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भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जब देवी लाल को लगातार 3 बार हराया, जीवन का आखिरी चुनाव महज 383 वोट से हारे ताऊ - Bhupinder Hooda Devi Lal Fight - BHUPINDER HOODA DEVI LAL FIGHT

Bhupinder Hooda Devi Lal Fight: देश की राजनीति में ताउ के नाम से मशहूर पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल (Devi Lal) हरियाणा में 2 अलग-अलग सीटों से दो बार सांसद बने. लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं कि देवी लाल की 2 गलती उन पर इतनी भारी पड़ी कि हरियाणा की जनता ने उन्हें ठुकरा दिया. जिन सीटों से देवी लाल सांसद बने उन्हीं सीटों पर वो दोबारा कभी चुनाव नहीं जीते. अपने जीवन के आखिरी तीन लोकसभा चुनाव वो नये नेता से अपने घर में हार गये.

Bhupinder Hooda Devi Lal Fight
भूपेंद्र हुड्डा और देवी लाल (Photo Creation- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : May 11, 2024, 9:06 PM IST

Updated : May 13, 2024, 4:58 PM IST

चंडीगढ़: हरियाणा में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की सियासी जंग शबाब पर है. हर दल अपने पूरे दम के साथ मैदान में उतर चुका है. देश में गैर कांग्रेसी राजनीति के कद्दावर नेता और किंग मेकर कहे जाने वाले ताऊ देवी लाल आज भी हरियाणा की सियासत में ब्रांड हैं. लेकिन लेकिन 90 का दशक शुरू होते ही देवी लाल की प्रसिद्धि का पतन शुरू हो गया. सियासी जानकार कहते हैं कि उनकी कुछ गलतियां इतनी भारी पड़ीं कि अपने ही इलाके में वो दरकिनार हो गये और फिर कभी चुनाव नहीं जीत पाये. केंद्र में जनता दल की सरकार गिरने और 90 का दशक शुरू होते ही पूर्व डिप्टी पीएम देवी लाल की सियासी दीवार दरकने लगी थी.

सोनीपत से पहली बार सांसद बने देवी लाल

देवी लाल ने हरियाणा में 1980 में पहली बार सोनीपत लोकसभा सीट से जनता पार्टी (एस) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वो राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र में चले गये. लेकिन उसके 2 साल बाद 1982 में हरियाणा विधानसभा चुनाव हुआ. देवी लाल ने सोनीपत लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और महम से विधानसभा चुनाव लड़े. कांग्रेस को 38 और लोकदल को 34 सीटें मिली. चुनावी जोड़ तोड़ में माहिर भजन लाल मुख्यमंत्री बन गये और देवी लाल ने लोकदल छोड़ दिया. ये वो दौर था जब देवी लाल और चौधरी चरण सिंह के बीच सियासी तकरार बढ़ गई थी.

देवी लाल की पहली गलती- खुद की छोड़ी सीट पर उपचुनाव हारे

देवी लाल के इस्तीफे के बाद 23 दिसंबर 1983 को सोनीपत लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. चौधरी चरण सिंह को मात देने के लिए देवी लाल खुद निर्दलीय चुनाव में उतर गये. बताया जा रहा है कि चौधरी चरण सिंह ने देवी लाल को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. लोक दल उम्मीदवार किताब सिंह और देवीलाल के बीच ये उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया. लेकिन उनकी लड़ाई में जीत कांग्रेस के हिस्से में गई. देवी लाल 1983 का सोनीपत लोकसभा का उपचुनाव अपनी ही छोड़ी सीट पर हार गये. कांग्रेस के रिजकराम दहिया विजयी हुए. देवीलाल को हराने की खुशी में रिजकराम ने हाथी पर जुलूस निकाला.

देवी लाल की दूसरी गलती- रोहतक ने ठुकरा दिया

इसके बाद देवी लाल 1989 लोकसभा चुनाव में राजस्थान के सीकर और हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट (Rohtak Lok Sabha Seat) से चुनाव जीतकर सांसद बने. लेकिन नतीजे सामने आने के बाद एक सीट जब छोड़ने की बारी आई तो देवी लाल ने रोहतक से इस्तीफा दे दिया. रोहतक सीट से इस्तीफा देवी लाल के लिए इतनी बड़ी गलती साबित हुआ कि वो कभी हरियाणा से चुनाव नहीं जीत पाये. जानकार बताते हैं कि देवी लाल को ये भरोसा था कि रोहतक उनका अपना इलाका है इसलिए वो यहां से कभी भी जीत सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देवी लाल के लिए ये वैसा ही साबित हुआ जैसा 1983 में सोनीपत उपचुनाव में हार हुई. 1989 में बनी जनता दल की सरकार महज 2 साल के अंदर गिर गई. और रोहतक लोकसभा सीट पर उपचुनाव से पहले ही 1991 में मध्यावधी चुनाव हो गये.

भूपेंद्र हुड्डा ने देवी लाल को 3 बार हराया

1989 में रोहतक सीट छोड़ने के बाद देवी लाल इस सीट पर लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारे. तीनों बार कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) ने उन्हें मात दी. 1989 में इस्तीफा देने के बाद 1991 में रोहतक से देवी लाल फिर चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस के टिकट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन्हें 30 हजार 573 वोट से हरा दिया. 1996 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को महज 2664 वोट से हरा दिया. वहीं 1998 के चुनाव में फिर भूपेंद्र हुड्डा और देवी लाल आमने-सामने थे. लेकिन देवी लाल को भूपेंद्र हुड्डा से फिर मात मिली. 1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल महज 383 वोट से हार गये.

रोहतक लोकसभा सीट का इतिहास (अलग राज्य बनने के बाद)
1967- भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह कांग्रेस से सांसद बने
1971- भारतीय जन संघ के मुख्तियार सिंह मलिक जीते
1977- भारतीय लोकदल के शेर सिंह चुनाव जीतकर सांसद बने
1980- जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर इंद्रवेश स्वामी जीते
1984- कांग्रेस के हरद्वारी लाल चुनाव जीतकर सांसद बने
1989- जनता दल के टिकट पर देवीलाल सांसद बने
1991- भूपेंद्र हुड्डा ने देवी लाल को 30,573 वोट से हराया
1996- कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को 2664 वोट से हराया
1998- भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 383 वोट से देवी लाल को हराया.
1999- इनेलो के इंदर सिंह ने हुड्डा को 1,44,693 वोट से हराया
2004- भूपेंद्र हुड्डा फिर सांसद बने. 1,50,435 वोट से जीते
2009- भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से सांसद बने
2014- कांग्रेस के टिकट पर दीपेंद्र हुड्डा दोबारा रोहतक से जीते
2019- बीजेपी के टिकट पर अरविंद शर्मा लोकसभा चुनाव जीते

आखिरी हार के 3 साल बाद देवी लाल का निधन

1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल का आखिरी चुनाव था. देवीलाल 1989 के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाये. जिस रोहतक सीट को सीकर के मुकाबले उन्होंने छोड़ दिया था, उसने फिर उन्हे कभी नहीं जिताया. 6 अप्रैल 2001 को देवी लाल का देहांत हो गया. हलांकि देवी लाल की विचारधारा और उनकी सियासी विरासत आज भी हरियाणा में प्रासंगिक है और वो जननायक कहे जाते हैं. उनकी अपनी पार्टी के दो टुकड़े भले हो गये हों लेकिन इनेलो और जेजेपी दोनो देवी लाल के नाम पर अपना वजूद तलाश रही हैं. यहां तक की विपक्षी नेता भी देवी लाल की विचारधारा के नाम पर वोट मांगते हैं.

कौन हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा

भूपेंद्र हुड्डा को राजनीति विरासत में मिली है. भूपेंद्र हुड्डा पुराने दिग्गज कांग्रेसी नेता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के बेटे हैं. रणबीर हुड्डा स्वतंत्रता सेनानी और अविभाजित पंजाब के बड़े नेता रहे हैं. पंजाब के जमाने से विधायक, सांसद और मंत्री रहे हैं. रणबीर सिंह हुड्डा भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे हैं. वो देश के पहले आम चुनाव 1952 में भी रोहतक से सांसद बने थे. बाद में हरियाणा राज्य के गठन के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव 1967 में भी रणबीर हुड्डा रोहतक से सांसद चुने गये थे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के 10 साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने जिला स्तर से अपनी राजनीति की शुरुआत की.

ये भी पढ़ें- हरियाणा का सबसे हॉट मुकाबला, जब एक सीट पर आमने-सामने था बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल का परिवार
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चंडीगढ़: हरियाणा में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की सियासी जंग शबाब पर है. हर दल अपने पूरे दम के साथ मैदान में उतर चुका है. देश में गैर कांग्रेसी राजनीति के कद्दावर नेता और किंग मेकर कहे जाने वाले ताऊ देवी लाल आज भी हरियाणा की सियासत में ब्रांड हैं. लेकिन लेकिन 90 का दशक शुरू होते ही देवी लाल की प्रसिद्धि का पतन शुरू हो गया. सियासी जानकार कहते हैं कि उनकी कुछ गलतियां इतनी भारी पड़ीं कि अपने ही इलाके में वो दरकिनार हो गये और फिर कभी चुनाव नहीं जीत पाये. केंद्र में जनता दल की सरकार गिरने और 90 का दशक शुरू होते ही पूर्व डिप्टी पीएम देवी लाल की सियासी दीवार दरकने लगी थी.

सोनीपत से पहली बार सांसद बने देवी लाल

देवी लाल ने हरियाणा में 1980 में पहली बार सोनीपत लोकसभा सीट से जनता पार्टी (एस) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वो राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र में चले गये. लेकिन उसके 2 साल बाद 1982 में हरियाणा विधानसभा चुनाव हुआ. देवी लाल ने सोनीपत लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और महम से विधानसभा चुनाव लड़े. कांग्रेस को 38 और लोकदल को 34 सीटें मिली. चुनावी जोड़ तोड़ में माहिर भजन लाल मुख्यमंत्री बन गये और देवी लाल ने लोकदल छोड़ दिया. ये वो दौर था जब देवी लाल और चौधरी चरण सिंह के बीच सियासी तकरार बढ़ गई थी.

देवी लाल की पहली गलती- खुद की छोड़ी सीट पर उपचुनाव हारे

देवी लाल के इस्तीफे के बाद 23 दिसंबर 1983 को सोनीपत लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. चौधरी चरण सिंह को मात देने के लिए देवी लाल खुद निर्दलीय चुनाव में उतर गये. बताया जा रहा है कि चौधरी चरण सिंह ने देवी लाल को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. लोक दल उम्मीदवार किताब सिंह और देवीलाल के बीच ये उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया. लेकिन उनकी लड़ाई में जीत कांग्रेस के हिस्से में गई. देवी लाल 1983 का सोनीपत लोकसभा का उपचुनाव अपनी ही छोड़ी सीट पर हार गये. कांग्रेस के रिजकराम दहिया विजयी हुए. देवीलाल को हराने की खुशी में रिजकराम ने हाथी पर जुलूस निकाला.

देवी लाल की दूसरी गलती- रोहतक ने ठुकरा दिया

इसके बाद देवी लाल 1989 लोकसभा चुनाव में राजस्थान के सीकर और हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट (Rohtak Lok Sabha Seat) से चुनाव जीतकर सांसद बने. लेकिन नतीजे सामने आने के बाद एक सीट जब छोड़ने की बारी आई तो देवी लाल ने रोहतक से इस्तीफा दे दिया. रोहतक सीट से इस्तीफा देवी लाल के लिए इतनी बड़ी गलती साबित हुआ कि वो कभी हरियाणा से चुनाव नहीं जीत पाये. जानकार बताते हैं कि देवी लाल को ये भरोसा था कि रोहतक उनका अपना इलाका है इसलिए वो यहां से कभी भी जीत सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देवी लाल के लिए ये वैसा ही साबित हुआ जैसा 1983 में सोनीपत उपचुनाव में हार हुई. 1989 में बनी जनता दल की सरकार महज 2 साल के अंदर गिर गई. और रोहतक लोकसभा सीट पर उपचुनाव से पहले ही 1991 में मध्यावधी चुनाव हो गये.

भूपेंद्र हुड्डा ने देवी लाल को 3 बार हराया

1989 में रोहतक सीट छोड़ने के बाद देवी लाल इस सीट पर लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारे. तीनों बार कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) ने उन्हें मात दी. 1989 में इस्तीफा देने के बाद 1991 में रोहतक से देवी लाल फिर चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस के टिकट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन्हें 30 हजार 573 वोट से हरा दिया. 1996 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को महज 2664 वोट से हरा दिया. वहीं 1998 के चुनाव में फिर भूपेंद्र हुड्डा और देवी लाल आमने-सामने थे. लेकिन देवी लाल को भूपेंद्र हुड्डा से फिर मात मिली. 1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल महज 383 वोट से हार गये.

रोहतक लोकसभा सीट का इतिहास (अलग राज्य बनने के बाद)
1967- भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह कांग्रेस से सांसद बने
1971- भारतीय जन संघ के मुख्तियार सिंह मलिक जीते
1977- भारतीय लोकदल के शेर सिंह चुनाव जीतकर सांसद बने
1980- जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर इंद्रवेश स्वामी जीते
1984- कांग्रेस के हरद्वारी लाल चुनाव जीतकर सांसद बने
1989- जनता दल के टिकट पर देवीलाल सांसद बने
1991- भूपेंद्र हुड्डा ने देवी लाल को 30,573 वोट से हराया
1996- कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को 2664 वोट से हराया
1998- भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 383 वोट से देवी लाल को हराया.
1999- इनेलो के इंदर सिंह ने हुड्डा को 1,44,693 वोट से हराया
2004- भूपेंद्र हुड्डा फिर सांसद बने. 1,50,435 वोट से जीते
2009- भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से सांसद बने
2014- कांग्रेस के टिकट पर दीपेंद्र हुड्डा दोबारा रोहतक से जीते
2019- बीजेपी के टिकट पर अरविंद शर्मा लोकसभा चुनाव जीते

आखिरी हार के 3 साल बाद देवी लाल का निधन

1998 का लोकसभा चुनाव देवी लाल का आखिरी चुनाव था. देवीलाल 1989 के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाये. जिस रोहतक सीट को सीकर के मुकाबले उन्होंने छोड़ दिया था, उसने फिर उन्हे कभी नहीं जिताया. 6 अप्रैल 2001 को देवी लाल का देहांत हो गया. हलांकि देवी लाल की विचारधारा और उनकी सियासी विरासत आज भी हरियाणा में प्रासंगिक है और वो जननायक कहे जाते हैं. उनकी अपनी पार्टी के दो टुकड़े भले हो गये हों लेकिन इनेलो और जेजेपी दोनो देवी लाल के नाम पर अपना वजूद तलाश रही हैं. यहां तक की विपक्षी नेता भी देवी लाल की विचारधारा के नाम पर वोट मांगते हैं.

कौन हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा

भूपेंद्र हुड्डा को राजनीति विरासत में मिली है. भूपेंद्र हुड्डा पुराने दिग्गज कांग्रेसी नेता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के बेटे हैं. रणबीर हुड्डा स्वतंत्रता सेनानी और अविभाजित पंजाब के बड़े नेता रहे हैं. पंजाब के जमाने से विधायक, सांसद और मंत्री रहे हैं. रणबीर सिंह हुड्डा भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे हैं. वो देश के पहले आम चुनाव 1952 में भी रोहतक से सांसद बने थे. बाद में हरियाणा राज्य के गठन के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव 1967 में भी रणबीर हुड्डा रोहतक से सांसद चुने गये थे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के 10 साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने जिला स्तर से अपनी राजनीति की शुरुआत की.

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Last Updated : May 13, 2024, 4:58 PM IST
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