भोपाल। 1952 में भोपाल के पहले लोकसभा चुनाव में एक बेगम का टिकट कटवाने की लड़ाई दिल्ली दरबार तक किसने पहुंचाई थी. क्यों मौलाना आजाद ने काटा था इस बेगम का टिकट. कौन थी वो बेगम जिन्हें हराने के लिए जनसंघ को दक्षिण भारत के एक नेता को भोपाल से उतारना पड़ा. वो कौन मजाहिया शायर था, जो जीता तो नहीं लेकिन मैमूना सुल्तान की हार की वजह बन गया. भोपाल के इतिहास पर गहरा शोध कर रहे इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी ने बताए भोपाल की चुनावी राजनीति से जुड़े दिलचस्प हिस्से और किस्से.
क्यों फाइनल होने के बाद कटा भोपाल की बेगम का टिकट
1952 में जब भोपाल लोकसभा सीट का पहला चुनाव देख रहा था. तब इस सीट से बेगम साजिदा सुल्तान को कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बनाया गया. बेगम साजिदा सुल्तान नवाब हमीदुल्ला खां की बेटी और नवाब मंसूर अली खान पटौदी की मां थी. इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी बताते हैं, 'साजिदा सुल्तान का टिकट फाइनल हो चुका था. लेकिन भोपाल से ही सईदुल्ला खां रजमी टिकट मांग रहे थे. रजमी भी फ्रीडम फाइटर थे. रजमी को जैसे ही मालूम चला कि उनका टिकट काट दिया गया है, तो वे दिल्ली पहुंचे और सीधे मौलाना आजाद के पास गए. मौलाना आजाद उस समय कांग्रेस के माइनॉरिटी विंग के इंचार्ज थे. जब सईदुल्ला उनसे मिलने पहुंचे, तो वे कहीं बाहर से लौटे थे.
उनके पीए ने कहा कि अभी वो कहीं से आए हैं थके हुए हैं. सईदुल्लाह ने कहा कि आप मेरा कह दीजिए कि भोपाल से सईदुल्लाह आया है. मौलाना ने उस समय शेरवानी उतारी थी और खूंटी पर टांगी ही थी. जैसे ही उन्हें मालूम चला की सईदुल्लाह खां रजमी आए हैं. भोपाल से तो वो फौरन बाहर आए और उन्होंने पूछा कि कैसे आए सईदुल्लाह ने जवाब दिया साहब मेरा तो टिकट कट गया. साजिदा सुल्तान को टिकट मिल गया. मौलाना ने उसी वक्त गाड़ी निकलवाई और एआईसीसी दफ्तर पहुंचे और जो उस समय कांग्रेस में जिममेदार लोग थे, उनसे कहा कि जिन लोगों के खिलाफ हम लड़ते रहे. जिनके खिलाफ हम आजादी की लड़ाई लड़ते रहे आप उनको टिकट देंगे क्या. माइनॉरिटी में किसे टिकट देना है, किसे नहीं ये मेरा काम है आपका नहीं. बस उसके बाद साजिदा सुल्तान का टिकट कटा और रजमी को मिल गया.
भोपाल की बेगम को हराने आए कर्नाटक से केसरी
1957 का लोकसभा चुनाव जिसमें भोपाल सीट से मैमूना सुल्तान को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था. मैमूना सुल्तान भोपाल की इतनी मजबूत उम्मीदवार साबित हुईं कि 1962 के चुनाव में फिर जीत गई. सैय्यद खालिद गनी बताते हैं, यानि मैमूना सुल्तान जनसंघ के लिए मुश्किल बन गई थीं. हालांकि उस समय मैं तो स्कूल में पढ़ता था, लेकिन तब जो मुझे याद है कि कर्नाटक से जगन्नाथ राव जोशी कर्नाटक के केसरी को बुलाया गया था. बाकायदा दीवारों पर उनका नाम कर्नाटक केसरी. सिर्फ इसलिए कि वे मैमूना सुल्तान को हरा सके. मैमूना जिस चुनाव में हारी वो भी दिलचस्प किस्सा है.
मैमूना सुल्तान एक कहानीकार की वजह से हारीं
1962 के बाद 1967 के चुनाव में मैमूना को हराने के लिए हास्य व्यंग्य में लिखने वाले अब्दुल अहद खां को उम्मीदवार बनाया गया. सैय्याद खालिद गनी बताते हैं कि निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे खां साहब. चूंकि वो चर्चित थे, तो तीन हजार के करीब वोट उन्हें भी मिले और उन्होंने असल में मैमूना सुल्तान के वोट काटे. गुलाब का फूल उनका चुनाव चिन्ह था. मैमूना सुल्तान की उस चुनाव के बाद वापिसी नहीं हो सकी, लेकिन कांग्रेस की जीत का सफर जारी रहा.
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तब एक महीने के लिए टाल दिया गया था चुनाव
सैय्याद खालिद गनी बताते हैं फिर 1972 के लोकसभा चुनाव मे शंकरदयाल शर्मा चुनाव जीते. 1977 में आरिफ बेग भोपाल से चुनाव जीते. 1980 में फिर डॉ शंकरदयाल शर्मा भोपाल लोकसभा सीट से सांसद बने. फिर 1984 का वो चुनाव भी आया, जब एक महीने के लिए चुनाव रोक दिए गए थे, क्योंकि गैस त्रासदी हुई थी. खालिद गनी बताते हैं कांग्रेस की आखिरी जीत के एन प्रधान की ही हुई. उनके बाद कांग्रेस ने मंसूर अली खान पटौदी, सुरेश पचौरी सैय्यद साजिद अली सबको चुनाव लड़ा लिया लेकिन कांग्रेस जीत नहीं पाई.