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लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर केंद्र ने लगाई रोक, पीएम मोदी के निर्देश पर हुआ रद्द - lateral entry controversy

lateral entry controvers: यूपीएससी ने 17 अगस्त को इसके लिए विज्ञापन निकाला था. इस विज्ञापन में तकरीबन 45 भर्तियों की बात कही गई थी.

LATERAL ENTRY CONTROVERSY
लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर केंद्र ने लगाई रोक (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 20, 2024, 1:50 PM IST

Updated : Aug 20, 2024, 3:04 PM IST

नई दिल्ली: यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर विवाद छिड़ गया है. ताजा जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने मंगलवार को लेटरल एंट्री के निकाले गए विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है. इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी चेयरमैन को लेटर लिखा है. एक तरफ विपक्ष इसकी आलोचना कर रहा है. तो दूसरी ओर सरकार इसका बचाव कर रही है.

बता दें, पीएम मोदी के निर्देश के बाद यह कदम उठाया गया है. इससे पहले 17 अगस्त को एक विज्ञापन निकाला गया था, जिसमें करीब 45 ज्वाइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और निदेशक स्तर की भर्तियां शामिल थीं.

आपको बता दें, लेटरल एंट्री में कैंडीडेट बिना यूपीएससी परीक्षा को दिए भर्ती किए जाते हैं. इसमें रिजर्वेशन के नियमों का कोई फायदा नहीं मिलता है. वहीं, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसको लेकर विरोध भी जताया था. उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के द्वारा भर्ती करके आरक्षित वर्ग का हक छीना जा रहा है.

इस मामले पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आज प्रधानमंत्री मोदी जी ने सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए लैटरल एंट्री पर एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. यह मामला पिछले 3-4 दिनों से चल रहा था. उन्होंने कहा कि पीएमओ में तैनात राज्य मंत्री ने यूपीएससी को पत्र लिखा है कि जब तक आरक्षण का पूरा प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक के लिए इसे वापस ले लें. मेघवाल ने आगे कहा कि हालांकि ये सच है कि लेटरल एंट्री की शुरुआत कांग्रेस के जमाने से हुई. आरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी हमेशा गरीबों के साथ खड़े रहते हैं. इस फैसले में भी प्रधानमंत्री एससी, एसटी और ओबीसी के साथ खड़े हैं.

इस मामले पर विवाद बढ़ने के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री का चलन आज से नहीं है. यह 1970 से कांग्रेस के शासनकाल से लागू है. उन्होंने कहा कि इसके ताजे उदाहरण देखने हैं तो मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर एक नजर डाल लीजिए.

पढ़ें: कांग्रेस सरकार में ही पनपा था 'लेटरल एंट्री' का आइडिया, किसने की थी इसकी वकालत? जानें - Lateral Entry

नई दिल्ली: यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर विवाद छिड़ गया है. ताजा जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने मंगलवार को लेटरल एंट्री के निकाले गए विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है. इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी चेयरमैन को लेटर लिखा है. एक तरफ विपक्ष इसकी आलोचना कर रहा है. तो दूसरी ओर सरकार इसका बचाव कर रही है.

बता दें, पीएम मोदी के निर्देश के बाद यह कदम उठाया गया है. इससे पहले 17 अगस्त को एक विज्ञापन निकाला गया था, जिसमें करीब 45 ज्वाइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और निदेशक स्तर की भर्तियां शामिल थीं.

आपको बता दें, लेटरल एंट्री में कैंडीडेट बिना यूपीएससी परीक्षा को दिए भर्ती किए जाते हैं. इसमें रिजर्वेशन के नियमों का कोई फायदा नहीं मिलता है. वहीं, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसको लेकर विरोध भी जताया था. उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के द्वारा भर्ती करके आरक्षित वर्ग का हक छीना जा रहा है.

इस मामले पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आज प्रधानमंत्री मोदी जी ने सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए लैटरल एंट्री पर एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. यह मामला पिछले 3-4 दिनों से चल रहा था. उन्होंने कहा कि पीएमओ में तैनात राज्य मंत्री ने यूपीएससी को पत्र लिखा है कि जब तक आरक्षण का पूरा प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक के लिए इसे वापस ले लें. मेघवाल ने आगे कहा कि हालांकि ये सच है कि लेटरल एंट्री की शुरुआत कांग्रेस के जमाने से हुई. आरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी हमेशा गरीबों के साथ खड़े रहते हैं. इस फैसले में भी प्रधानमंत्री एससी, एसटी और ओबीसी के साथ खड़े हैं.

इस मामले पर विवाद बढ़ने के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री का चलन आज से नहीं है. यह 1970 से कांग्रेस के शासनकाल से लागू है. उन्होंने कहा कि इसके ताजे उदाहरण देखने हैं तो मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर एक नजर डाल लीजिए.

पढ़ें: कांग्रेस सरकार में ही पनपा था 'लेटरल एंट्री' का आइडिया, किसने की थी इसकी वकालत? जानें - Lateral Entry

Last Updated : Aug 20, 2024, 3:04 PM IST
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