सीटें यूपी, चार सीटें कर्नाटक और एक सीट हिमाचल प्रदेश से थीं.
महाराष्ट्र और बिहार से छह-छह सीटों के लिए, मध्य प्रदेश और प.बंगाल से पांच-पांच, कर्नाटक और गुजरात से चार-चार, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान से तीन-तीन तथा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ से एक-एक सीट भरे जाने थे.
अब राज्यसभा में भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर टीएमसी होगी. टीएमसी के 13 सांसद होंगे. डीएमके और आम आदमी पार्टी के 10-10 सांसद होंगे. बीजू जनता दल और वाईएसआरसीपी के सांसदों की संख्या नौ-नौ, बीआरएस के सात सांसद, राजद के छह सांसद, सीपीएम के छह सांसद और एआईएडीएमके और जेडीयू के चार-चार सदस्य होंगे.
अब सवाल ये है कि मोदी सरकार पिछले 10 सालों से यह लगातार कोशिश कर रही है कि उसे राज्यसभा में बहुमत मिले. सरकार किसी भी बिल को पारित करवाने के लिए विपक्षी दलों पर निर्भर नहीं रहना चाहती है. ये अलग बात है कि इन दिक्कतों के बावजूद सरकार ने कई महत्वपूर्ण बिलों को पारित करवाया है.
मीडिया रिपोर्ट में चर्चा की जा रही है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में यदि मोदी सरकार फिर से चुनाव जीतकर आती है, तो वह कुछ ऐसे फैसले जरूर लेगी, जिसका असर व्यापक होगा. आप बहुत कुछ उस तरह के फैसले की उम्मीद कर सकते हैं, जिस तरह से मोदी सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति को लेकर फैसले लिए थे.
अब यह यूनिफॉर्म सिविल कोड से संबंधित निर्णय हो या फिर संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द के हटाने को लेकर फैसला हो, इसके बारे किसी को भी जानकारी नहीं है. अलग-अलग खबरों में जरूर ऐसी चर्चाएं चल रहीं हैं.
मोदी सरकार के सामने कुछ वैसे भी मौके आए, जब उसे बिल पारित करवाने के लिए विपक्षी दलों को मनाना पड़ा. कई बार उन्हें सफलता मिली, कई बार सफलता नहीं मिली. आम तौर पर विपक्षी पार्टियां महत्वपूर्ण बिल को लेकर सरकार पर दबाव बनाए रखती हैं. और बहुत संभव है कि मोदी सरकार ने भी इसे महसूस किया होगा. इसलिए सरकार चाहती है कि उसे राज्यसभा में भी बहुमत मिल जाए, ताकि बिलों को पारित करवाने के मामले में उसकी किसी पर भी निर्भरता न हो.
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