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श्रीनगर में हुए 'शांतिपूर्ण' मतदान ने जगाई जल्द विधानसभा चुनाव की आस - Way to Assembly elections in jk

Road to Assembly elections in Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा में अपना अगला प्रतिनिधि चुनने के लिए सोमवार को मतदान हुआ. दो दशक बाद मतदान के आंकड़े ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में हुए शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए चौथे चरण के मतदान ने विधानसभा चुनाव के रास्ते आसान कर दिए हैं. पढ़ें ईटीवी भारत संवाददाता मीर फरहात की रिपोर्ट...

JAMMU AND KASHMIR
श्रीनगर में चुनाव संपन्न (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 14, 2024, 9:53 PM IST

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा में अपना अगला प्रतिनिधि चुनने के लिए सोमवार को मतदान हुआ. श्रीनगर में 25 प्रतिशत मतदान के साथ शांतिपूर्ण संसदीय चुनावों के समापन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद चुनावी कवायद को एक बार फिर से मजबूत कर दिया है. अंदेशा लगाया जा रहा है कि जम्मू में बहुप्रतीक्षित (लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है) विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

कश्मीर 5 अगस्त 2019 के बाद से राष्ट्रपति शासन के अधीन है. श्रीनगर संसदीय सीट, जिसमें पुलवामा, श्रीनगर, गांदरबल, बडगाम और शोपियां के 18 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं, में कुल 38 प्रतिशत मतदान हुआ, जो लगभग 6 लाख छह हजार वोट है. यह मतदान राजनीतिक और चुनावी महत्व रखता है, क्योंकि 2019 के संसदीय चुनावों में श्रीनगर, पुलवामा और शोपियां में सबसे कम मतदान हुआ था. ये चुनाव हिजबुल मुजाहिदीन के युवा कमांडर बुरहान वानी की हत्या और पीडीपी और भाजपा गठबंधन सरकार के पतन के बाद हुए थे. अलगाववादियों द्वारा हिंसा और चुनाव बहिष्कार का आह्वान भी किया गया.

श्रीनगर में दो दशक बाद रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग : लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को, श्रीनगर जिले में 25 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले चुनावों और परिसीमन के बाद एक बड़ी छलांग है. यह 1989 के बाद दूसरा सबसे बड़ा मतदान है, जब कश्मीर में आतंकवाद भड़क उठा था. चुनावी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच संसदीय चुनावों में, बहिष्कार के आह्वान और आतंकवादी धमकियों के बीच, श्रीनगर में उतार-चढ़ाव वाला मतदान दर्ज किया गया था. 1996 में, श्रीनगर में 40.94 प्रतिशत मतदान दर दर्ज की गई. 1998 में 30.06 प्रतिशत, 1999 में 11.93 प्रतिशत, 2004 में 18.57 प्रतिशत, 2009 में 25.55 प्रतिशत, 2014 में 25.86 प्रतिशत और 2019 में 14.43 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ.

1987 में श्रीनगर में सबसे अधिक 73 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. 1991 का चुनाव उग्रवाद के कारण नहीं हुआ था. 1989 में, नेशनल कांफ्रेस (एनसी) ने निर्विरोध जीत हासिल की, जब भाजपा नेता हिना शफी भट के पिता मोहम्मद शफी भट सांसद बने. 1980 में फारूक अब्दुल्ला निर्विरोध चुने गए. सोमवार के चुनावों में पुलवामा जिले और शोपियां के एक विधानसभा क्षेत्र में क्रमशः 45 प्रतिशत और 47 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ. पिछले विधानसभा और संसद चुनावों की तुलना में मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

विधानसभा चुनाव के लिए मंच तैयार - विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि श्रीनगर और पुलवामा में शांतिपूर्ण संसद चुनाव जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया के नवीनीकरण की प्रस्तावना है. इसने विधानसभा चुनाव कराने के लिए मंच तैयार किया है. राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफेसर रेखा चौधरी ने कहा, 'संसदीय चुनाव के तुरंत बाद जल्द विधानसभा चुनाव की उम्मीद ने चुनावी माहौल को उत्साहित कर दिया है. संसदीय चुनाव को विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक परीक्षण मैदान के रूप में देखा जाता है'.

लेखक और राजनीतिक विश्लेषक जफर चौधरी ने कहा कि श्रीनगर में संसद चुनाव में मतदान कश्मीर के राजनीतिक दलों और भाजपा सरकार के लिए जीत की स्थिति है. उन्होंने कहा, 'अगस्त 2019 से पहले और बाद में अनुच्छेद 370 को हटाने और संबंधित विकास का विरोध करने वाले दलों और लोगों के लिए, यह वोट के माध्यम से लोगों की प्रतिक्रिया है. भारत सरकार और भाजपा के लिए, हिंसा मुक्त चुनाव में उल्लेखनीय रूप से उच्च मतदान प्रतिशत उनकी नीतियों की पुष्टि है. उनके दृष्टिकोण की स्वीकृति है'.

अमरनाथ यात्रा के बाद विधानसभा चुनाव की संभावना : अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की अंतिम कानूनी मुहर लगने के बाद सभी राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की मांग कर रहे हैं. पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था, जब पीडीपी और बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी, जो सिर्फ ढाई साल तक चली थी. भारतीय चुनाव आयोग के सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अमरनाथ यात्रा की समाप्ति के तुरंत बाद सितंबर में होने की संभावना है. यात्रा 29 जून को शुरू होगी और 19 अगस्त तक समाप्त होगी. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर अपना फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि भारत सरकार ने आश्वासन दिया है कि विधानसभा चुनाव 30 सितंबर से पहले होंगे.

पढ़ें: श्रीनगर में भी जमकर मतदान, प्रवासी कश्मीरी पंडितों के लिए बने 23 मतदान केंद्र

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा में अपना अगला प्रतिनिधि चुनने के लिए सोमवार को मतदान हुआ. श्रीनगर में 25 प्रतिशत मतदान के साथ शांतिपूर्ण संसदीय चुनावों के समापन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद चुनावी कवायद को एक बार फिर से मजबूत कर दिया है. अंदेशा लगाया जा रहा है कि जम्मू में बहुप्रतीक्षित (लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है) विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

कश्मीर 5 अगस्त 2019 के बाद से राष्ट्रपति शासन के अधीन है. श्रीनगर संसदीय सीट, जिसमें पुलवामा, श्रीनगर, गांदरबल, बडगाम और शोपियां के 18 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं, में कुल 38 प्रतिशत मतदान हुआ, जो लगभग 6 लाख छह हजार वोट है. यह मतदान राजनीतिक और चुनावी महत्व रखता है, क्योंकि 2019 के संसदीय चुनावों में श्रीनगर, पुलवामा और शोपियां में सबसे कम मतदान हुआ था. ये चुनाव हिजबुल मुजाहिदीन के युवा कमांडर बुरहान वानी की हत्या और पीडीपी और भाजपा गठबंधन सरकार के पतन के बाद हुए थे. अलगाववादियों द्वारा हिंसा और चुनाव बहिष्कार का आह्वान भी किया गया.

श्रीनगर में दो दशक बाद रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग : लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को, श्रीनगर जिले में 25 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले चुनावों और परिसीमन के बाद एक बड़ी छलांग है. यह 1989 के बाद दूसरा सबसे बड़ा मतदान है, जब कश्मीर में आतंकवाद भड़क उठा था. चुनावी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच संसदीय चुनावों में, बहिष्कार के आह्वान और आतंकवादी धमकियों के बीच, श्रीनगर में उतार-चढ़ाव वाला मतदान दर्ज किया गया था. 1996 में, श्रीनगर में 40.94 प्रतिशत मतदान दर दर्ज की गई. 1998 में 30.06 प्रतिशत, 1999 में 11.93 प्रतिशत, 2004 में 18.57 प्रतिशत, 2009 में 25.55 प्रतिशत, 2014 में 25.86 प्रतिशत और 2019 में 14.43 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ.

1987 में श्रीनगर में सबसे अधिक 73 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. 1991 का चुनाव उग्रवाद के कारण नहीं हुआ था. 1989 में, नेशनल कांफ्रेस (एनसी) ने निर्विरोध जीत हासिल की, जब भाजपा नेता हिना शफी भट के पिता मोहम्मद शफी भट सांसद बने. 1980 में फारूक अब्दुल्ला निर्विरोध चुने गए. सोमवार के चुनावों में पुलवामा जिले और शोपियां के एक विधानसभा क्षेत्र में क्रमशः 45 प्रतिशत और 47 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ. पिछले विधानसभा और संसद चुनावों की तुलना में मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

विधानसभा चुनाव के लिए मंच तैयार - विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि श्रीनगर और पुलवामा में शांतिपूर्ण संसद चुनाव जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया के नवीनीकरण की प्रस्तावना है. इसने विधानसभा चुनाव कराने के लिए मंच तैयार किया है. राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफेसर रेखा चौधरी ने कहा, 'संसदीय चुनाव के तुरंत बाद जल्द विधानसभा चुनाव की उम्मीद ने चुनावी माहौल को उत्साहित कर दिया है. संसदीय चुनाव को विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक परीक्षण मैदान के रूप में देखा जाता है'.

लेखक और राजनीतिक विश्लेषक जफर चौधरी ने कहा कि श्रीनगर में संसद चुनाव में मतदान कश्मीर के राजनीतिक दलों और भाजपा सरकार के लिए जीत की स्थिति है. उन्होंने कहा, 'अगस्त 2019 से पहले और बाद में अनुच्छेद 370 को हटाने और संबंधित विकास का विरोध करने वाले दलों और लोगों के लिए, यह वोट के माध्यम से लोगों की प्रतिक्रिया है. भारत सरकार और भाजपा के लिए, हिंसा मुक्त चुनाव में उल्लेखनीय रूप से उच्च मतदान प्रतिशत उनकी नीतियों की पुष्टि है. उनके दृष्टिकोण की स्वीकृति है'.

अमरनाथ यात्रा के बाद विधानसभा चुनाव की संभावना : अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की अंतिम कानूनी मुहर लगने के बाद सभी राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की मांग कर रहे हैं. पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था, जब पीडीपी और बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी, जो सिर्फ ढाई साल तक चली थी. भारतीय चुनाव आयोग के सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अमरनाथ यात्रा की समाप्ति के तुरंत बाद सितंबर में होने की संभावना है. यात्रा 29 जून को शुरू होगी और 19 अगस्त तक समाप्त होगी. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर अपना फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि भारत सरकार ने आश्वासन दिया है कि विधानसभा चुनाव 30 सितंबर से पहले होंगे.

पढ़ें: श्रीनगर में भी जमकर मतदान, प्रवासी कश्मीरी पंडितों के लिए बने 23 मतदान केंद्र

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