कोरबा: कोरबा लोकसभा सीट पर इस बार के परिणाम के बाद भाजपा फिर जरूरत से ज्यादा ब्राह्मण प्रेम की बातें करने लगी है. वह भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में यह बाते ज्यादा हो रही है. साल 2024 में भाजपा ने एक बार फिर ब्राह्मण चेहरा यानी कि राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय पर दांव लगाया था. पार्टी का यह दांव पिछले चुनावों की तरह इस बार भी विफल रहा. ज्योत्सना महंत कोरबा लोकसभा से लगातार दूसरी बार निर्वाचित हुई हैं. उनके जीत का अंतर भी बढ़ा और पार्टी में कद भी उनका बढ़ा है.
दरअसल, कोरबा लोकसभा सीट छत्तीसगढ़ की इकलौती सीट है, जहां कांग्रेस को जीत मिली है. कोरबा की सीट ने ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की लाज बचाई है. ज्योत्सना महंत 43,000 वोट से जीती हैं, जो एक बड़ी जीत है. अब ज्योत्सना की इस जीत के बाद भाजपा पर सवाल भी उठ रहे हैं कि आदिवासी बाहुल्य सीट पर आखिर हर बार ब्राह्मण चेहरा क्यों?
ब्राह्मण चेहरों पर भाजपा ने जताया भरोसा पर हर बार मिली हार : पार्टी ने साल 2009 में भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को कोरबा लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद यहां के पहले लोकसभा चुनाव में मौका दिया था. तब डॉ. चरणदास महंत उनको हराकर संसद पहुंचे थे. अब, जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी. तब भी भाजपा इस सीट को साल 2019 में हार गई थी. विधानसभा चुनाव 2018 में चरण दास महंत ने छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव लड़ा. वह सीएम की दौड़ में रहे, सीएम तो नहीं बन सके. लेकिन विधानसभा के अध्यक्ष बन गए. इसके कारण ही 2019 में चरणदास महंत ने अपनी पत्नी ज्योत्सना महंत को लोकसभा का टिकट दिलवाया. बीजेपी ने 2019 में कोरबा जिले के ही दीपका क्षेत्र के राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष रहे ज्योतिनंद दुबे को टिकट दिया, लेकिन प्रचंड मोदी लहर में भी वह, कोरबा की सीट नहीं जीत सके. ज्योत्सना महंत के हाथों उनकी हार हुई. साल 2019 में भी एक ब्राह्मण उम्मीदवार की कोरबा लोकसभा में हार हो चुकी थी.
तीसरी बार भी ब्राह्मण चेहरा मुरझाया: साल 2019 में ब्राह्मण चेहरे के नकारे जाने के बाद भाजपा ने आठ विधानसभा वाले कोरबा लोकसभा की सीट पर एक बार फिर 2024 में ब्राह्मण चेहरे सरोज पांडे पर दांव लगाया. इस बार हार का अंतर सबसे ज्यादा रहा. ज्योत्सना महंत साल 2019 में 26000 वोट के अंतर से जीती थीं. साल 2024 में उन्होंने सरोज पांडे को 43000 वोट के अंदर से हरा दिया. कोरबा लोकसभा सीट पर 4 में से 3 चुनाव में भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे को अपना उम्मीदवार बनाया और तीनों बार हार का सामना करना पड़ा. दो बार ज्योत्सना महंत विजयी रहीं, जबकि एक बार उनके पति चरण दास महंत चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
2014 में ओबीसी चेहरा महतो ने दी थी चरणदास महंत को शिकस्त: साल 2024 में टिकट घोषणा के बाद से ही राजनीतिक जानकारों ने बाहरी प्रत्याशी के लिए कोरबा सीट को संघर्षपूर्ण बताया था. इस सीट पर कभी भी ब्राह्मण कैंडिडेट जीतकर संसद नहीं पहुंचे हैं. पहले 2009 में करुणा शुक्ला, 2019 में ज्योतिनंद दुबे, और अब 2024 में सरोज पांडेय. भाजपा के इन सभी उम्मीदवारों को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया, जबकि वर्ष 2014 में ओबीसी चेहरे बंशीलाल महतो ने यहां जीत दर्ज की थी. हालांकि बंसीलाल महतो अब इस दुनिया में नहीं हैं. वह दिवंगत हो चुके हैं, लेकिन साल 2024 में उनके बेटे विकास महतो टिकट की मांग कर रहे थे, जिसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने नकार दिया था. बंसीलाल महतो विशुद्ध तौर पर कोरबा के निवासी थे. चिकित्सक थे, छत्तीसगढ़ियावाद वाला फैक्टर भी उनके साथ था, जिन्होंने साल 2014 में चरण दास महंत को पराजित कर दिया था.
कोरबा लोकसभा सीट के जातिगत और सियासी समीकरण को सामाझिए : कोरबा लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल है, जिनमें भरतपुर-सोनहत(ST) से रेणुका सिंह, मनेन्द्रगढ़ से श्याम बिहारी जयसवाल, बैकुंठपुर से भैयालाल राजवाड़े, रामपुर(एसटी) से फूल सिंह राठिया, कोरबा से लखन लाल देवांगन, कटघोरा से प्रेमचंद पटेल, पाली-तानाखार(ST) से तुलेश्वर मरकाम और मरवाही(ST) से प्रणव कुमार मरपच्ची विधायक हैं. जिसमें रामपुर में कांग्रेस तो पाली तानाखार में गोंगपा के विधायक हैं. बाकी 6 सीटों पर भाजपा के विधायक काबिज है. इनमें लखन लाल देवांगन और श्याम बिहारी जायसवाल कैबिनेट मंत्री हैं. आठ में से चार विधानसभा आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. जो विधानसभा क्षेत्र आरक्षित नहीं हैं. वहां भी आदिवासियों की जनसंख्या है. इन 8 विधायकों में भी कोई विधायक ब्राह्मण नहीं है. सामान्य सीट पर जीत दर्ज करने वाले विधायक भी ओबीसी वर्ग के हैं.