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'मनमाने तरीके से चल रहे हैं मदरसे', सुप्रीम कोर्ट से बोला NCPCR, जानें और क्या कहा? - NCPCR

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By Sumit Saxena

Published : Sep 11, 2024, 5:57 PM IST

Supreme Court On Madrasa: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मदरसे मनमाने तरीके से काम करते हैं और बच्चों को पूरी तरह से धर्म के संदर्भ में शिक्षा प्रदान करते हैं.

मदरसे में पढ़ते छात्र
मदरसे में पढ़ते छात्र (ANI)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मदरसे उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है और यह मनमाने तरीके से काम करते हैं. ये संवैधानिक जनादेश, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम 2015 का समग्र उल्लंघन करते हैं.

NCPCR ने अपने लिखित कथन में कहा कि मदरसा शिक्षा बोर्ड को अकादमिक प्राधिकरण नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल परीक्षा आयोजित करने की शक्ति रखने वाली बॉडी है और बोर्ड द्वारा ली जाने वाली परीक्षाएं NCERT और SCERT द्वारा बनाए गए कोर्स के बिल्कुल विपरीत हैं, जिससे मदरसा के छात्र के शिक्षा के अधिकार के दायरे में आने वाले छात्रों से पीछे रह जाते हैं.

आयोग ने कहा कि यह शिक्षा के लिए बच्चे के मौलिक संवैधानिक अधिकार का घोर उल्लंघन है, जो पूरी तरह से धर्म के संदर्भ में शिक्षा प्रदान करता है और जो आरटीई अधिनियम 2009 या किसी अन्य लागू कानून की आवश्यकताओं का पालन नहीं करता है. इसमें कहा गया है कि मदरसों में शिक्षा के धार्मिक विषय को संस्थागत बना दिए जाने के परिणामस्वरूप मासूम बच्चे पीड़ित हैं.

शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है मदरसा
आयोग ने अपने बयान में कहा, "मदरसा न केवल 'उचित' शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25 और 29 के तहत छात्रों को वंचित करता है. इसके अलावा, मदरसा न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करता है, बल्कि इसके काम करने का एक मनमाना तरीका भी है, जिसमें पूरी तरह से एक स्टैंडराइज्ड करिकुलम और कार्यप्रणाली का अभाव है."

आयोग ने यह लिखित दलील उत्तर प्रदेश में मदरसा से संबंधित अंजुम कादरी द्वारा दायर मामले में दायर की थी. 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 22 मार्च 2024 को पारित आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि प्रथम दृष्टया में उसका मानना है कि कानून में धार्मिक शिक्षा का प्रावधान नहीं है और छात्रों को विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन जैसे धर्मनिरपेक्ष विषयों की भी शिक्षा दी जाती है.

इस्लाम की सर्वोच्चता के पाठ
आयोग ने कहा कि मदरसा बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध किताबों की लिस्ट के अवलोकन से यह भी पता चला है कि उनके कोर्स में शामिल की गई दीनियात की किताबों में भी आपत्तिजनक मटैरियल है. आयोग ने दलील दी कि वेबसाइट पर उपलब्ध दीनियातकी किताबों के अवलोकन से यह पाया गया है कि निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार मदरसा बोर्ड पुस्तकों के माध्यम से इस्लाम की सर्वोच्चता के बारे में पाठ पढ़ा रहा है.

आयोग ने अपने लिखित कथन में कहा कि चूंकि दारुल उलूम देवबंद मदरसे की स्थापना सहारनपुर जिले के देवबंद में हुई थी, फिर भी इसका प्रभाव देश और विदेशों में इस्लामी संस्कृति और प्रथाओं को मानने वाले लोगों पर पड़ रहा है.

आयोग ने कहा कि उसे दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवों के बारे में शिकायतें मिली हैं, जिनमें 'बहिश्ती जेवर 'नामक पुस्तक का संदर्भ दिया गया है. आयोग ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि उक्त पुस्तक में ऐसा कंटेंट था, जो न केवल अनुचित है, बल्कि बच्चों के संबंध में आपत्तिजनक और अवैध भी है. इसमें नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने के बारे में पाठ है, यह पुस्तक मदरसों में बच्चों को पढ़ाई जाती है और ऐसी आपत्तिजनक जानकारी वाले फतवे सभी के लिए सुलभ हैं.”

दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर आपत्तिजनक कंटेंट
आयोग ने कहा कि उसे दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर विभिन्न आपत्तिजनक कंटेंट देखने का मिला, जिसमें एक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के संबंध में फतवा जारी किया गया है, जो न केवल भ्रामक है, बल्कि पोक्सो अधिनियम, 2012 के प्रावधानों का भी उल्लंघन है.

आयोग ने कहा कि स्कूल को आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 2(एन) के तहत परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने वाले किसी भी मान्यता प्राप्त स्कूल और इस परिभाषा से बाहर रहने वाले मदरसा को बच्चों या उनके परिवारों को मदरसा शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है. आयोग ने कहा कि उचित पाठ्यक्रम, शिक्षक पात्रता, गैर-पारदर्शिता/फंडिंग और देश के कानून के उल्लंघन की पृष्ठभूमि में, मदरसा बच्चों को समग्र वातावरण प्रदान करने में भी विफल रहा.

बाल अधिकार संस्था ने कहा कि मदरसों को शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (UDISE) कोड मिल रहे हैं, जबकि वे आरटीई अधिनियम, 2009 के मानदंडों और मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं. आयोग ने कहा कि राज्य सरकार से धन प्राप्त करने वाले अचिह्नित मदरसों सहित सरकारी वित्तपोषित मदरसों में बच्चों को शिक्षा मिलना देश के कानून का स्पष्ट उल्लंघन है और ऐसी शिक्षा जो बुनियादी पाठ्यक्रम, पात्रता और समग्र वातावरण से रहित है, उसे राज्य के खर्च पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.

आयोग ने कहा कि हालांकि देश भर में मदरसे चल रहे हैं, लेकिन उपलब्ध जानकारी के आधार पर, केवल बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में ही मदरसा बोर्ड है.

यह भी पढ़ें- कोलकाता रेप-मर्डर केस: सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों से कल शाम 5 बजे तक काम पर लौटने का आग्रह किया

नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मदरसे उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है और यह मनमाने तरीके से काम करते हैं. ये संवैधानिक जनादेश, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम 2015 का समग्र उल्लंघन करते हैं.

NCPCR ने अपने लिखित कथन में कहा कि मदरसा शिक्षा बोर्ड को अकादमिक प्राधिकरण नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल परीक्षा आयोजित करने की शक्ति रखने वाली बॉडी है और बोर्ड द्वारा ली जाने वाली परीक्षाएं NCERT और SCERT द्वारा बनाए गए कोर्स के बिल्कुल विपरीत हैं, जिससे मदरसा के छात्र के शिक्षा के अधिकार के दायरे में आने वाले छात्रों से पीछे रह जाते हैं.

आयोग ने कहा कि यह शिक्षा के लिए बच्चे के मौलिक संवैधानिक अधिकार का घोर उल्लंघन है, जो पूरी तरह से धर्म के संदर्भ में शिक्षा प्रदान करता है और जो आरटीई अधिनियम 2009 या किसी अन्य लागू कानून की आवश्यकताओं का पालन नहीं करता है. इसमें कहा गया है कि मदरसों में शिक्षा के धार्मिक विषय को संस्थागत बना दिए जाने के परिणामस्वरूप मासूम बच्चे पीड़ित हैं.

शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है मदरसा
आयोग ने अपने बयान में कहा, "मदरसा न केवल 'उचित' शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25 और 29 के तहत छात्रों को वंचित करता है. इसके अलावा, मदरसा न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करता है, बल्कि इसके काम करने का एक मनमाना तरीका भी है, जिसमें पूरी तरह से एक स्टैंडराइज्ड करिकुलम और कार्यप्रणाली का अभाव है."

आयोग ने यह लिखित दलील उत्तर प्रदेश में मदरसा से संबंधित अंजुम कादरी द्वारा दायर मामले में दायर की थी. 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 22 मार्च 2024 को पारित आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि प्रथम दृष्टया में उसका मानना है कि कानून में धार्मिक शिक्षा का प्रावधान नहीं है और छात्रों को विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन जैसे धर्मनिरपेक्ष विषयों की भी शिक्षा दी जाती है.

इस्लाम की सर्वोच्चता के पाठ
आयोग ने कहा कि मदरसा बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध किताबों की लिस्ट के अवलोकन से यह भी पता चला है कि उनके कोर्स में शामिल की गई दीनियात की किताबों में भी आपत्तिजनक मटैरियल है. आयोग ने दलील दी कि वेबसाइट पर उपलब्ध दीनियातकी किताबों के अवलोकन से यह पाया गया है कि निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार मदरसा बोर्ड पुस्तकों के माध्यम से इस्लाम की सर्वोच्चता के बारे में पाठ पढ़ा रहा है.

आयोग ने अपने लिखित कथन में कहा कि चूंकि दारुल उलूम देवबंद मदरसे की स्थापना सहारनपुर जिले के देवबंद में हुई थी, फिर भी इसका प्रभाव देश और विदेशों में इस्लामी संस्कृति और प्रथाओं को मानने वाले लोगों पर पड़ रहा है.

आयोग ने कहा कि उसे दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवों के बारे में शिकायतें मिली हैं, जिनमें 'बहिश्ती जेवर 'नामक पुस्तक का संदर्भ दिया गया है. आयोग ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि उक्त पुस्तक में ऐसा कंटेंट था, जो न केवल अनुचित है, बल्कि बच्चों के संबंध में आपत्तिजनक और अवैध भी है. इसमें नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने के बारे में पाठ है, यह पुस्तक मदरसों में बच्चों को पढ़ाई जाती है और ऐसी आपत्तिजनक जानकारी वाले फतवे सभी के लिए सुलभ हैं.”

दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर आपत्तिजनक कंटेंट
आयोग ने कहा कि उसे दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर विभिन्न आपत्तिजनक कंटेंट देखने का मिला, जिसमें एक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के संबंध में फतवा जारी किया गया है, जो न केवल भ्रामक है, बल्कि पोक्सो अधिनियम, 2012 के प्रावधानों का भी उल्लंघन है.

आयोग ने कहा कि स्कूल को आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 2(एन) के तहत परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने वाले किसी भी मान्यता प्राप्त स्कूल और इस परिभाषा से बाहर रहने वाले मदरसा को बच्चों या उनके परिवारों को मदरसा शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है. आयोग ने कहा कि उचित पाठ्यक्रम, शिक्षक पात्रता, गैर-पारदर्शिता/फंडिंग और देश के कानून के उल्लंघन की पृष्ठभूमि में, मदरसा बच्चों को समग्र वातावरण प्रदान करने में भी विफल रहा.

बाल अधिकार संस्था ने कहा कि मदरसों को शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (UDISE) कोड मिल रहे हैं, जबकि वे आरटीई अधिनियम, 2009 के मानदंडों और मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं. आयोग ने कहा कि राज्य सरकार से धन प्राप्त करने वाले अचिह्नित मदरसों सहित सरकारी वित्तपोषित मदरसों में बच्चों को शिक्षा मिलना देश के कानून का स्पष्ट उल्लंघन है और ऐसी शिक्षा जो बुनियादी पाठ्यक्रम, पात्रता और समग्र वातावरण से रहित है, उसे राज्य के खर्च पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.

आयोग ने कहा कि हालांकि देश भर में मदरसे चल रहे हैं, लेकिन उपलब्ध जानकारी के आधार पर, केवल बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में ही मदरसा बोर्ड है.

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