कोटा. कहते हैं, सफलता किसी की मोहताज नहीं होती. जो भी मेहनत करता है, उसे सफलता जरूर मिलती है. कोटा में पढ़ने वाले कई स्टूडेंट्स इस कहावत को हकीकत में बदल देते हैं. ऐसा ही एक गरीब परिवार की बच्ची ने किया है. जिसके पिता कोचिंग संस्थान के बाहर ही जूस की थड़ी लगाते हैं और बेटी ने जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम मेन को क्रैक कर लिया. अब वो एडवांस एक्जाम की तैयारी में लगी है, जो इसी माह में होगा. इसके बाद उसका इंजीनियरिंग में एडमिशन हो जाएगा.
फीस और किराए के रूम में मिली रियायत : छात्रा करीना के पिता भरत कुमार शहर के रोड नं. 1 पर कोचिंग संस्थान के सामने जूस की थड़ी लगाते हैं. करीना ने जेईई मेन में एससी कैटेगरी रैंक 43367 प्राप्त की है. ओवरआल रैंक 5,86,985 है. उसका एनटीए स्कोर 61.0211990 है. उसने दसवीं कक्षा में 77 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे. उसके पिता भरत कुमार और चाचा करण कुमार दोनों साथ ही किराए से कोटा में रहते हैं.
भरत कुमार की सुनने की क्षमता केवल 10 प्रतिशत है, इसलिए करण के साथ मिलकर वो थड़ी चलाते हैं. बेटी की इंजीनियरिंग करने की इच्छा थी, लेकिन आर्थिक स्थिति सही नहीं थी. कोचिंग नहीं करवा सकते थे. ऐसे में अपनी थड़ी के सामने ही संचालित कोचिंग संस्थान रिलायबल इंस्टीट्यूट में भरत कुमार ने बात की. इंस्टीट्यूट के शिवशक्ति सिंह ने फीस में रियायत की और करीना को पढ़ने के लिए प्रेरित किया.
पहले ही प्रयास में JEE MAINS क्रैक : बता दें कि करीना ने पहले चांस में 12वीं कक्षा के साथ जेईई मेन क्रैक की. करीना का परिवार परिवार छत्तीसगढ़ में रहता है. वहां कच्चा घर है, जिसका कुछ हिस्सा केन्द्र सरकार की योजना के तहत पक्का बनाया गया है. पिता भरत कुमार चौथी पास हैं व मां गंगा 12वीं पास है. कोटा आने की कहानी रोजगार की खोज में शुरू हुई. दोनों भाई दिल्ली में निर्माण कार्य में मजदूरी करते थे. भरत कुमार मिस्त्री थे तो भाई करण फोरमैन थे. कोटा में यहां रोड नं. 1 पर ही एक मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट बनना था, तो निर्माण कार्य से जुड़ी कंपनी ने इन्हें कोटा भेज दिया.
रोजगार के लिए कोटा आ गए. यहां काम किया, जो पैसा बचता था, उसे छत्तीसगढ़ भेज देते थे. इसी से परिवार चलता था. इधर तो काम पूरा होने लगा और उधर कोविड की काली छाया पड़ गई. बेरोजगारी के हालात हो गए. दोनों भाई कोटा में ही अटक गए. जैसे-तैसे दो वक्त का खाना मिल सका. सारी जमा पूंजी खर्च हो गई. खाने के लिए भी पैकेट देने आने वालों का इंतजार करना पड़ता था. जैसे-तैसे समय निकला. बच्चे व परिवार छत्तीसगढ़ में ही थे. कोरोना के बाद दोनों भाइयों ने कोटा में रोड साइड पर बच्चों के लिए चाय-पानी और जूस का काम करना शुरू कर दिया.
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काम की तलाश में आए थे कोटा : उधर, छत्तीसगढ़ में बेटी ने 2022 में दसवीं कक्षा अच्छे नम्बर से पास की. कोटा में रहकर शिक्षा का महत्व समझ चुके पिता और चाचा ने बेटी को कोटा बुलाकर यहां पढ़ाने का निर्णय लिया ताकि वो अपना भविष्य बना सके. इस तरह करीना का कोटा आना तय हुआ. कोटा में जिस मल्टीस्टोरी को बनाया था, उनके मालिकों ने उनकी स्थिति देखकर उसी बिल्डिंग में एक फ्लैट रियायत पर किराये पर दिया हुआ है. दो कमरों में दोनों भाईयों का परिवार रहता है. घर में सुविधा के नाम पर खाना बनाने के लिए गैस है. दोनों भाइयों के चेहरों पर आज खुशी है कि करीना जेईई-मेन में सफल हुई है.
करीना ने बताया कि मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोटा जाकर जेईई की तैयारी कर सकूंगी. कोटा में पापा-चाचा आए तो उन्हें लगा कि मुझे यहां आना चाहिए और कोटा के बारे में जितना सुना था, उससे भी अच्छा शहर है. कोचिंग में मुझे पूरा सपोर्ट मिला. पढ़ने का इतना अच्छा माहौल मिला कि मैं अपना सपना साकार करने की तरफ बढ़ रही हूं. अभी तो एडवांस्ड क्रैक करने की तैयारी कर रही हूं. आईआईटी से बीटेक करना चाहती हूं.