रांची: खूंटी के बाद जिस सीट पर बीजेपी को सबसे बड़ा झटका लगा है वह है सिंहभूम सीट. यहां से बीजेपी की प्रत्याशी गीता कोड़ा को हार का सामना करना पड़ा है. उन्हें जेएमएम की प्रत्याशी जोबा मांझी ने मात दी है. जोबा मांझी ने 1,66,983 वोट से जीत दर्ज की है. जोबा को 5,15,989 वोट मिले हैं, जबकि गीता कोड़ा को 3,49,006 लोगों ने अपना वोट दिया है.
कोड़ा का किला कोल्हान
कोल्हान कोड़ा दंपती का किला माना जाता है. यहां पर मधु कोड़ा का दबदबा रहा है. मधु कोड़ा एक ऐसे नेता हैं जो निर्दलीय विधायक रहते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. यह एक रिकॉर्ड है. फिर उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. 2009 के लोकसभा चुनाव में मधु कोड़ा निर्दलीय के उम्मीदवार के तौर पर सिंहभूम लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी. वहीं उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से विधायक बनीं. 2019 में चुनाव से पहले गीता कोड़ा और मधु कोड़ा कांग्रेस में शामिल हुंई थीं. कांग्रेस ने उन्हें सिंहभूम सीट से उम्मीदवार बनाया, तब उन्होंने यहां से जीत दर्ज की थी. तब गीता कोड़ा झारखंड में कांग्रेस की एक मात्र सांसद थीं. 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी ने उन्हें चुनावी मैदान उतारा लेकिन इस बार उन्हें जीत नहीं मिल पाई.
जोबा मांझी के पक्ष में माहौल
सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीट चाईबासा, मझगांव, सरायकेला, मनोहरपुर और चक्रधरपुर है. इन छह सीटों में पांच पर जेएमएम का कब्जा है, जबिक एक सीट जगन्नाथपुर पर कांग्रेस के विधायक हैं. यहां पर छह सीटों में एक भी विधानसभा सीट पर बीजेपी या उसके सहयोगी को 2019 विधानसभा चुनाव में जीत नहीं मिली थी. पिछले करीब दो सालों से जेएमएम सिंहभूम सीट पर दावा कर रहा था. जेएमएम का कहना था कि जिस क्षेत्र में छह में से पांच विधायक हमारा है, वहां की लोकसभा सीट पर स्वाभाविक दावेदारी बनती है. जेएमएम के इस दावेदारी के बाद से कांग्रेस बैक फुट पर थी, जिसका नतीजा यह हुआ की अपना टिकट कटता देख गीता कोड़ा बीजेपी में चली गईं.
गीता कोड़ा के प्रति नाराजगी
बीजेपी में शामिल होने के बाद से गीता कोड़ा के प्रति आदिवासियों के बीच नाराजगी देखी जा रही थी. एक बार तो उनपर हमला भी हो गया था, जहां से वह काफी मुश्किल के बाद निकल पाई थीं. नाराज लोगों का कहना था कि जब हम लोग उन्हें यहां से बीजेपी के खिलाफ वोट देकर लोकसभा भेजे थे, तब ऐसे में उन्हें बीजेपी में नहीं जाना चाहिए था. एक तरफ गीता कोड़ा के प्रति लोगों में नाराजगी थी वहीं, दूसरी तरफ जेएमएम के सभी पांच विधायकों ने जोबा मांझी के लिए जोर लगा दिया था.
टूटा साढ़े तीन दशकों का रिकॉर्ड
पिछले साढ़े तीन दशक के इतिहास पर नजर डालें तो एक रोचक बात यह है कि 1989-90 के बाद कोई भी उम्मीदवार चाहे वह किसी दल का हो, लगातार दूसरी बार सिंहभूम लोकसभा सीट पर जीत हासिल नहीं कर सका है. 1996 में बीजेपी के चित्रसेन सिंकु उसके बाद 1998 में कांग्रेस के विजय सिंह सोय ने जीत दर्ज की थी. 1999 में फिर बीजेपी के लक्ष्मण गिलुआ जीते लेकिन अगली बार 2004 में कांग्रेस से बागुन सुम्ब्रुई ने बीजेपी से सीट छीन ली. 2009 में फिर मधु कोड़ा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर बीजेपी से यह सीट अपने पाले में कर ली. 2014 में भी यहां का ट्रेंड जारी रहा इस बार मधु कोड़ा की जगह उनकी पत्नी चुनाव मैदान में थीं. बीजेपी के लक्ष्मण गिलुआ ने 2014 में सिंहभूम सीट पर कब्जा कर लिया. 2019 में गीता कोड़ा ने 2014 की हार का बदला ले लिया, फर्क सिर्फ इतना था कि तब गीता कोड़ा कांग्रेस की प्रत्याशी थीं.
दशकों से झारखंड में पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार रजत गुप्ता का कहना है कि झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का आदिवासी समुदाय पर बहुत असर हुआ है. यहां आदिवासियों के बड़े तबके में नाराजगी है. वहीं सरना धर्म कोड को लेकर भी केंद्र सरकार के रवैये से आदिवासियों में नाराजगी है. जिसका असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिला है.
वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा कहते हैं कि झारखंड में आदिवासियों के बीच विश्वास कायम करने में बीजेपी विफल रही है. साथ ही हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा के बाद जेएमएम कैडर और आदिवासियों की गोलबंदी का भी यह असर है. इसे ‘बैकफायर’ कह सकते हैं. इसके अलावा खूंटी और सिंहभूम दोनों सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम ने समन्वय और रणनीतिक सूझबूझ के साथ चुनाव लड़ा है. सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र में गीता कोड़ा को जेएमएम की घेराबंदी का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. सिंहभूम सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में पांच पर जेएमएम और एक पर कांग्रेस का कब्जा है. जेएमएम ने इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था.