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गांव को महामारी से बचाने होली से पहले मुर्गी का होता है मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतुपर में श्रृंगार

Manendragarh Chirmiri Bharatpur मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर में बैगा जनजाति के लोग सालों से एक परंपरा का पालन करते चले आ रहे हैं. परंपरा के मुताबिक गांव को महामारी और बीमारी से बचाने के लिए ये लोग मुर्गी का श्रृंगार करते हैं. मान्यता है कि इस परंपरा के पालन से गांव पर कोई खतरा नहीं मंडराता है. इस अनोखी परंपरा का पालन होली से पहले किया जाता है. tribals decorate hen before Holi

tribals decorate hen before Holi
मुर्गी का श्रृंगार
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Mar 19, 2024, 10:31 PM IST

Updated : Mar 20, 2024, 9:24 AM IST

मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: जिले में बैगा जनजाति के लोग सालों से होली के पहले मुर्गी का श्रृंगार कर उसे पूरे गांव में घुमाते हैं. बैगाओं के बीच ये मान्यता है कि इस परंपरा के पालन से गांव में किसी भी तरह की बीमारी का प्रवेश नहीं होता है. बैगा जनजाति के लोग होली से पहले मुर्गी को बिंदी चूड़ी और माला पहनाकर घुमाते हैं. मुर्गी को हर घर में दाना चुगने के लिए भी लेकर जाते हैं. मुर्गी जहां भी दाना चुगने जाती है वहां पर उसकी पूजा की जाती है. पूरे गांव में जब मुर्गी को घुमा दिया जाता है तब उसे आखिर में गांव के बाहर गांव वाले छोड़ देते हैं.

महामारी और बीमारी से बचने के लिए अनोखी परंपरा का पालन: गांव वालों के बीच मान्यता है कि मुर्गी की पूजा और उसे गांव में घुमाने के बाद, जब छोड़ दिया जाता है इसका मतबल है कि बीमारी गांव से दूर हो गई. गांव में गंभीर बीमारियां जैसे हैजा, कालरा सहित कई महामारियां गांव में प्रवेश नहीं करेंगी. गांव में कभी भी अनाज की कमी नहीं होगी. गांव में सुख और समृद्धि बनी रहेगी. सालों से बैगा जनजाति के लोग इस परंपरा का पालन करते चले आ रहे हैं. पूजा के दौरान बैगा परिवार दान पुण्य भी करते हैं. जिस मुर्गी या बकरी का श्रृंगार किया जाता है उसे पहले मंदिर में ले जाया जाता है.

पूर्वजों के समय से ये परंपरा चली आ रही है. हम भी इस परंपरा का पालन बड़े सम्मान के साथ करते चले आ रहे हैं. होली से पहले ये परंपरा निभाई जाती है. - गरीबा मौर, निवासी, भगवानपुरा

मुर्गी या बकरी का श्रृंगार कर हम गाजे बाजे के साथ उसे घुमाते हैं. अंत में मुर्गी या बकरे को गांव के बाहर जंगल में छोड़ आते हैं. जंगल में छोड़ने का मतलब ही होता है कि हमने बुरी बलाओं को खुद से दूर कर दिया. मुर्गी या बकरे को खिलाने का अर्थ होता है कि हमारे पास धन धान्य और अनाज की कभी कमी नहीं होगी. - शोभन बैगा, स्थानीय निवासी

ढोल नगाड़ों के साथ होती है मुर्गी या बकरे की पूजा: सालों से होली से पहले होने वाली अनोखी परंपरा में गांव के सभी लोग शामिल होते हैं. मुर्गी या बकरे को जब गांव के बाहर छोड़ दिया जाता है तब गांव के लोग भंडारे का आयोजन करते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपरा का वो आज भी आगे बढ़ा रहे हैं. गांव से जब पूजा गया बकरा और मुर्गी बाहर हो जाते हैं तब हम निश्चिंत हो जाते हैं कि सारी बुरी बलाएं बाहर हो गई हैं.

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मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: जिले में बैगा जनजाति के लोग सालों से होली के पहले मुर्गी का श्रृंगार कर उसे पूरे गांव में घुमाते हैं. बैगाओं के बीच ये मान्यता है कि इस परंपरा के पालन से गांव में किसी भी तरह की बीमारी का प्रवेश नहीं होता है. बैगा जनजाति के लोग होली से पहले मुर्गी को बिंदी चूड़ी और माला पहनाकर घुमाते हैं. मुर्गी को हर घर में दाना चुगने के लिए भी लेकर जाते हैं. मुर्गी जहां भी दाना चुगने जाती है वहां पर उसकी पूजा की जाती है. पूरे गांव में जब मुर्गी को घुमा दिया जाता है तब उसे आखिर में गांव के बाहर गांव वाले छोड़ देते हैं.

महामारी और बीमारी से बचने के लिए अनोखी परंपरा का पालन: गांव वालों के बीच मान्यता है कि मुर्गी की पूजा और उसे गांव में घुमाने के बाद, जब छोड़ दिया जाता है इसका मतबल है कि बीमारी गांव से दूर हो गई. गांव में गंभीर बीमारियां जैसे हैजा, कालरा सहित कई महामारियां गांव में प्रवेश नहीं करेंगी. गांव में कभी भी अनाज की कमी नहीं होगी. गांव में सुख और समृद्धि बनी रहेगी. सालों से बैगा जनजाति के लोग इस परंपरा का पालन करते चले आ रहे हैं. पूजा के दौरान बैगा परिवार दान पुण्य भी करते हैं. जिस मुर्गी या बकरी का श्रृंगार किया जाता है उसे पहले मंदिर में ले जाया जाता है.

पूर्वजों के समय से ये परंपरा चली आ रही है. हम भी इस परंपरा का पालन बड़े सम्मान के साथ करते चले आ रहे हैं. होली से पहले ये परंपरा निभाई जाती है. - गरीबा मौर, निवासी, भगवानपुरा

मुर्गी या बकरी का श्रृंगार कर हम गाजे बाजे के साथ उसे घुमाते हैं. अंत में मुर्गी या बकरे को गांव के बाहर जंगल में छोड़ आते हैं. जंगल में छोड़ने का मतलब ही होता है कि हमने बुरी बलाओं को खुद से दूर कर दिया. मुर्गी या बकरे को खिलाने का अर्थ होता है कि हमारे पास धन धान्य और अनाज की कभी कमी नहीं होगी. - शोभन बैगा, स्थानीय निवासी

ढोल नगाड़ों के साथ होती है मुर्गी या बकरे की पूजा: सालों से होली से पहले होने वाली अनोखी परंपरा में गांव के सभी लोग शामिल होते हैं. मुर्गी या बकरे को जब गांव के बाहर छोड़ दिया जाता है तब गांव के लोग भंडारे का आयोजन करते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपरा का वो आज भी आगे बढ़ा रहे हैं. गांव से जब पूजा गया बकरा और मुर्गी बाहर हो जाते हैं तब हम निश्चिंत हो जाते हैं कि सारी बुरी बलाएं बाहर हो गई हैं.

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Last Updated : Mar 20, 2024, 9:24 AM IST
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