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पराली संकट: दिल्ली वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पंजाब -हरियाणा सरकार पर जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों द्वारा पराली जलाने की समस्या का समाधान खोजने में दिखाई गई उदासीनता की निंदा की.

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दिल्ली वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त (डिजाइन इमेज) (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Oct 16, 2024, 3:51 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण संकट के लिए पंजाब और हरियाणा सरकार की आलोचना की. साथ जस्टिस अभय एस ओका की अगुवाई वाली बेंच ने एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए हरियाणा सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के निर्देशों के अंदेखी पर निराशा जताई. अदालत ने पराली जलाने के दोषी पाए गए उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा न चलाने पर हरियाणा सरकार की खिंचाई की और राज्य के मुख्य सचिव को 23 अक्टूबर को पेश होने के लिए तलब किया. बेंच, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एजी मसीह भी शामिल थे, ने कहा कि सीएक्यूएम एक दंतहीन (बिना दांत वाला) बाघ बन कर रह गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने में पंजाब सरकार की निष्क्रियता की भी आलोचना की और कहा कि राज्य को खुद को "असहाय" घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि वह किसी पर मुकदमा नहीं चला सकता. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा दोनों के मुख्य सचिवों को तलब किया है और कहा है कि राज्य सरकारों का रवैया "पूरी तरह से अवज्ञाकारी" है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हरियाणा सरकार के वकील से पूछा, आदेशों के उल्लंघन के लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जा रहा? बेंच ने कहा, "यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है. अगर मुख्य सचिव किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं, तो हम उनके खिलाफ भी समन जारी करेंगे,"

बेंच ने आगे कहा, "अगले बुधवार को हम मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से बुलाएंगे और सब कुछ बताएंगे. पराली जलाने से जुड़ी समस्याओं पर अब तक कुछ नहीं किया गया है, यही हाल पंजाब सरकार का है. यह रवैया पूरी तरह से अवज्ञाकारी है."

बेंच ने कहा कि, इसरो राज्य को पराली जलाने की जगह की जानकारी देता है और अधिकारी कहते हैं कि आग लगने की जगह नहीं मिली. पीठ ने हरियाणा के वकील से पूछा, लोगों पर मुकदमा चलाने में क्या हिचकिचाहट है? पराली जलाने के मामले में पंजाब के महाधिवक्ता (एजी) ने कहा कि राज्य में धान की खेती के कारण बहुत बड़ा वित्तीय नुकसान हो रहा है.

जस्टिस ओका ने कहा, “कृपया हमें बताएं कि 2013 की अपनी अधिसूचना को लागू करने, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दायर करने से क्या वित्तीय नुकसान होगा? न्यायालय के आदेशों को लागू करने में क्या वित्तीय नुकसान होगा?” पंजाब के महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि इसमें कोई वित्तीय नुकसान नहीं है, और कहा कि किसान कानून-व्यवस्था की बहुत समस्या पैदा कर रहे हैं और उन्हें कूटनीतिक तरीके से बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए.

जस्टिस ओका ने कहा, “तो, निष्पक्षता से आयोग के पास जाएं और उनके निर्देश में संशोधन के लिए आवेदन करें, अगर आपमें ऐसा करने का साहस है, तो कृपया वहां जाएं और उन्हें बताएं कि हम किसी पर मुकदमा नहीं चलाएंगे, हम असहाय हैं इसलिए आदेश में संशोधन करें.”

पंजाब के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, पिछले साल राज्य को एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ा था: इलाके के आईजी खुद कई गांवों में आग रोकने गए थे और डिप्टी कमिश्नर मौके पर गए थे, लेकिन उन्हें गांव के बाहरी इलाकों में ग्रामीणों ने घेर लिया था और इन निर्देशों को जमीनी स्तर पर लागू करना बहुत मुश्किल है.

जस्टिस ओका ने कहा,“आखिरकार, आप जो कह रहे हैं, वह यह है कि लोगों को वायु प्रदूषण से पीड़ित होने दें। हम असहाय हैं...हम सुप्रीम कोर्ट के सामने गलत बयान देंगे, हम कोर्ट के निर्देशों को लागू नहीं करेंगे...”

एजी ने कहा कि राज्य कर्तव्यबद्ध है और वह अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं रहा है और जमीनी स्तर पर यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण काम है और उन्होंने पीठ से राज्य को एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया। जस्टिस ओका ने कहा, “आप राज्य द्वारा पारित 11 साल पुराने आदेश को लागू क्यों नहीं कर रहे हैं...मुख्य सचिव इतने साहसी हैं कि 2013 के इस आदेश का उल्लेख करते हैं और फिर कहते हैं कि हम कुछ नहीं करेंगे.” न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि, हर दिन मायने रखता है और अब राजधानी में वायु प्रदूषण शुरू हो चुका है और "अब बहुत देर हो चुकी है, हम आपको एक सप्ताह तक छूट नहीं दे सकते".

पंजाब के संबंध में अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि "हालांकि हलफनामे में यह स्वीकार किया गया है कि उल्लंघन हुए हैं, लेकिन एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया गया है."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, पंजाब सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि इसरो प्रोटोकॉल के अनुसार आग लगने की 267 घटनाएं दर्ज की गई हैं और दावा किया गया है कि सभी 267 के खिलाफ कार्रवाई की गई और केवल 103 से मामूली जुर्माना वसूला गया है और 14 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और केवल पांच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। पीठ ने कहा, "267 उल्लंघनकर्ताओं में से 122 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मामूली कार्रवाई की गई है."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वायु प्रदूषण में योगदान देने वाली समस्या दशकों से मौजूद है लेकिन फिर भी राज्य सरकारें इसका समाधान खोजने के लिए संघर्ष कर रही हैं. "हम पंजाब के मुख्य सचिव को अगले बुधवार को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश देते हैं. उन्हें राज्य द्वारा की गई चूक के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए. हम आयोग को गैर-अनुपालन पर राज्य के अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं...केंद्र सरकार अगली तारीख पर अनुपालन रिपोर्ट पेश करेगी”. इससे पहले शीर्ष अदालत ने पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने में विफल रहने पर वायु गुणवत्ता आयोग को फटकार लगाई थी.

ये भी पढ़ें: दिल्ली की एयर क्वालिटी पर दिवाली से पहले अच्छी रिपोर्ट! आसपास के राज्यों में पराली जलाने में आई कमी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण संकट के लिए पंजाब और हरियाणा सरकार की आलोचना की. साथ जस्टिस अभय एस ओका की अगुवाई वाली बेंच ने एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए हरियाणा सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के निर्देशों के अंदेखी पर निराशा जताई. अदालत ने पराली जलाने के दोषी पाए गए उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा न चलाने पर हरियाणा सरकार की खिंचाई की और राज्य के मुख्य सचिव को 23 अक्टूबर को पेश होने के लिए तलब किया. बेंच, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एजी मसीह भी शामिल थे, ने कहा कि सीएक्यूएम एक दंतहीन (बिना दांत वाला) बाघ बन कर रह गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने में पंजाब सरकार की निष्क्रियता की भी आलोचना की और कहा कि राज्य को खुद को "असहाय" घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि वह किसी पर मुकदमा नहीं चला सकता. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा दोनों के मुख्य सचिवों को तलब किया है और कहा है कि राज्य सरकारों का रवैया "पूरी तरह से अवज्ञाकारी" है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हरियाणा सरकार के वकील से पूछा, आदेशों के उल्लंघन के लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जा रहा? बेंच ने कहा, "यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है. अगर मुख्य सचिव किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं, तो हम उनके खिलाफ भी समन जारी करेंगे,"

बेंच ने आगे कहा, "अगले बुधवार को हम मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से बुलाएंगे और सब कुछ बताएंगे. पराली जलाने से जुड़ी समस्याओं पर अब तक कुछ नहीं किया गया है, यही हाल पंजाब सरकार का है. यह रवैया पूरी तरह से अवज्ञाकारी है."

बेंच ने कहा कि, इसरो राज्य को पराली जलाने की जगह की जानकारी देता है और अधिकारी कहते हैं कि आग लगने की जगह नहीं मिली. पीठ ने हरियाणा के वकील से पूछा, लोगों पर मुकदमा चलाने में क्या हिचकिचाहट है? पराली जलाने के मामले में पंजाब के महाधिवक्ता (एजी) ने कहा कि राज्य में धान की खेती के कारण बहुत बड़ा वित्तीय नुकसान हो रहा है.

जस्टिस ओका ने कहा, “कृपया हमें बताएं कि 2013 की अपनी अधिसूचना को लागू करने, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दायर करने से क्या वित्तीय नुकसान होगा? न्यायालय के आदेशों को लागू करने में क्या वित्तीय नुकसान होगा?” पंजाब के महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि इसमें कोई वित्तीय नुकसान नहीं है, और कहा कि किसान कानून-व्यवस्था की बहुत समस्या पैदा कर रहे हैं और उन्हें कूटनीतिक तरीके से बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए.

जस्टिस ओका ने कहा, “तो, निष्पक्षता से आयोग के पास जाएं और उनके निर्देश में संशोधन के लिए आवेदन करें, अगर आपमें ऐसा करने का साहस है, तो कृपया वहां जाएं और उन्हें बताएं कि हम किसी पर मुकदमा नहीं चलाएंगे, हम असहाय हैं इसलिए आदेश में संशोधन करें.”

पंजाब के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, पिछले साल राज्य को एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ा था: इलाके के आईजी खुद कई गांवों में आग रोकने गए थे और डिप्टी कमिश्नर मौके पर गए थे, लेकिन उन्हें गांव के बाहरी इलाकों में ग्रामीणों ने घेर लिया था और इन निर्देशों को जमीनी स्तर पर लागू करना बहुत मुश्किल है.

जस्टिस ओका ने कहा,“आखिरकार, आप जो कह रहे हैं, वह यह है कि लोगों को वायु प्रदूषण से पीड़ित होने दें। हम असहाय हैं...हम सुप्रीम कोर्ट के सामने गलत बयान देंगे, हम कोर्ट के निर्देशों को लागू नहीं करेंगे...”

एजी ने कहा कि राज्य कर्तव्यबद्ध है और वह अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं रहा है और जमीनी स्तर पर यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण काम है और उन्होंने पीठ से राज्य को एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया। जस्टिस ओका ने कहा, “आप राज्य द्वारा पारित 11 साल पुराने आदेश को लागू क्यों नहीं कर रहे हैं...मुख्य सचिव इतने साहसी हैं कि 2013 के इस आदेश का उल्लेख करते हैं और फिर कहते हैं कि हम कुछ नहीं करेंगे.” न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि, हर दिन मायने रखता है और अब राजधानी में वायु प्रदूषण शुरू हो चुका है और "अब बहुत देर हो चुकी है, हम आपको एक सप्ताह तक छूट नहीं दे सकते".

पंजाब के संबंध में अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि "हालांकि हलफनामे में यह स्वीकार किया गया है कि उल्लंघन हुए हैं, लेकिन एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया गया है."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, पंजाब सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि इसरो प्रोटोकॉल के अनुसार आग लगने की 267 घटनाएं दर्ज की गई हैं और दावा किया गया है कि सभी 267 के खिलाफ कार्रवाई की गई और केवल 103 से मामूली जुर्माना वसूला गया है और 14 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और केवल पांच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। पीठ ने कहा, "267 उल्लंघनकर्ताओं में से 122 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मामूली कार्रवाई की गई है."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वायु प्रदूषण में योगदान देने वाली समस्या दशकों से मौजूद है लेकिन फिर भी राज्य सरकारें इसका समाधान खोजने के लिए संघर्ष कर रही हैं. "हम पंजाब के मुख्य सचिव को अगले बुधवार को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश देते हैं. उन्हें राज्य द्वारा की गई चूक के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए. हम आयोग को गैर-अनुपालन पर राज्य के अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं...केंद्र सरकार अगली तारीख पर अनुपालन रिपोर्ट पेश करेगी”. इससे पहले शीर्ष अदालत ने पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने में विफल रहने पर वायु गुणवत्ता आयोग को फटकार लगाई थी.

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