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उत्तराखंड में कब्रगाह बनते ट्रेकिंग रूट, लापरवाह सिस्टम का नहीं कोई नियंत्रण, 9 ट्रेकर्स की मौत के बाद फिर उठे सवाल - people died on trekking routes Uttarakhand

उत्तराखंड में ट्रेकिंग रूट पर बढ़ते हादसों ने एक बार फिर से सिस्टम की खामी पर सवाल खडे़ कर दिए हैं. आखिर क्यों 24 साल के बाद भी उत्तराखंड में ट्रेकिंग को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं बन पाई है. सहस्त्रताल में हुई 9 लोगों की मौत के बाद ये सवाल फिर से उठने लगे हैं.

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उत्तराखंड में कब्रगाह बनते ट्रैकिंग रुट्स (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 8, 2024, 2:12 PM IST

Updated : Jun 8, 2024, 5:46 PM IST

उत्तराखंड में कब्रगाह बनते ट्रेकिंग रूट (ईटीवी भारत.)

देहरादून: ना कोई प्लान ना कोई नियंत्रण. उत्तराखंड के ट्रेकिंग रूट्स पर पिछले कुछ समय में ट्रैफिक बेतहाशा बढ़ा है. निसंदेह ये हालात उत्तराखंड राज्य के लिए एक सुखद अनुभव से कम नहीं, लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है, जब ट्रेक रूट्स पर चल रहा पूरा सिस्टम डीरेल हो जाए. जी हां कुछ यही हालात उत्तराखंड के ट्रेक रूट्स पर भी दिख रहे हैं. दरअसल, इसकी वजह कोई मामूली नहीं बल्कि सरकार और सिस्टम की वो इग्नोरेंस है, जिसके कारण प्रदेश के तमाम ट्रेक रूट्स हादसों का उदाहरण बन रहे हैं. सहस्त्रताल में 9 ट्रेकर्स की मौत ऐसी ही रेगुलेटरी बॉडी की कमी को जाहिर करती है. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

पिछले कुछ समय के दौरान हिमालयी राज्यों में ट्रेकिंग का जुनून बढ़ा है. शायद यही कारण है कि न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के लोग हिमालई क्षेत्र में ट्रेकिंग करने के लिए पहुंच रहे हैं. उत्तराखंड भी इन्हीं राज्यों में शुमार है, जहां काफी तेजी से यह व्यवसाय बढ़ रहा है. लेकिन आज मुद्दा यह नहीं है, बल्कि चिंता उन हादसों की है, जो ट्रेकिंग रूट्स पर लगातार ट्रेकर्स की जान जोखिम में डाल रहे हैं.

स्थिति यह है कि पिछले 24 सालों में ट्रेकिंग को लेकर राज्य में कोई भी ठोस SOP (Standard operating procedure) तैयार नहीं की जा सकी है. नतीजतन राज्य में पिछले चार सालों के दौरान 50 से ज्यादा ट्रेकर्स अपनी जान गंवा चुके हैं.

उत्तराखंड में ट्रेकिंग के दौरान हादसों को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े बिंदुवार समझिए

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उत्तराखंड में बीते कुछ सालों में ट्रेकिंग रूट पर हुई मौत. (ईटीवी भारत.)

6 सालों में 64 लोगों की गई जान: इस तरह उत्तराखंड में ट्रेकिंग के दौरान कई लोगों की मौत हो चुकी है. साल 2018-19 में 8 लोगों की मौत रिकॉर्ड की गई थी. उसके बाद साल 2020-21 में भी करीब 12 लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद 2022 में 30 से ज्यादा लोगों की मौत थी, साल 2023 में भी तीन लोगों ने ट्रेकिंग के दौरान जान गंवाई, जबकि इस साल करीब 11 लोगों की जान जा चुकी है. कुल मिलाकर देखा जाए तो हर साल उत्तराखंड आने वाले कई ट्रेकर्स अपनी जान गवा रहे हैं.

ट्रेकिंग को लेकर उत्तराखंड में नहीं कोई नियमावली: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के ट्रेकिंग रूट्स बेहद ज्यादा कठिन हैं, बल्कि ट्रेकर्स की मौत के पीछे की वजह प्रदेश में ट्रेकिंग व्यवसाय के लिए कोई नियम ना होना है. पिछले कई सालों से इस व्यवसाय में जुड़े रहने वाले मंजुल रावत कहते हैं कि राज्य में ट्रेकिंग को लेकर कोई भी नियमावली ना होने से परेशानी आ रही है. ऐसे में प्रदेश में एक मजबूत और बेहतर पॉलिसी की जरूरत है.

उत्तराखंड में ट्रेकिंग रूट्स पर बढ़ रहे हादसे: मंजूल रावत कहते हैं कि ट्रेकिंग के लिए ज्यादा लोग उत्तराखंड आ रहे हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई स्टैंडर्ड पालिसी न होने से हादसे बढ़ रहे हैं. ट्रेकिंग को लेकर ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनको ध्यान में रखना बेहद जरूरी है. मसलन ट्रेकिंग के लिए आने वाले ट्रेकर्स के लिए एक निश्चित मानक, उनके स्वास्थ्य की स्थिति और ट्रेंड पोटर्स होना बेहद जरूरी है.

ट्रेनिंग की जरूरत: इसके अलावा इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की ट्रेनिंग भी बेहद जरूरी है, जिसे पॉलिसी में शामिल किया जाना चाहिए. वहीं जो भी लोग ट्रेकिंग करवा रहे हैं, उनका सरकार में रजिस्टर्ड होना भी जरूरी है. इसके अलावा इसके लिए एक गवर्निंग बॉडी भी बनाई जानी चाहिए, ताकि इस पूरे व्यवसाय को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया जा सके.

ट्रेकिंग में व्यवस्थाएं बनाने के लिए जिम्मेदार विभाग ही नहीं तय: वैसे तो ट्रेकिंग का व्यवसाय उत्तराखंड में सालाना 100 करोड़ से ज्यादा का है, लेकिन इसके व्यवस्थित न होने के कारण इस व्यवसाय को ठीक से आगे नहीं बढ़ाया जा पा रहा है. जबकि सरकार इस पर ध्यान दे तो प्रदेश को भी इससे अच्छा राजस्व प्राप्त हो सकता है. इस दौरान विभागों का आपस में तालमेल भी नहीं रहता.

कमाई के बजाए सरकार का खर्च बढ़ रहा: पर्यटन विभाग इसे वन विभाग के पाले में डालने की कोशिश करता है तो वन विभाग भी इसकी पूरी जिम्मेदारी लेने से बचता है. वैसे तो इस व्यवसाय से ज्यादा फायदा राज्य को होना चाहिए, लेकिन उल्टा उत्तराखंड को हर साल इससे जुड़े हादसों के लिए पैसा बहाना पड़ता है. कई बार हेलीकॉप्टर किराए पर लेकर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने पड़ते हैं तो राज्य सरकार की तरफ से ट्रेकिंग के दौरान होने वाले हादसों के लिए कई दिनों तक के अभियान भी चलने होते हैं, जिससे सरकार को राजस्व का भी नुकसान होता है.

सिस्टम से काम करें तो हादसों में आ सकती है कमी: हालांकि यह राज्य की जिम्मेदारी है, लेकिन यदि नियम कानून के हिसाब से ट्रेकिंग को करवाया जाए तो ऐसे हादसों में काफी कमी लाई जा सकती है. ट्रेकिंग के दौरान होने वाले हादसों को लेकर समय-समय पर एसडीआरएफ की तरफ से अभियान चलाए जाते हैं. उत्तराखंड की एसडीआरएफ आपदा की स्थिति में रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए ट्रेंड की गई है और हर साल एसडीआरएफ की तरफ से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन किए गए हैं.

नींद से जागी सरकार: सहस्त्रताल में हुई घटना के बाद अब सरकार ट्रेकिंग को लेकर नींद से जागी है. राज्य सरकार ने अब ट्रेकिंग के लिए एक निश्चित SOP बनाने का प्लान किया है. इसके लिए बाकायदा मुख्य सचिव की अध्यक्षता में वन विभाग और पर्यटन विभाग के साथ ही गृह विभाग की भी बैठक ली गई है, ताकि इसके लिए एक निश्चित नियम कानून तय हो और ऐसे हादसों में कमी लाई जा सके.

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि ट्रेकिंग करने वालों के लिए एक क्लियर गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए और इसके लिए काम किया जा रहा है. मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के अनुसार ट्रेकिंग रूट पर फोन की कनेक्टिविटी के लिए भी विशेष रूप से प्रबंध करने के लिए कहा गया है, ताकि ऐसी घटनाओं को कम से कम किया जा सके.

कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार के पास कोई एक्शन प्लान नहीं है और इसका खामियाजा उत्तराखंड में आने वाले ट्रेकर्स को भुगतना पड़ता है. बरहाल अभी इसको लेकर कोई निश्चित व्यवस्था तैयार की जाए तो भविष्य में ऐसे हालात पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

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उत्तराखंड में कब्रगाह बनते ट्रेकिंग रूट (ईटीवी भारत.)

देहरादून: ना कोई प्लान ना कोई नियंत्रण. उत्तराखंड के ट्रेकिंग रूट्स पर पिछले कुछ समय में ट्रैफिक बेतहाशा बढ़ा है. निसंदेह ये हालात उत्तराखंड राज्य के लिए एक सुखद अनुभव से कम नहीं, लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है, जब ट्रेक रूट्स पर चल रहा पूरा सिस्टम डीरेल हो जाए. जी हां कुछ यही हालात उत्तराखंड के ट्रेक रूट्स पर भी दिख रहे हैं. दरअसल, इसकी वजह कोई मामूली नहीं बल्कि सरकार और सिस्टम की वो इग्नोरेंस है, जिसके कारण प्रदेश के तमाम ट्रेक रूट्स हादसों का उदाहरण बन रहे हैं. सहस्त्रताल में 9 ट्रेकर्स की मौत ऐसी ही रेगुलेटरी बॉडी की कमी को जाहिर करती है. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

पिछले कुछ समय के दौरान हिमालयी राज्यों में ट्रेकिंग का जुनून बढ़ा है. शायद यही कारण है कि न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के लोग हिमालई क्षेत्र में ट्रेकिंग करने के लिए पहुंच रहे हैं. उत्तराखंड भी इन्हीं राज्यों में शुमार है, जहां काफी तेजी से यह व्यवसाय बढ़ रहा है. लेकिन आज मुद्दा यह नहीं है, बल्कि चिंता उन हादसों की है, जो ट्रेकिंग रूट्स पर लगातार ट्रेकर्स की जान जोखिम में डाल रहे हैं.

स्थिति यह है कि पिछले 24 सालों में ट्रेकिंग को लेकर राज्य में कोई भी ठोस SOP (Standard operating procedure) तैयार नहीं की जा सकी है. नतीजतन राज्य में पिछले चार सालों के दौरान 50 से ज्यादा ट्रेकर्स अपनी जान गंवा चुके हैं.

उत्तराखंड में ट्रेकिंग के दौरान हादसों को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े बिंदुवार समझिए

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उत्तराखंड में बीते कुछ सालों में ट्रेकिंग रूट पर हुई मौत. (ईटीवी भारत.)

6 सालों में 64 लोगों की गई जान: इस तरह उत्तराखंड में ट्रेकिंग के दौरान कई लोगों की मौत हो चुकी है. साल 2018-19 में 8 लोगों की मौत रिकॉर्ड की गई थी. उसके बाद साल 2020-21 में भी करीब 12 लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद 2022 में 30 से ज्यादा लोगों की मौत थी, साल 2023 में भी तीन लोगों ने ट्रेकिंग के दौरान जान गंवाई, जबकि इस साल करीब 11 लोगों की जान जा चुकी है. कुल मिलाकर देखा जाए तो हर साल उत्तराखंड आने वाले कई ट्रेकर्स अपनी जान गवा रहे हैं.

ट्रेकिंग को लेकर उत्तराखंड में नहीं कोई नियमावली: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के ट्रेकिंग रूट्स बेहद ज्यादा कठिन हैं, बल्कि ट्रेकर्स की मौत के पीछे की वजह प्रदेश में ट्रेकिंग व्यवसाय के लिए कोई नियम ना होना है. पिछले कई सालों से इस व्यवसाय में जुड़े रहने वाले मंजुल रावत कहते हैं कि राज्य में ट्रेकिंग को लेकर कोई भी नियमावली ना होने से परेशानी आ रही है. ऐसे में प्रदेश में एक मजबूत और बेहतर पॉलिसी की जरूरत है.

उत्तराखंड में ट्रेकिंग रूट्स पर बढ़ रहे हादसे: मंजूल रावत कहते हैं कि ट्रेकिंग के लिए ज्यादा लोग उत्तराखंड आ रहे हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई स्टैंडर्ड पालिसी न होने से हादसे बढ़ रहे हैं. ट्रेकिंग को लेकर ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनको ध्यान में रखना बेहद जरूरी है. मसलन ट्रेकिंग के लिए आने वाले ट्रेकर्स के लिए एक निश्चित मानक, उनके स्वास्थ्य की स्थिति और ट्रेंड पोटर्स होना बेहद जरूरी है.

ट्रेनिंग की जरूरत: इसके अलावा इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की ट्रेनिंग भी बेहद जरूरी है, जिसे पॉलिसी में शामिल किया जाना चाहिए. वहीं जो भी लोग ट्रेकिंग करवा रहे हैं, उनका सरकार में रजिस्टर्ड होना भी जरूरी है. इसके अलावा इसके लिए एक गवर्निंग बॉडी भी बनाई जानी चाहिए, ताकि इस पूरे व्यवसाय को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया जा सके.

ट्रेकिंग में व्यवस्थाएं बनाने के लिए जिम्मेदार विभाग ही नहीं तय: वैसे तो ट्रेकिंग का व्यवसाय उत्तराखंड में सालाना 100 करोड़ से ज्यादा का है, लेकिन इसके व्यवस्थित न होने के कारण इस व्यवसाय को ठीक से आगे नहीं बढ़ाया जा पा रहा है. जबकि सरकार इस पर ध्यान दे तो प्रदेश को भी इससे अच्छा राजस्व प्राप्त हो सकता है. इस दौरान विभागों का आपस में तालमेल भी नहीं रहता.

कमाई के बजाए सरकार का खर्च बढ़ रहा: पर्यटन विभाग इसे वन विभाग के पाले में डालने की कोशिश करता है तो वन विभाग भी इसकी पूरी जिम्मेदारी लेने से बचता है. वैसे तो इस व्यवसाय से ज्यादा फायदा राज्य को होना चाहिए, लेकिन उल्टा उत्तराखंड को हर साल इससे जुड़े हादसों के लिए पैसा बहाना पड़ता है. कई बार हेलीकॉप्टर किराए पर लेकर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने पड़ते हैं तो राज्य सरकार की तरफ से ट्रेकिंग के दौरान होने वाले हादसों के लिए कई दिनों तक के अभियान भी चलने होते हैं, जिससे सरकार को राजस्व का भी नुकसान होता है.

सिस्टम से काम करें तो हादसों में आ सकती है कमी: हालांकि यह राज्य की जिम्मेदारी है, लेकिन यदि नियम कानून के हिसाब से ट्रेकिंग को करवाया जाए तो ऐसे हादसों में काफी कमी लाई जा सकती है. ट्रेकिंग के दौरान होने वाले हादसों को लेकर समय-समय पर एसडीआरएफ की तरफ से अभियान चलाए जाते हैं. उत्तराखंड की एसडीआरएफ आपदा की स्थिति में रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए ट्रेंड की गई है और हर साल एसडीआरएफ की तरफ से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन किए गए हैं.

नींद से जागी सरकार: सहस्त्रताल में हुई घटना के बाद अब सरकार ट्रेकिंग को लेकर नींद से जागी है. राज्य सरकार ने अब ट्रेकिंग के लिए एक निश्चित SOP बनाने का प्लान किया है. इसके लिए बाकायदा मुख्य सचिव की अध्यक्षता में वन विभाग और पर्यटन विभाग के साथ ही गृह विभाग की भी बैठक ली गई है, ताकि इसके लिए एक निश्चित नियम कानून तय हो और ऐसे हादसों में कमी लाई जा सके.

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि ट्रेकिंग करने वालों के लिए एक क्लियर गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए और इसके लिए काम किया जा रहा है. मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के अनुसार ट्रेकिंग रूट पर फोन की कनेक्टिविटी के लिए भी विशेष रूप से प्रबंध करने के लिए कहा गया है, ताकि ऐसी घटनाओं को कम से कम किया जा सके.

कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार के पास कोई एक्शन प्लान नहीं है और इसका खामियाजा उत्तराखंड में आने वाले ट्रेकर्स को भुगतना पड़ता है. बरहाल अभी इसको लेकर कोई निश्चित व्यवस्था तैयार की जाए तो भविष्य में ऐसे हालात पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

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Last Updated : Jun 8, 2024, 5:46 PM IST
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