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ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग के पूजा-पाठ के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की अर्जी खारिज - Gyanvapi Case - GYANVAPI CASE

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में पूजा-पाठ की अनुमति को लेकर दाखिल अर्जी के विरोध में मुस्लिम पक्ष ने भी अर्जी दाखिल की थी. जिसे सिविल जज ने खारिज कर दिया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 17, 2024, 8:33 PM IST

वाराणसी: सिविल जज (सीनियर डिविजन) हितेश अग्रवाल की कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में अर्जेंट पूजा-पाठ और राग भोग सहित अन्य मांगों के वाद के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल पोषणीयता योग्य नहीं की अर्जी खारिज कर दी है. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 20 मई की तिथि नियत की है.

गौरतलब है कि शैलेंद्र योगी राज की ओर से पिछले साल ज्ञानवापी परिसर में पूजा-पाठ और राग भोग करने की अनुमति मांगी थी. इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़ा करते हुए अर्जी देकर केस खारिज करने की मांग की गई थी. मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है. यहां वाराणसी और आसपास के मुस्लिम पांचों वक्त की नमाज अदा करते हैं. संसद ने दी प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया. इसमें प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे. ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है. इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को है. ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है. मुकदमा कानूनन निरस्त किए जाने लायक है.

वहीं, शैलेंद्र योगी के अधिवक्ता एसके दिवर्दी का कहना था की कोर्ट कमीशन की कार्यवाही के दौरान मिली शिवलिंग की आकृति की पूजा-पाठ, राग-भोग व आरती करना उसका सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए. जो आकृति मिले हैं, इसे प्रमाणित होता है कि वह मंदिर ही है. वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है. वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी. यह भी कहा गया कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है. सदियों से हिंदुओं को पीड़ा देना उनका उद्देश्य रहा था. मंदिरों के सारे साक्ष्य छोड़े हुए थे. मुस्लिम पक्ष की अर्जी को खारिज करते हुए वाद को सुना जाए.

लार्ड काशी विश्वेश्वर मूल केस में भी हुई सुनवाई
वहीं, वर्ष 1991 के प्राचीन लार्ड काशी विश्वेश्वर मूल केस में सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रशांत कुमार सिंह की अदालत में शुक्रवार को सुनवाई हुई. शैलेन्द्र पाठक व जैनेन्द्र पाठक को पक्षकार बनाये जाने के अर्जी पर सभी पक्षों के बहस पूरी हो गई है. मामले में इस अर्जी पर आदेश के लिए कोर्ट ने 24 मई की तिथि नियत की है. पिछले तिथि पर शैलेंद्र की ओर से अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी और सुभाष चंद्र चतुर्वेदी ने दलील पेश की थी. इसके बाद वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने भी बहस की. शुक्रवार को प्रतिवादी अंजुमन और सुनी वक्फ बोर्ड की ओर से मुमताज अहमद, मो. अखलाक और मो. तौहीद खान ने पक्षकार बनाने का विरोध किया. कहा कि शैलेंद्र पाठक अन्य की ओर से कई अर्जी दाखिल की गई है, जो ज्ञानवापी से सबंधित है. अपना पक्ष उक्त मुकदमे में रख सकते हैं जो कि इस मुकदमे में पक्षकार बनाने की कोशिश कर रहे. इस मुकदमे में सिर्फ व्यवधान डाला जा रहा है.

जनप्रतिनिधि वाद में वादी के मृत्यु के बाद उनके व्यक्तिगत वारिसान पक्षकार नही बन सकते हैं. ये विधि के स्थापित सिद्धांत नहीं है. इस लिए शैलेंद्र पाठक और अन्य की अर्जी खारिज करने के अनुरोध किया. इसके जवाब में शैलेंद्र व्यास की की ओर से कहा गया की उसे न कोई व्यक्तिगत लाभ है, न ही कोई हित है. सिर्फ अपने अधिकार के तहत पक्षकार बनाने की गुहार लगाया, ताकि मुकदमे की पैरवी में मजबूती मिले. वाद मित्र ने भी जवाब में कहा कि शैलेंद्र पाठक को विधिक रूप से कोई अधिकार नहीं है, पक्षकार बनाने के लिए जो उनके तरस से दी जा रही. सिर्फ संवेदन भाव से दी जा रही है, जो कानून के दृष्टि में उचित नहीं है.

इसे भी पढ़ें-ज्ञानवापी के मूल वाद को लेकर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई आज, जानिए किन मामलों पर होगी बहस

वाराणसी: सिविल जज (सीनियर डिविजन) हितेश अग्रवाल की कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में अर्जेंट पूजा-पाठ और राग भोग सहित अन्य मांगों के वाद के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल पोषणीयता योग्य नहीं की अर्जी खारिज कर दी है. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 20 मई की तिथि नियत की है.

गौरतलब है कि शैलेंद्र योगी राज की ओर से पिछले साल ज्ञानवापी परिसर में पूजा-पाठ और राग भोग करने की अनुमति मांगी थी. इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़ा करते हुए अर्जी देकर केस खारिज करने की मांग की गई थी. मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है. यहां वाराणसी और आसपास के मुस्लिम पांचों वक्त की नमाज अदा करते हैं. संसद ने दी प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया. इसमें प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे. ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है. इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को है. ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है. मुकदमा कानूनन निरस्त किए जाने लायक है.

वहीं, शैलेंद्र योगी के अधिवक्ता एसके दिवर्दी का कहना था की कोर्ट कमीशन की कार्यवाही के दौरान मिली शिवलिंग की आकृति की पूजा-पाठ, राग-भोग व आरती करना उसका सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए. जो आकृति मिले हैं, इसे प्रमाणित होता है कि वह मंदिर ही है. वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है. वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी. यह भी कहा गया कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है. सदियों से हिंदुओं को पीड़ा देना उनका उद्देश्य रहा था. मंदिरों के सारे साक्ष्य छोड़े हुए थे. मुस्लिम पक्ष की अर्जी को खारिज करते हुए वाद को सुना जाए.

लार्ड काशी विश्वेश्वर मूल केस में भी हुई सुनवाई
वहीं, वर्ष 1991 के प्राचीन लार्ड काशी विश्वेश्वर मूल केस में सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रशांत कुमार सिंह की अदालत में शुक्रवार को सुनवाई हुई. शैलेन्द्र पाठक व जैनेन्द्र पाठक को पक्षकार बनाये जाने के अर्जी पर सभी पक्षों के बहस पूरी हो गई है. मामले में इस अर्जी पर आदेश के लिए कोर्ट ने 24 मई की तिथि नियत की है. पिछले तिथि पर शैलेंद्र की ओर से अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी और सुभाष चंद्र चतुर्वेदी ने दलील पेश की थी. इसके बाद वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने भी बहस की. शुक्रवार को प्रतिवादी अंजुमन और सुनी वक्फ बोर्ड की ओर से मुमताज अहमद, मो. अखलाक और मो. तौहीद खान ने पक्षकार बनाने का विरोध किया. कहा कि शैलेंद्र पाठक अन्य की ओर से कई अर्जी दाखिल की गई है, जो ज्ञानवापी से सबंधित है. अपना पक्ष उक्त मुकदमे में रख सकते हैं जो कि इस मुकदमे में पक्षकार बनाने की कोशिश कर रहे. इस मुकदमे में सिर्फ व्यवधान डाला जा रहा है.

जनप्रतिनिधि वाद में वादी के मृत्यु के बाद उनके व्यक्तिगत वारिसान पक्षकार नही बन सकते हैं. ये विधि के स्थापित सिद्धांत नहीं है. इस लिए शैलेंद्र पाठक और अन्य की अर्जी खारिज करने के अनुरोध किया. इसके जवाब में शैलेंद्र व्यास की की ओर से कहा गया की उसे न कोई व्यक्तिगत लाभ है, न ही कोई हित है. सिर्फ अपने अधिकार के तहत पक्षकार बनाने की गुहार लगाया, ताकि मुकदमे की पैरवी में मजबूती मिले. वाद मित्र ने भी जवाब में कहा कि शैलेंद्र पाठक को विधिक रूप से कोई अधिकार नहीं है, पक्षकार बनाने के लिए जो उनके तरस से दी जा रही. सिर्फ संवेदन भाव से दी जा रही है, जो कानून के दृष्टि में उचित नहीं है.

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