देहरादून (उत्तराखंड): आज के इस डिजिटलाइजेशन के दौर में मोबाइल फोन लोगों के जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है. वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसके पास स्मार्ट फोन न हो. देशभर में ज्यादा जगहों पर 4G की कनेक्टिविटी की सेवा मिल रही है. इसके साथ ही देश के तमाम शहरों में 5G की कनेक्टिविटी भी सेवा पिछले साल में मिलनी शुरू हो गई है. जिससे न सिर्फ इंटरनेट की कनेक्टिविटी बेहतर हो गई है, बल्कि मोबाइल फोन से बातचीत के दौरान आने वाली समस्या भी काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन उत्तराखंड के कई ऐसे गांव हैं, जहां GSM यानी 2G की कनेक्टिविटी सुविधा तक उपलब्ध नहीं है. जिसके चलते उत्तराखंड के 845 गांव मोबाइल कनेक्टिविटी से महरूम हैं.
हर साल 17 मई को दुनियाभर में विश्व दूरसंचार दिवस (World Telecommunication Day 2024) मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य यही है डिजिटल विभाजन को समाप्त कर प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित किया जा सके. उत्तराखंड में तमाम दूरस्थ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आज भी मोबाइल कनेक्टिविटी की कोई सुविधा नहीं है. देश की आजादी को एक लंबा अरसा बीत गया है, लेकिन अभी सैकड़ों ग्रामीण डार्क जोन में हैं.
इतना ही नहीं चुनाव के समय इन क्षेत्रों में तो उस दौरान सैटेलाइट फोन या रेडियो का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उसके बाद गांव पूरी दुनिया से कट जाता है. कुल मिलाकर जहां पूरा देश 5G इस्तेमाल करने की और तेजी से आगे बढ़ रहा है तो वहीं कुछ गांव ऐसे हैं, जहां 2G की भी व्यवस्था नहीं है. इतना ही नहीं कई गांवों में मीलों दूर जाने पर भी फोन पर नेटवर्क नहीं आते हैं, जिससे फोन केवल गाना सुनने, फोटो आदि खींचने तक ही काम आता है.
मोबाइल इस्तेमाल के लिए नेटवर्क कनेक्टिविटी की जरूरत: मौजूदा समय में मोबाइल फोन एक महत्वपूर्ण डिवाइस बन गया है. स्मार्ट फोन के जरिए आज लगभग सभी काम आसानी से किए जा सकते हैं. जबकि पहले डेस्कटॉप या फिर लैपटॉप की जरूरत पड़ती थी. आज के स्मार्ट मोबाइल फोन ने डिजिटल कैमरे की भी जगह ले ली है. हालांकि, फोन को इस्तेमाल करने के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी की एक अहम भूमिका है.
अगर मोबाइल नेटवर्क न हो तो महंगे से महंगा फोन किसी काम का नहीं रह जाता है. फोन के जरिए किसी से बातचीत करने या फिर इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए मोबाइल फोन में नेटवर्क का होना बेहद जरूरी है, लेकिन जब नेटवर्क ही नहीं आता है तो फोन महज शोपीस हो जाता है. ऐसे ही हाल उत्तराखंड के कई गांवों में हैं.
उत्तराखंड के 845 गावों में नहीं है मोबाइल कनेक्टिविटी: उत्तराखंड की बात करें तो विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में विकास करना हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती रही है. यही वजह है कि 9 नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद से अभी तक राज्य को जिस मुकाम पर पहुंचा था, वो मुकाम अभी तक हासिल नहीं हो पाया है.
किसी भी क्षेत्र में विकास को उस क्षेत्र की मूलभूत सुविधाओं से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन प्रदेश के तमाम पर्वतीय क्षेत्र ऐसे हैं. जहा मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, जिसके चलते पलायन का सिलसिला लगातार जारी है. इस आधुनिक युग में उत्तराखंड के 845 गांव ऐसे हैं, जहां के लोग मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट का इस्तेमाल करना तो दूर बल्कि, किसी से बात भी नहीं कर सकते हैं.
उत्तराखंड में 5G कनेक्टिविटी के लिए लगाए गए हैं 5,464 बीटीएस: भारत सरकार के दूरसंचार विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के 16,456 गांवों में से 845 गांव ऐसे हैं. जहां GSM (Global System for Mobile Communications) यानी 2G की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है. जबकि उत्तराखंड के तमाम शहरों में 5G कनेक्टिविटी उपलब्ध कराए जाने को लेकर 5,464 BTS (Base Transceiver Station) लगाए गए हैं.
ताकि, प्रदेश के ज्यादातर शहरों को 5G कनेक्टिविटी से जोड़ा जा सके. इसके अलावा प्रदेशभर में 4G कनेक्टिविटी के लिए 23,836 BTS, 3G कनेक्टिविटी के लिए 2,105 BTS और 2G कनेक्टिविटी के लिए 6,127 BTS मौजूद हैं. हालांकि, ये सभी बीटीएस तमाम नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के हैं. जिनके जरिए नेटवर्क की सुविधा मिल रही है.
चारधाम में मिल रही है 5G कनेक्टिविटी की सुविधा: उत्तराखंड चारधाम यात्रा में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन कई बार मोबाइल कनेक्टिविटी को लेकर श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिसको देखते हुए जियो कंपनी (JIO) की ओर से चारों धामों में 5G कनेक्टिविटी के साथ फाइबर लाइन की भी सुविधा दी जा रही है. वहीं, एयरटेल कंपनी की ओर से सिर्फ दो धाम केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में 5G कनेक्टिविटी की सुविधा दी जा रही है. इसके अलावा बीएसएनएल और अन्य कंपनियों की नेटवर्क कनेक्टिविटी बेहद खराब है.
उत्तराखंड में है 1.42 करोड़ मोबाइल कस्टमर्स: उत्तराखंड में बड़ी संख्या में मोबाइल सब्सक्राइबर हैं. जानकारी के मुताबिक, 30 अप्रैल 2024 तक प्रदेश भर में 1,42,96,913 मोबाइल नेटवर्क यूजर हैं. जिसमें से सबसे ज्यादा मोबाइल नेटवर्क यूजर जियो के 46,10,636 है. इसके साथ ही एयरटेल के 41,87,198 यूजर, वीआई के 41,75,568 यूजर हैं.
वहीं, सबसे कम बीएसएनएल यानी भारत संचार निगम लिमिटेड के 13,23,511 यूजर हैं. इसके साथ ही उत्तराखंड में लगे बीटीएस की बात करें तो जियो के 18,365 बीटीएस, एयरटेल के 10,134 बीटीएस, वीआई के 6,893 बीटीएस और बीएसएनएल के मात्र 2,140 बीटीएस लगे हुए हैं. जिसके जरिए कनेक्टिविटी यूजरों तक पहुंचाई जा रही है.
उत्तराखंड के करीब 2 हजार गांवों में जल्द मिलेगी 4G की सुविधा: भारत सरकार दूरसंचार विभाग, उत्तराखंड रीजन के उप महानिदेशक अशोक कुमार रावत ने बताया कि देशभर के जो अनकवर्ड क्षेत्र हैं, उसको मोबाइल कनेक्टिविटी से जोड़ने के लिए प्रोजेक्ट चल रहा है. इसके तहत उत्तराखंड के 2000 से ज्यादा क्षेत्र चिन्हित किए गए हैं. जहा 4G कनेक्टिविटी की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 587 बीटीएस लगाए जाने हैं. जिसका काम बीएसएनएल कर रहा है.
इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद 4G कनेक्टिविटी विहीन करीब 2000 से ज्यादा गांवों में 4G की सुविधा मिलने लग जाएगी. उत्तराखंड में नेटवर्क की व्यवस्था काफी अच्छी है. करीब 38 हजार बीटीएस (BTS) काम कर रहे हैं. जिसमें से करीब 15 फीसदी बीटीएस 5G के हैं. इसके साथ ही चारधाम में भी 5G की सुविधा दी जा रही है.
भौगोलिक परिस्थितियों के चलते नेटवर्क को मेंटेन करने में आती है दिक्कतें: उप महानिदेशक अशोक कुमार रावत ने बताया कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है. जिसके चलते लैंडस्लाइड या भारी बारिश होने और फॉरेस्ट कवर क्षेत्र होने के चलते नेटवर्क को मेंटेन करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां गर्मियों में लोग रहते हैं, लेकिन ठंड के मौसम में नीचे आ जाते हैं. जिसके चलते उन क्षेत्रों में भी नेटवर्क को मेंटेन करने में दिक्कत आती है.
उन्होंने कहा कि फॉरेस्ट क्षेत्र में मोबाइल टॉवर लगाने की परमिशन सिर्फ बीएसएनएल को ही मिल रही है. जिसके चलते प्राइवेट ऑपरेटर्स को भी नेटवर्क कनेक्टिविटी को बेहतर करने में दिक्कत आती है. साथ ही बताया कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर क्षेत्र मोहंड में मोबाइल कनेक्टिविटी की दिक्कत है. हालांकि, ये क्षेत्र उत्तर प्रदेश में आता है, ऐसे में उत्तर प्रदेश की यूनिट इसे स्टेट गवर्नमेंट से टेकअप कर रही है. ऐसे में जल्द ही वहां भी कनेक्टिविटी ठीक हो जाएगी.
उत्तराराखंड के इतने गांवों में नहीं है नेटवर्क की सुविधा-
अल्मोड़ा जिले में 2,268 गांव हैं. जिसमें से 27 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं पहुंच पाई है.
बागेश्वर जिले में 923 गांव हैं. जिसमें से 57 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं है.
चमोली जिले में 1,210 गांव हैं. जिसमें से 120 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है.
चंपावत जिले में 712 गांव हैं. जिसमें से 61 गांव ऐसे हैं, जो मोबाइल नेटवर्क की सुविधा से दूर हैं.
देहरादून जिले में 679 गांव हैं. जिसमें से 46 गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी मोबाइल पर नेटवर्क नहीं आते हैं.
पौड़ी जिले में 3,396 गांव हैं. जिसमें से 101 गांव ऐसे हैं, जहां मोबाइल नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है.
हरिद्वार जिले में 610 गांव हैं. जिसमें से 6 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं पहुंची है.
नैनीताल जिले में 1,104 गांव हैं. जिसमें से 68 गांव ऐसे हैं. जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा से कोसों दूर हैं.
पिथौरागढ़ जिले में 1,651 गांव हैं. जिसमें से 136 गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी मोबाइल नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है.
रुद्रप्रयाग जिले में 674 गांव हैं. जिसमें से 9 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं है.
टिहरी जिले में 1,875 गांव हैं. जिसमें से 112 गांव ऐसे हैं, जहां अभी तक मोबाइल नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है.
उधमसिंह नगर जिले में 653 गांव हैं. जिसमें से 1 गांव ऐसा है, जहां अभी भी मोबाइल नेटवर्क नहीं आते हैं.
उत्तरकाशी जिले में 701 गांव हैं. जिसमें से 101 गांव ऐसे हैं, जहां मोबाइल में नेटवर्क ही नहीं आते हैं.
उत्तराखंड में करीब 1.43 मोबाइल सब्सक्राइबर: भारत सरकार दूरसंचार विभाग उत्तराखंड रीजन के डायरेक्टर लवी गुप्ता ने बताया कि उत्तराखंड में करीब 1.43 मोबाइल सब्सक्राइबर हैं. जिन्हें बेहतर नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए पूरे प्रदेश में 37,523 बीटीएस संचालित किए जा रहे हैं. इसमें 4G के 23,836 बीटीएस और 5G के 5,464 बीटीएस काम कर रहे हैं. फॉरेस्ट लैंड में टावर लगाने के लिए वन मंत्रालय और स्थानीय प्राधिकरण से परमिशन लेना होती है. इसके बाद सभी ऑपरेटर को देखते हुए टावर लगाया जाता है. कुल मिलाकर पर्वतीय क्षेत्र होने के चलते कनेक्टिविटी को बेहतर करने में दिक्कतें आती है.
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