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मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, कहा- नए आपराधिक कानून भ्रामक - Madras High Court

Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने आर एस भारती की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कानून लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं. मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है.

Madras high court
मद्रास हाई कोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 19, 2024, 7:18 PM IST

चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के लाए तीन नए आपराधिक कानूनों को असंवैधानिक और अधिकारहीन घोषित करने की DMK की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कानून लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं.

एक जुलाई से लागू हुए तीन कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने इंडियन पैनल कोड, दंड प्रक्रिया संहिता और इंडियान एविडेंस एक्ट की जगह ली है.

याचिका की सुनवाई जस्टिस एस एस सुन्दर और जस्टिस एन सेंथिल कुमार खंडपीठ ने की. सुनवाई के बाद बैंच ने केंद्र को नोटिस जारी करने का आदेश दिया और जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया. याचिकाकर्ता के अनुसार सरकार ने तीनों विधेयक पेश किए और बिना किसी सार्थक चर्चा के उन्हें संसद से पारित करा लिया.

प्रावधानों की व्याख्या में होगा भ्रम
याचिका में कहा गया है कि किसी भी ठोस बदलाव के धाराओं में फेरबदल करना अनावश्यक है और इससे प्रावधानों की व्याख्या में काफी असुविधा और भ्रम पैदा होगा. याचिकाकर्ता आर एस भारती ने कहा कि धाराओं में फेरबदल से जजों, वकीलों, कानून लागू करने वाले अधिकारियों और आम जनता के लिए नए प्रावधानों को पुराने प्रावधानों के साथ जोड़ना और मिसाल तलाशना बहुत कठिन हो जाएगा.

यह सत्तारूढ़ दल का बनाया एक्ट है
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह प्रैक्टिस केवल अधिनियमों के टाइटल्स के 'संस्कृतिकरण' करने के लिए की जा रहा है, जबकि कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए कोई समर्पण नहीं है. भारती ने आगे कहा कि सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि यह संसद में बनाया गया एक्ट था. उन्होंने दावा किया कि एक्ट संसद के केवल एक अंग यानी सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगियों ने बनाए थे, जिन्होंने विपक्षी दलों को इससे दूर रखा.

संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन
उन्होंने कहा कि अधिनियमों का हिंदी/संस्कृत में नामकरण संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया है कि संसद के किसी भी सदन में पेश किए जाने वाले सभी विधेयकों का आधिकारिक टेक्स्ट इंग्लिश में होना चाहिए.

यह भी पढ़ें- बीएनएस विधेयक को लेकर सिब्बल ने साधा निशाना, बोले- 'तानाशाही' थोपना चाहती है सरकार

चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के लाए तीन नए आपराधिक कानूनों को असंवैधानिक और अधिकारहीन घोषित करने की DMK की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कानून लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं.

एक जुलाई से लागू हुए तीन कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने इंडियन पैनल कोड, दंड प्रक्रिया संहिता और इंडियान एविडेंस एक्ट की जगह ली है.

याचिका की सुनवाई जस्टिस एस एस सुन्दर और जस्टिस एन सेंथिल कुमार खंडपीठ ने की. सुनवाई के बाद बैंच ने केंद्र को नोटिस जारी करने का आदेश दिया और जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया. याचिकाकर्ता के अनुसार सरकार ने तीनों विधेयक पेश किए और बिना किसी सार्थक चर्चा के उन्हें संसद से पारित करा लिया.

प्रावधानों की व्याख्या में होगा भ्रम
याचिका में कहा गया है कि किसी भी ठोस बदलाव के धाराओं में फेरबदल करना अनावश्यक है और इससे प्रावधानों की व्याख्या में काफी असुविधा और भ्रम पैदा होगा. याचिकाकर्ता आर एस भारती ने कहा कि धाराओं में फेरबदल से जजों, वकीलों, कानून लागू करने वाले अधिकारियों और आम जनता के लिए नए प्रावधानों को पुराने प्रावधानों के साथ जोड़ना और मिसाल तलाशना बहुत कठिन हो जाएगा.

यह सत्तारूढ़ दल का बनाया एक्ट है
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह प्रैक्टिस केवल अधिनियमों के टाइटल्स के 'संस्कृतिकरण' करने के लिए की जा रहा है, जबकि कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए कोई समर्पण नहीं है. भारती ने आगे कहा कि सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि यह संसद में बनाया गया एक्ट था. उन्होंने दावा किया कि एक्ट संसद के केवल एक अंग यानी सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगियों ने बनाए थे, जिन्होंने विपक्षी दलों को इससे दूर रखा.

संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन
उन्होंने कहा कि अधिनियमों का हिंदी/संस्कृत में नामकरण संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया है कि संसद के किसी भी सदन में पेश किए जाने वाले सभी विधेयकों का आधिकारिक टेक्स्ट इंग्लिश में होना चाहिए.

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