सागर। संघ के सच्चे सिपाही और जमीन से जुडे़ सहज सरल नेता की छवि वाले केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार को बुंदेलखंड के अजेय योद्धा के तौर पर भी जाना जाता है, क्योंकि अब तक वो जितने भी लोकसभा चुनाव लडे़ हैं, किसी में हार नहीं हुई और परिसीमन के कारण सागर सीट छोड़कर टीकमगढ़ जाना पड़ा, तो वहां भी झंडा गाड़ दिया. वैसे तो डाॅ वीरेन्द्र कुमार अर्थशास्त्र में पीजी और सागर यूनिवर्सटी से बाल श्रम में पीएचडी कर चुके हैं, लेकिन उनका बचपन काफी संघर्ष भरा बीता.
वीरेंद्र खटीक के पिता की साइकिल की दुकान थी. करीब 10 साल डाॅ वीरेन्द्र खटीक ने पिता की साइकिल दुकान चलाई. उनके पास एक पुराना स्कूटर है. जिसकी आज कीमत महज 6 हजार रुपए है. मंत्री होते हुए भी वीरेन्द्र खटीक स्कूटर पर घूमते नजर आ जाएंगे. डॉ वीरेन्द्र कुमार का साइकिल की दुकान पर पंचर सुधारने और स्कूटर की सवारी से सीधे लाल बत्ती की गाड़ी तक का सफर काफी दिलचस्प है.
वीरेन्द्र कुमार पहली बार 1996 में सागर (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट) से सांसद चुने गए और लगातार 2004 तक चार बार सांसद बने. इसके बाद 2008 के परिसीमन से सागर सीट अनारक्षित हो गयी और टीकमगढ़ आरक्षित होने पर 2009 लोकसभा से टीकमगढ़ से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं. इस बार वीरेन्द्र कुमार फिर टीकमगढ़ में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं.
पढ़ाई के साथ चलाई पिता की पंचर की दुकान
केंद्रीय मंत्री डाॅ वीरेन्द्र खटीक की बात करें, तो 27 फरवरी 1954 को उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ. उनके पिता आरएसएस के समर्पित स्वयंसेवक थे और परिवार के जीवन यापन के लिए सागर में उनकी एक साइकिल की दुकान थी. वीरेन्द्र कुमार अपने पिता की दुकान पर मदद के लिए साथ बैठते थे और साइकिल सुधारने और पंचर बनाने का काम करते थे. अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने करीब दस साल तक पिता की साइकिल की दुकान चलाई. आज जब वीरेन्द्र खटीक केंद्रीय मंत्री बन गए हैं. तब भी किसी साइकिल रिपेयरिंग वाले को देखते हैं, तो उसे साइकिल और पंचर बनाने के टिप्स देते नजर आ जाते हैं. खुद जमीन पर बैठकर बताते हैं कि पंचर कैसे बनाएं कि अच्छा बने.
पढ़ाई के साथ राजनीति और आपातकाल में जेलयात्रा
पिता की साइकिल की दुकान पर हाथ बंटाने के साथ-साथ वीरेन्द्र कुमार ने सागर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा पूरी की. उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया और इसी दौरान एबीव्हीपी से जुड़ गए. संघ और एबीव्हीपी से छात्र राजनीति शुरू करने के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला महासचिव बने और आपात काल का जमकर विरोध किया. करीब 16 महीने जेल में काटे. जेल से आने के बाद वीरेन्द्र कुमार राजनीति में सक्रिय हो गए और भाजपा संगठन में कई अहम पदों पर काम किया. वीरेन्द्र कुमार की पत्नी का नाम कमल है. उनका एक बेटा और तीन बेटियां हैं.
1996 में लड़ा पहला चुनाव और लगातार जीत
डाॅ वीरेन्द्र खटीक को पहला मौका 1996 में मिला, जब सागर (आरक्षित) लोकसभा सीट से उन्हें 1996 में टिकट मिला. वीरेन्द्र खटीक ने अपने पहले चुनाव में शानदार जीत हासिल की और फिर जीत का सिलसिला लगातार बरकरार रखा. 1996 के बाद 1998, 1999 और 2004 तक लगातार चार बार सागर से सांसद चुने गए और सागर में कांग्रेस का विजयी रथ रोकने का काम किया, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद सागर सीट अनारक्षित हो गयी और सागर संभाग की टीकमगढ़ सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गयी. वीरेन्द्र खटीक को सागर के बाद 2009 में टीकमगढ़ चुनाव लड़ने भेजा गया. 2009 से लेकर 2014 और 2019 तक वीरेन्द्र खटीक लगातार सांसद बने और 2024 में फिर चुनाव मैदान में हैं.
2017 में पहली बार केंद्र में मंत्री बने
डाॅ वीरेन्द्र कुमार की बात करें, तो वीरेन्द्र कुमार मोदी सरकार में पहली बार 2 सितंबर 2017 को मंत्री बने. उन्हें महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया. वहीं 2019 में मोदी सरकार दोबारा बनने और डाॅ वीरेन्द्र खटीक के लगातार सातवीं बार चुनाव जीतने पर उन्हें जुलाई 2021 में फिर मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया. इस बार उन्हें केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री बनाया गया.
2019 में लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर बने
लगातार सातवीं बार विधानसभा चुनाव जीते डाॅ वीरेन्द्र खटीक को 2019 में फिर से मोदी सरकार चुने जाने पर प्रोटेम स्पीकर बनाया गया. 17 जून 2019 को वीरेन्द्र खटीक ने प्रोटेम स्पीकर के तौर पर शपथ ली और निर्वाचित सांसदों की शपथ करायी. उनके संसदीय जीवन की ये बड़ी उपलब्धि है.
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मंत्री बनने के बाद भी सादा जीवन
डाॅ वीरेन्द्र खटीक की बात करें, तो उनकी पहचान उनके सादगी भरे जीवन के कारण है. दो बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी वीरेन्द्र खटीक आज भी अपने कई साल पुराने महज 6 हजार रूपए कीमत के हरे रंग के स्कूटर पर नजर आ जाते हैं. सागर हो या टीकमगढ़ अगर आपको केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार स्कूटर चलाते मिल जाएं, तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए. टीकमगढ़ सांसद बनने के बाद वह सपरिवार टीकमगढ़ में रहते हैं और टीकमगढ़ में रहते हुए अपनी पत्नी के साथ बाजार में खरीददारी करने भी स्कूटर पर निकल जाते हैं.