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देश की बड़ी आबादी की प्यास बुझाने वाले उत्तराखंड का खुद सूख रहा गला, जल संकट में 4000 गांव - WORLD WATER DAY 2024

World Water Day 2024 पर्वतीय जिलों में नौले-धारे गांव की शान हुआ करते थे, लेकिन अब कई गांवों में नौले (पानी के स्रोत) सूख चुके हैं. जबकि कई नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं. देश की बड़ी आबादी की प्यास बुझाने वाले उत्तराखंड के पहाड़ों में ही पानी की परेशानी होने लगी है. जबकि जिम्मेदार संरक्षण की दिशा में कार्य करने की बात कहते दिख रहे हैं.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 22, 2024, 6:05 PM IST

Updated : Mar 22, 2024, 7:24 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड): भारत का एक खूबसूरत राज्य उत्तराखंड जिसे गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्धी मिली है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों का मन मोह लेते हैं. इस राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के साथ इस राज्य की एक और बड़ी भूमिका है. उत्तराखंड राज्य देश की एक बड़ी आबादी की प्यास भी बुझाता है. लेकिन वर्तमान समय में ये पहाड़ी राज्य भीषण जल संकट से गुजर रहा है. अमूमन ये माना जाता है कि जिस राज्य से गंगा जैसी विशाल नदी बहती हो वहां भला जल की क्या कमी हो सकती है, लेकिन सरकारी आंकड़े जो हकीकत बयां कर रहे हैं, वो बेहद चौंकाने वाले तो हैं ही साथ ही भयावह भी हैं. दरअसल, जहां दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर देखा जा रहा है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है.

World Water Day
सूखने की कगार पर नौले

आधी आबादी की प्यास बुझाने वाला पहाड़ खुद प्यासा: उत्तराखंड के लिए एक पुरानी कहावत है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी भी यहां के काम नहीं आई. एक दो अपवादों को छोड़ दें तो यह काफी हद तक सही भी है. जो उत्तराखंड देश की एक बड़ी आबादी की प्यास बुझाता है, अब वहीं के लोगों के हलक सूख रहे हैं. पहाड़ों से निकलने वाले जल स्रोत छोटी-छोटी नदियां अब गायब हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार और सिस्टम को इसकी जानकारी नहीं है. 6-8 महीने में एक बैठक करके हमारे नीति निर्धारक इस पर चर्चा करते हैं और अगले प्लान के लिए बजट करते हैं, लेकिन हालात यह है कि नीति आयोग की रिपोर्ट यह कह रही है कि उत्तराखंड में लगातार जल स्रोत सूख रहे हैं. जानकार तो यह भी मानते हैं कि पलायन का एक बड़ा कारण नौले-धारे और जल स्रोतों का सूखना भी है.

World Water Day
जलाशयों पर भी मंडरा रहा खतरा

पहाड़ों में नौलों का अस्तित्व खबरे में: इन सब के पीछे वजह जो भी हो, लेकिन इन हालातों की बड़ी वजह इंसान ही हैं. कुछ समय पहले तक जल स्रोतों को गांव के लोग देवता की तरह पूजते थे. साल में कई बार गांव इकट्ठा होकर इन नौले धारों और जल स्रोतों को संजोकर रखते थे. लेकिन आलम यह है कि धीरे-धीरे यह जल स्रोत आबादी वाले इलाकों में सूखने लगे हैं. जल स्रोत प्रबंधन कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि, मौजूदा समय में उत्तराखंड में 4000 ऐसे गांव हैं जो जल संकट से जूझ रहे हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि 510 ऐसे जल स्रोत हैं, जो अब सूखने की कगार पर आ गए हैं. सबसे ज्यादा असर अल्मोड़ा जनपद पर पड़ा है. यहां पर 300 से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं. यहां तक कि उत्तराखंड में प्राकृतिक जल स्रोतों के जलस्तर में 60 फीसदी की कमी आई है.

World Water Day
आंकड़े करते तस्दीक

आंकड़े कर रहे तस्दीक: उत्तराखंड में 12000 से अधिक ग्लेशियर और 8 नदियां निकलती हैं. बावजूद इसके उत्तराखंड में मौजूदा समय में 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76% से अधिक पानी अब बचा ही नहीं यानी पूरी तरह से सूख चुका है. इसके साथ ही प्रदेश में 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है और ये निरंतर कम हो रहा है.

World Water Day
विश्व वाटर डे

राज्य में सबसे अधिक जल संकट, टिहरी, पिथौरागढ़, चमोली, अल्मोड़ा, और बागेश्वर जिले में है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्राकृतिक जल स्रोत कम हो रहे हैं. केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की मानें तो राज्य में 725 ऐसे जलाशय हैं, जो पूरी तरह से सूख चुके हैं. उत्तराखंड में 3096 जलाशय हैं, जिसमें 2970 जलाशय ग्रामीण क्षेत्र में है, जबकि 126 जलाशय शहरी क्षेत्र में हैं. रिपोर्ट कहती है कि 2371 जलाशय में हाल ही में पानी पाया गया था, जबकि 725 जल से पूरी तरह से सूख चुके हैं, जिसकी वजह मंत्रालय ने प्रदूषण फैक्ट्री और तालाबों के ऊपर बस्तियों को बताया था.

World Water Day
नौलों और नदियों का अस्तित्व खतरे में

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के पहाड़ों में प्राकृतिक जल स्रोत को सूखते देख लोग भी बेहद चिंतित हैं. कभी टिहरी बांध के विरोध में खड़े हुए स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि हमने इन जल स्रोतों को भगवान की तरह पूजा है. लेकिन आज पहाड़ों में हो रहा अनियंत्रित विकास और सड़कों का जाल जल स्रोतों के सूखने की प्रमुख वजह हैं. कहा कि युवा पीढ़ी भी जल स्रोतों और झरनों को फोटो खिंचवाने तक सीमित रख रही है. उन्होंने कहा कि संरक्षण के लिए आवाज तो उठ रही है, लेकिन धरातल पर नहीं उतर पा रही है.

World Water Day
पानी बिना उत्तराखंड का खुद सूख रहा गला

हाइड्रो प्रोजेक्ट खतरनाक: कहा कि दक्षिण अफ्रीका का एक शहर केप टाउन पूरी तरह से जल विहीन शहर हो गया है. कहीं ऐसा ना हो कि आने वाले समय में हमारे छोटे-छोटे गांव भी जल विहीन ना हो जाएं. हैरानी यह है कि हमारे यहां से नदियां जा रही हैं और तमाम स्रोत हैं, जो कई राज्यों को पानी देते हैं. लेकिन हम और हमारी सरकार इसको बच्चा नहीं पा रही हैं. नदियों और जल स्रोतों पर लगता हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी इसके लिए दोषी हैं.

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड सरकार ने जल स्रोतों को बचाने के लिए 2023 अक्टूबर महीने में एक एजेंसी का गठन किया था. स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी यानी (सारा) एजेंसी भी बनाई गई थी. इसकी अंतिम बैठक नवंबर 2023 में उसे वक्त के मुख्य सचिव सुखविंदर सिंह संधू ने ली थी, जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि उत्तराखंड के जल स्रोतों को पूर्ण जीवित करने के लिए वन पंचायत को जोड़ा जाएगा.

सतपाल महाराज ने क्या कहा: सिंचाई एवं जलागम मंत्री सतपाल महाराज कहते हैं कि सरकार लगातार इस दिशा में काम कर रही है. इसके लिए पहाड़ों की पंचायत को भी जोड़ा है. मंत्री मानते हैं कि बीते कुछ सालों में उत्तराखंड के जल स्रोतों को सूखने में इजाफा हुआ है, लेकिन वो कहते हैं कि इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है. पूर्व में टिहरी के तीन से चार गांव में कई वर्षों से चल रहे जल स्रोतों को दोबारा से पुनर्जीवित किया गया है. राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन प्रोजेक्ट के तहत साल 2019 से यह प्रयास चल रहा था जो हाल ही में पूरा हुआ है. आने वाले समय में इसके परिणाम बेहद सुखद होंगे. लेकिन यह बात भी सही है कि केवल सरकार ही नहीं लोगों को भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना होगा.

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देहरादून (उत्तराखंड): भारत का एक खूबसूरत राज्य उत्तराखंड जिसे गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्धी मिली है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों का मन मोह लेते हैं. इस राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के साथ इस राज्य की एक और बड़ी भूमिका है. उत्तराखंड राज्य देश की एक बड़ी आबादी की प्यास भी बुझाता है. लेकिन वर्तमान समय में ये पहाड़ी राज्य भीषण जल संकट से गुजर रहा है. अमूमन ये माना जाता है कि जिस राज्य से गंगा जैसी विशाल नदी बहती हो वहां भला जल की क्या कमी हो सकती है, लेकिन सरकारी आंकड़े जो हकीकत बयां कर रहे हैं, वो बेहद चौंकाने वाले तो हैं ही साथ ही भयावह भी हैं. दरअसल, जहां दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर देखा जा रहा है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है.

World Water Day
सूखने की कगार पर नौले

आधी आबादी की प्यास बुझाने वाला पहाड़ खुद प्यासा: उत्तराखंड के लिए एक पुरानी कहावत है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी भी यहां के काम नहीं आई. एक दो अपवादों को छोड़ दें तो यह काफी हद तक सही भी है. जो उत्तराखंड देश की एक बड़ी आबादी की प्यास बुझाता है, अब वहीं के लोगों के हलक सूख रहे हैं. पहाड़ों से निकलने वाले जल स्रोत छोटी-छोटी नदियां अब गायब हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार और सिस्टम को इसकी जानकारी नहीं है. 6-8 महीने में एक बैठक करके हमारे नीति निर्धारक इस पर चर्चा करते हैं और अगले प्लान के लिए बजट करते हैं, लेकिन हालात यह है कि नीति आयोग की रिपोर्ट यह कह रही है कि उत्तराखंड में लगातार जल स्रोत सूख रहे हैं. जानकार तो यह भी मानते हैं कि पलायन का एक बड़ा कारण नौले-धारे और जल स्रोतों का सूखना भी है.

World Water Day
जलाशयों पर भी मंडरा रहा खतरा

पहाड़ों में नौलों का अस्तित्व खबरे में: इन सब के पीछे वजह जो भी हो, लेकिन इन हालातों की बड़ी वजह इंसान ही हैं. कुछ समय पहले तक जल स्रोतों को गांव के लोग देवता की तरह पूजते थे. साल में कई बार गांव इकट्ठा होकर इन नौले धारों और जल स्रोतों को संजोकर रखते थे. लेकिन आलम यह है कि धीरे-धीरे यह जल स्रोत आबादी वाले इलाकों में सूखने लगे हैं. जल स्रोत प्रबंधन कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि, मौजूदा समय में उत्तराखंड में 4000 ऐसे गांव हैं जो जल संकट से जूझ रहे हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि 510 ऐसे जल स्रोत हैं, जो अब सूखने की कगार पर आ गए हैं. सबसे ज्यादा असर अल्मोड़ा जनपद पर पड़ा है. यहां पर 300 से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं. यहां तक कि उत्तराखंड में प्राकृतिक जल स्रोतों के जलस्तर में 60 फीसदी की कमी आई है.

World Water Day
आंकड़े करते तस्दीक

आंकड़े कर रहे तस्दीक: उत्तराखंड में 12000 से अधिक ग्लेशियर और 8 नदियां निकलती हैं. बावजूद इसके उत्तराखंड में मौजूदा समय में 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76% से अधिक पानी अब बचा ही नहीं यानी पूरी तरह से सूख चुका है. इसके साथ ही प्रदेश में 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है और ये निरंतर कम हो रहा है.

World Water Day
विश्व वाटर डे

राज्य में सबसे अधिक जल संकट, टिहरी, पिथौरागढ़, चमोली, अल्मोड़ा, और बागेश्वर जिले में है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्राकृतिक जल स्रोत कम हो रहे हैं. केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की मानें तो राज्य में 725 ऐसे जलाशय हैं, जो पूरी तरह से सूख चुके हैं. उत्तराखंड में 3096 जलाशय हैं, जिसमें 2970 जलाशय ग्रामीण क्षेत्र में है, जबकि 126 जलाशय शहरी क्षेत्र में हैं. रिपोर्ट कहती है कि 2371 जलाशय में हाल ही में पानी पाया गया था, जबकि 725 जल से पूरी तरह से सूख चुके हैं, जिसकी वजह मंत्रालय ने प्रदूषण फैक्ट्री और तालाबों के ऊपर बस्तियों को बताया था.

World Water Day
नौलों और नदियों का अस्तित्व खतरे में

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के पहाड़ों में प्राकृतिक जल स्रोत को सूखते देख लोग भी बेहद चिंतित हैं. कभी टिहरी बांध के विरोध में खड़े हुए स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि हमने इन जल स्रोतों को भगवान की तरह पूजा है. लेकिन आज पहाड़ों में हो रहा अनियंत्रित विकास और सड़कों का जाल जल स्रोतों के सूखने की प्रमुख वजह हैं. कहा कि युवा पीढ़ी भी जल स्रोतों और झरनों को फोटो खिंचवाने तक सीमित रख रही है. उन्होंने कहा कि संरक्षण के लिए आवाज तो उठ रही है, लेकिन धरातल पर नहीं उतर पा रही है.

World Water Day
पानी बिना उत्तराखंड का खुद सूख रहा गला

हाइड्रो प्रोजेक्ट खतरनाक: कहा कि दक्षिण अफ्रीका का एक शहर केप टाउन पूरी तरह से जल विहीन शहर हो गया है. कहीं ऐसा ना हो कि आने वाले समय में हमारे छोटे-छोटे गांव भी जल विहीन ना हो जाएं. हैरानी यह है कि हमारे यहां से नदियां जा रही हैं और तमाम स्रोत हैं, जो कई राज्यों को पानी देते हैं. लेकिन हम और हमारी सरकार इसको बच्चा नहीं पा रही हैं. नदियों और जल स्रोतों पर लगता हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी इसके लिए दोषी हैं.

क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड सरकार ने जल स्रोतों को बचाने के लिए 2023 अक्टूबर महीने में एक एजेंसी का गठन किया था. स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी यानी (सारा) एजेंसी भी बनाई गई थी. इसकी अंतिम बैठक नवंबर 2023 में उसे वक्त के मुख्य सचिव सुखविंदर सिंह संधू ने ली थी, जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि उत्तराखंड के जल स्रोतों को पूर्ण जीवित करने के लिए वन पंचायत को जोड़ा जाएगा.

सतपाल महाराज ने क्या कहा: सिंचाई एवं जलागम मंत्री सतपाल महाराज कहते हैं कि सरकार लगातार इस दिशा में काम कर रही है. इसके लिए पहाड़ों की पंचायत को भी जोड़ा है. मंत्री मानते हैं कि बीते कुछ सालों में उत्तराखंड के जल स्रोतों को सूखने में इजाफा हुआ है, लेकिन वो कहते हैं कि इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है. पूर्व में टिहरी के तीन से चार गांव में कई वर्षों से चल रहे जल स्रोतों को दोबारा से पुनर्जीवित किया गया है. राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन प्रोजेक्ट के तहत साल 2019 से यह प्रयास चल रहा था जो हाल ही में पूरा हुआ है. आने वाले समय में इसके परिणाम बेहद सुखद होंगे. लेकिन यह बात भी सही है कि केवल सरकार ही नहीं लोगों को भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना होगा.

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Last Updated : Mar 22, 2024, 7:24 PM IST
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