रायपुर: कर्नाटक के बेलगांव में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जन्म हुआ. बचपन से ही वो माता पिता के साथ प्रतिदिन मंदिर जाया करते थे. कम उम्र में ही वो सात्विक भोजन करने लगे. धर्म और प्रवचन के प्रति उनकी रुचि लगातार बढ़ती रही. अपने महाराज की आज्ञा मिलते ही वो आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़े. सन्मार्ग के रास्ते पर निकला उनका कदम फिर रुका नहीं. महज 22 साल की कम उम्र में आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से मुनि होने की दीक्षा ली. दीक्षा के बाद ज्ञानसागर जी महाराज ने उनको विद्यासागर महाराज की उपाधी दी. गुरुजी की समाधि लेने के बाद आचार्य विद्यासागर जी महाराज जैन समुदाय के संत बन गए. वहां से शुरु हुआ उनका कठिन तप जीवन के अंतिम पहर तक जारी रहा.
लोगों को दिखाया जीवन का सही रास्ता: विद्यासागर जी महाराज कहते थे. जैन का अर्थ होता है जो स्वंय को अनर्थ हिंसा से बचाता है, जो सत्य का सदा समर्थन करता है वो जैन है. जो न्याय के मूल को समझता हो, जो संस्कृति और संस्कारों को जीता है वो जैन है. जो त्याग और प्रत्याख्यान में विश्वास रखता है, जो खुद को ही सुख दुख का कर्ता समझता है वो जैन है वो ईश्वर के करीब है.
आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन संदेश
- संसार के सभी प्राणी समान हैं कोई छोटा या बड़ा नहीं है, सबका समान रुप से सम्मान करें. सभी प्राणी अपनी आत्मा के स्वरुप को पहचान कर स्वंय भगवान बन सकते हैं.
- यदि संसार के दुखों, रोगों, जन्म-मृत्यु, भूख प्यास से बचना चाहते हैं तो अपनी आत्म की पहचान करें. दुखों से बचने का यही एक इलाज है.
- दूसरों के साथ वो व्यवहार नहीं करें जो आपको खुद के साथ अच्छा नहीं लगे.
- जो वस्त्र या श्रृंगार देखने वाले के हृदय को विचलित कर दे ऐसे वस्त्र और श्रृंगार सभ्य लोगों के लिए नहीं, सभ्यता जैनियों की पहचान है.
- किसी भी प्राणी को मारकर जो प्रसाधन बनाए जाते हैं उनका प्रयोग करने वाले को उतनाा ही पाप लगता है जितना किसी जीव को मारने पर.
- मद्य, मास, मधु, पीपल का फल, बड़ का फल, ऊमर का फल, कठूमर, अंजीर, दही, छांछ खाने से असंख्य जीवों का घात होता है इससे मांस भक्षण का पाप लगता है.
- संसार के सभी प्राणी मृत्यु से डरते हैं. हम स्वंय जीना चाहते हैं, उसी तरह से संसार के सभी प्राणी जीना चाहते हैं. जीओ और जीने दो की परिभाषा जीवन में जरुरी है.
- आत्मा का कभी घात नहीं होता. आत्मा का कभी नाश नहीं होता. आत्मा अजर और अमर है.
- दूसरों के दुर्गुनों को नहीं देख उसके सदगुणों को ग्रहण करने वाला ही सज्जन है.
- दूसरों की सेवा करके सभी प्राणी महान बन सकते हैं, कमजोरों की सेवा करना मनुष्य का कर्तव्य है.
- जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है. जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते हैं.
- विश्व के विकास के लिए आवश्यक हैं भारत का विकास और भारत के विकास के लिए जरूरी हैं शिक्षा पद्धति का विकास.
- दूसरों के अस्तित्व को नकारने की जगह दूसरों की प्रशस्ति को हम और प्रशस्त लिखने का प्रयास करें.
- अनर्थ वही करता है जो परमार्थ को भूल जाता है. जो परमार्थ को याद रखता है वह व्यक्ति अनर्थ नहीं कर सकता.
जीवन जो लोगों के लिए बन गया प्रकाश पुंज: आचार्य विद्यासागर जी महाराज के देव लोक गमन से पूरा देश दुखी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर तमाम बड़े राजनीतिज्ञों ने निधन पर शोक जताया है. विष्णु देव साय सरकार ने चंद्रगिरी पर्वत पर समाधि स्थल बनाने की भी बात कही है. खुद प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनका जीवन पीढ़ियों तक लोगों को जीवन का प्रकाश और प्रेरणा देता रहेगा.