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प्लॉट के कागजात न देने पर 26 साल पुराने मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने बिहार सरकार पर लगाया पांच हजार का जुर्माना - NCDRC BIHAR STATE HOUSING BOARD

राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने 26 साल पुराने प्लॉट के कागजात न देने पर बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Aug 18, 2024, 12:41 PM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने 26 साल पुराने एक मामले में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जस्टिस एपी शाही और जस्टिस इंदरजीत सिंह की बेंच ने बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक चौथाई सदी बीत चुकी है. याचिकाकर्ता की मौत के बाद उसकी दूसरी पीढ़ी को भी इस केस में घसीटा गया और उसे प्रताड़ित किया गया. ऐसी स्थिति में लोगों का सिस्टम पर से भरोसा उठ जाएगा.

दरअसल अवधेश पांडेय नामक व्यक्ति ने 80 के दशक में मोतीहारी में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड के एक प्रोजेक्ट में प्लॉट खरीदा. सुनवाई के दौरान अवधेश पांडेय के पुत्र और पत्नी की ओर से पेश वकील मोहम्मद अली, शिवेश गर्ग और छत्रेश कुमार साहू ने कहा कि अवधेश पांडेय इस प्लाट की ईएमआई बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को देते रहे. बीच में कुछ ईएमआई का भुगतान वह नहीं कर सके. इसके बाद बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय पर देरी से ईएमआई देने का आरोप लगाते हुए प्लॉट के कागजात देने से इनकार कर दिया. अवधेश पांडेय ने 1998 में जिला उपभोक्ता फोरम में केस दाखिल किया.

ये भी पढ़ें: खराब लैपटॉप का रिफंड देने में लगाया डेढ़ साल का समय, उपभोक्ता अदालत ने अमेजॉन पर लगाया इतने का जुर्माना

मोहम्मद अली ने बताया कि जिला उपभोक्ता फोरम ने 12 अक्टूबर 2000 को अवधेश पांडेय के पक्ष में फैसला देते हुए बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को सेवा में कमी का दोषी माना. जिला उपभोक्ता फोरम ने कहा कि बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय से देरी से जमा किए गए ईएमआई का ब्याज वसूला. जिला उपभोक्ता फोरम की ओर से मांगे जाने पर बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड बकाया रकम की जानकारी नहीं दे सका. यहां तक कि हाउसिंग बोर्ड वह नोटिस भी नहीं दिखा सका जो उसने अवधेश पांडेय को ईएमआई देरी से जमा करने पर जारी किया था. जिला उपभोक्ता फोरम ने हाउसिंग बोर्ड को आदेश दिया कि वे अवधेश पांडेय को प्लॉट से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराएं.

जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने पांच साल के बाद 2015 में बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी. बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम ने 20 फरवरी 2015 को हाउसिंग बोर्ड की याचिका खारिज कर दी. इस बीच अवधेश पांडेय की मौत हो गई. याचिका खारिज करने के 6 साल बाद हाउसिंग बोर्ड ने 2021 में बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम में याचिका दायर कर फिर से सुनवाई की मांग की. बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम ने कहा कि छह साल की देरी के बाद उसे याचिका पर सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार नहीं है. उसके बाद हाउसिंग बोर्ड ने राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में याचिका दाखिल की.

ये भी पढ़ें: उपभोक्ता अदालत में अगर वकील ने दी खराब सेवा तो उस पर नहीं कर पाएंगे मुकदमा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने हाउसिंग बोर्ड की याचिका पर सुनवाई करते हुए अवधेश पांडेय के पुत्र और पत्नी को पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया था. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने पाया कि जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश में कोई गड़बड़ी नहीं है. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि एक चौथाई सदी बीतने के बाद दूसरी पीढ़ी को इस केस में घसीटा जाना राज्य सरकार की ओर से प्रताड़ना का एक जीता जागता सबूत है. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को लागू करने का आदेश देते हुए बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.

ये भी पढ़ें: कंज्यूमर कोर्ट ने ट्रैवल एजेंसी पर लगाया एक करोड़ रुपये का जुर्माना, पूर्व मुख्य सचिव की बहू की मौत से जुड़ा है मामला

नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने 26 साल पुराने एक मामले में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जस्टिस एपी शाही और जस्टिस इंदरजीत सिंह की बेंच ने बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक चौथाई सदी बीत चुकी है. याचिकाकर्ता की मौत के बाद उसकी दूसरी पीढ़ी को भी इस केस में घसीटा गया और उसे प्रताड़ित किया गया. ऐसी स्थिति में लोगों का सिस्टम पर से भरोसा उठ जाएगा.

दरअसल अवधेश पांडेय नामक व्यक्ति ने 80 के दशक में मोतीहारी में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड के एक प्रोजेक्ट में प्लॉट खरीदा. सुनवाई के दौरान अवधेश पांडेय के पुत्र और पत्नी की ओर से पेश वकील मोहम्मद अली, शिवेश गर्ग और छत्रेश कुमार साहू ने कहा कि अवधेश पांडेय इस प्लाट की ईएमआई बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को देते रहे. बीच में कुछ ईएमआई का भुगतान वह नहीं कर सके. इसके बाद बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय पर देरी से ईएमआई देने का आरोप लगाते हुए प्लॉट के कागजात देने से इनकार कर दिया. अवधेश पांडेय ने 1998 में जिला उपभोक्ता फोरम में केस दाखिल किया.

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मोहम्मद अली ने बताया कि जिला उपभोक्ता फोरम ने 12 अक्टूबर 2000 को अवधेश पांडेय के पक्ष में फैसला देते हुए बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को सेवा में कमी का दोषी माना. जिला उपभोक्ता फोरम ने कहा कि बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय से देरी से जमा किए गए ईएमआई का ब्याज वसूला. जिला उपभोक्ता फोरम की ओर से मांगे जाने पर बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड बकाया रकम की जानकारी नहीं दे सका. यहां तक कि हाउसिंग बोर्ड वह नोटिस भी नहीं दिखा सका जो उसने अवधेश पांडेय को ईएमआई देरी से जमा करने पर जारी किया था. जिला उपभोक्ता फोरम ने हाउसिंग बोर्ड को आदेश दिया कि वे अवधेश पांडेय को प्लॉट से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराएं.

जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने पांच साल के बाद 2015 में बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी. बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम ने 20 फरवरी 2015 को हाउसिंग बोर्ड की याचिका खारिज कर दी. इस बीच अवधेश पांडेय की मौत हो गई. याचिका खारिज करने के 6 साल बाद हाउसिंग बोर्ड ने 2021 में बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम में याचिका दायर कर फिर से सुनवाई की मांग की. बिहार राज्य उपभोक्ता फोरम ने कहा कि छह साल की देरी के बाद उसे याचिका पर सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार नहीं है. उसके बाद हाउसिंग बोर्ड ने राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में याचिका दाखिल की.

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राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने हाउसिंग बोर्ड की याचिका पर सुनवाई करते हुए अवधेश पांडेय के पुत्र और पत्नी को पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया था. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने पाया कि जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश में कोई गड़बड़ी नहीं है. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि एक चौथाई सदी बीतने के बाद दूसरी पीढ़ी को इस केस में घसीटा जाना राज्य सरकार की ओर से प्रताड़ना का एक जीता जागता सबूत है. राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को लागू करने का आदेश देते हुए बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.

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