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झारखंड चुनाव में महाराजा पुत्र का रिकॉर्ड आज तक है कायम, 25 वोट ने बचाई थी प्रतिष्ठा, दो और सीटें जहां डबल डिजीट ने तय किया था भाग्य - Jharkhand assembly election

Importance of vote in Jharkhand elections. लोकतंत्र का महापर्व होता है चुनाव. इस महापर्व में जनता अपने वोट की ताकत से सरकार बनाती है. हर एक वोट काफी कीमती होती है. एक-एक वोट से चुनाव में प्रत्याशियों की किस्मत तय होती है. हर एक वोट कितना महत्वपूर्ण है, इस रिपोर्ट से समझिए.

JHARKHAND ASSEMBLY ELECTION
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 25, 2024, 6:15 AM IST

रांचीः राज्य गठन के बाद झारखंड में पांचवी बार विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है. वोट साधने का खेल शुरु हो चुका है. लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत है 'वोट'. एक वोट से हार और जीत तय होती है. सरकार बनती है और गिरती है. वोट की चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि झारखंड में अबतक तीन बार ऐसे मौके आए हैं, जब महज 25, 35 और 43 वोट के अंतर से हार-जीत तय हुई है. यह रिकॉर्ड रातू महाराजा के पुत्र गोपाल एस.एन.शाहदेव के नाम है.

डबल डिजिट में हार और जीत
2005 के चुनाव में हुसैनाबाद सीट के नतीजों ने सबको चौंका दिया था. इस चुनाव में राजद के संजय कुमार की सिर्फ 35 वोट से हार हुई थी. उन्हें एनसीपी के कमलेश सिंह ने हराया था. 2009 में इस रिकॉर्ड को रातू महाराजा के पुत्र गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने तोड़ दिया. हटिया सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर गोपाल एस. एन. शाहदेव ने भाजपा के रामजी लाल सारडा को महज 25 वोट के अंतर से हराया था. झारखंड बनने के बाद आजतक इतने कम वोट के अंतर से किसी की हार-जीत तय नहीं हुई है. तीसरा रिकॉर्ड बना साल 2014 के चुनाव में. तब खूंटी जिला के तोरपा सीट से झामुमो प्रत्याशी पौलुस सुरीन से भाजपा के कोचे मुंडा महज 43 वोट के अंतर से हार गये थे. ये तीन ऐसे चुनाव हुए जब अंतिम राउंड की काउंटिंग तक प्रत्याशी और समर्थकों की सांसें थमी रहीं.

2014 के चुनाव में कम वोट से हार-जीत

2014 में बड़कागांव सीट से कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला देवी ने आजसू प्रत्याशी को सिर्फ 411 वोट से हराया था. दूसरे नंबर पर रही लोहरदगा सीट. यहां आजसू के कमल किशोर भगत की महज 592 वोट के अंतर से जीत हुई थी. उन्होंने कांग्रेस के सुखदेव भगत को हराया था. खास बात है कि 2009 के चुनाव में भी कमल किशोर भगत के जीत का अंतर सिर्फ 606 वोट था. उस वक्त भी सुखदेव भगत से ही मुकाबला हुआ था.

तीसरे नंबर पर राजमहल से भाजपा के अनंत कुमार ओझा का नाम आता है. इन्होंने झामुमो के मो. ताजुद्दीन को 702 वोट के अंतर से हराया था. चौथे नंबर पर संथाल की बोरियो सीट है. यहां दिलचस्प मुकाबला हुआ था. भाजपा के ताला मरांडी की महज 712 वोट से जीत हुई थी. उन्होंने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को हराया था. पांचवें नंबर पर झामुमो के चंपई सोरेन रहे थे. इन्होंने सरायकेला में भाजपा के गणेश महली को महज 1,115 वोट से हराया था. अंत में नंबर आता है पांकी सीट का. यहां से कांग्रेस प्रत्याशी विदेश सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार कुशवाहा शशिभूषण मेहता को 1,995 वोट से हराया था. हालांकि बाद में विदेश सिंह का असमय निधन हो गया था और उनके पुत्र देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू ने उपचुनाव जीता था.

2019 के चुनाव में कम वोट से हार-जीत

यहां रिकॉर्ड सिमडेगा से कांग्रेस विधायक भूषण बाड़ा के नाम है. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी श्रद्धानंद बेसरा को महज 285 वोट से हराया था. दूसरे नंबर पर बाघमारा सीट रही. यहां से भाजपा के ढुल्लू महतो ने कांग्रेस के जलेश्वर महतो को सिर्फ 824 वोट से मात दी थी. तीसरे नंबर पर भाजपा की डॉ नीरा यादव रहीं. उन्होंने कोडरमा में राजद के अमिताभ कुमार को 1,797 वोट से हराया था. चौथा स्थान जे.पी.पटेल के नाम रहा. झामुमो से भाजपा में आकर उन्होंने मांडू सीट से आजसू के निर्मल महतो को सिर्फ 2,062 वोट से शिकस्त दी थी.

कम वोट के अंतर से पांचवीं जीत सीता सोरेन के नाम रही. जामा में उन्होंने भाजपा के सुरेश मुर्मू को 2,426 वोट से शिकस्त दी थी. छठा नाम भाजपा के नारायण दास का है. देवघर में उन्होंने राजद के सुरेश पासवान को 2,624 वोट से हराया था. सातवां स्थान बादल पत्रलेख के नाम रहा. उन्होंने जरमुंडी में भाजपा के देवेंद्र कुंअर को 3,099 वोट के अंतर से हराया था. भाजपा के अमित मंडल आठवें स्थान पर रहे. उन्होंने राजद के संजय प्रसाद यादव को 4,512 वोट से शिकस्त दी थी.

पिछले पांच वर्षों में इन आठ सीटों का समीकरण भी बदल गया है. जामा से विधायक रहीं सीता सोरेन अब भाजपा में जा चुकी हैं. जरमुंडी चुनाव जीतकर कृषि मंत्री बने बादल पत्रलेख को चुनाव के ठीक पहले मंत्री पद से हटा दिया गया है. उनके टिकट पर संशय बना हुआ है. मांडू चुनाव जीतने वाले जे.पी.पटेल लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जा चुके हैं. बाघमारा से विधायक रहे ढुल्लू महतो अब धनबाद से भाजपा के सांसद बन गये. इनके अलावा भाजपा की नीरा यादव और अमित मंडल पार्टी के साथ अगली पारी खेलने की तैयारी में हैं. रही बात सिमडेगा से कांग्रेस विधायक भूषण बाड़ा की तो उनपर भी तलवार लटक रही है क्योंकि 2019 में सबसे कम वोट के अंतर से उन्हीं की जीत हुई थी.

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रांचीः राज्य गठन के बाद झारखंड में पांचवी बार विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है. वोट साधने का खेल शुरु हो चुका है. लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत है 'वोट'. एक वोट से हार और जीत तय होती है. सरकार बनती है और गिरती है. वोट की चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि झारखंड में अबतक तीन बार ऐसे मौके आए हैं, जब महज 25, 35 और 43 वोट के अंतर से हार-जीत तय हुई है. यह रिकॉर्ड रातू महाराजा के पुत्र गोपाल एस.एन.शाहदेव के नाम है.

डबल डिजिट में हार और जीत
2005 के चुनाव में हुसैनाबाद सीट के नतीजों ने सबको चौंका दिया था. इस चुनाव में राजद के संजय कुमार की सिर्फ 35 वोट से हार हुई थी. उन्हें एनसीपी के कमलेश सिंह ने हराया था. 2009 में इस रिकॉर्ड को रातू महाराजा के पुत्र गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने तोड़ दिया. हटिया सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर गोपाल एस. एन. शाहदेव ने भाजपा के रामजी लाल सारडा को महज 25 वोट के अंतर से हराया था. झारखंड बनने के बाद आजतक इतने कम वोट के अंतर से किसी की हार-जीत तय नहीं हुई है. तीसरा रिकॉर्ड बना साल 2014 के चुनाव में. तब खूंटी जिला के तोरपा सीट से झामुमो प्रत्याशी पौलुस सुरीन से भाजपा के कोचे मुंडा महज 43 वोट के अंतर से हार गये थे. ये तीन ऐसे चुनाव हुए जब अंतिम राउंड की काउंटिंग तक प्रत्याशी और समर्थकों की सांसें थमी रहीं.

2014 के चुनाव में कम वोट से हार-जीत

2014 में बड़कागांव सीट से कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला देवी ने आजसू प्रत्याशी को सिर्फ 411 वोट से हराया था. दूसरे नंबर पर रही लोहरदगा सीट. यहां आजसू के कमल किशोर भगत की महज 592 वोट के अंतर से जीत हुई थी. उन्होंने कांग्रेस के सुखदेव भगत को हराया था. खास बात है कि 2009 के चुनाव में भी कमल किशोर भगत के जीत का अंतर सिर्फ 606 वोट था. उस वक्त भी सुखदेव भगत से ही मुकाबला हुआ था.

तीसरे नंबर पर राजमहल से भाजपा के अनंत कुमार ओझा का नाम आता है. इन्होंने झामुमो के मो. ताजुद्दीन को 702 वोट के अंतर से हराया था. चौथे नंबर पर संथाल की बोरियो सीट है. यहां दिलचस्प मुकाबला हुआ था. भाजपा के ताला मरांडी की महज 712 वोट से जीत हुई थी. उन्होंने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को हराया था. पांचवें नंबर पर झामुमो के चंपई सोरेन रहे थे. इन्होंने सरायकेला में भाजपा के गणेश महली को महज 1,115 वोट से हराया था. अंत में नंबर आता है पांकी सीट का. यहां से कांग्रेस प्रत्याशी विदेश सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार कुशवाहा शशिभूषण मेहता को 1,995 वोट से हराया था. हालांकि बाद में विदेश सिंह का असमय निधन हो गया था और उनके पुत्र देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू ने उपचुनाव जीता था.

2019 के चुनाव में कम वोट से हार-जीत

यहां रिकॉर्ड सिमडेगा से कांग्रेस विधायक भूषण बाड़ा के नाम है. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी श्रद्धानंद बेसरा को महज 285 वोट से हराया था. दूसरे नंबर पर बाघमारा सीट रही. यहां से भाजपा के ढुल्लू महतो ने कांग्रेस के जलेश्वर महतो को सिर्फ 824 वोट से मात दी थी. तीसरे नंबर पर भाजपा की डॉ नीरा यादव रहीं. उन्होंने कोडरमा में राजद के अमिताभ कुमार को 1,797 वोट से हराया था. चौथा स्थान जे.पी.पटेल के नाम रहा. झामुमो से भाजपा में आकर उन्होंने मांडू सीट से आजसू के निर्मल महतो को सिर्फ 2,062 वोट से शिकस्त दी थी.

कम वोट के अंतर से पांचवीं जीत सीता सोरेन के नाम रही. जामा में उन्होंने भाजपा के सुरेश मुर्मू को 2,426 वोट से शिकस्त दी थी. छठा नाम भाजपा के नारायण दास का है. देवघर में उन्होंने राजद के सुरेश पासवान को 2,624 वोट से हराया था. सातवां स्थान बादल पत्रलेख के नाम रहा. उन्होंने जरमुंडी में भाजपा के देवेंद्र कुंअर को 3,099 वोट के अंतर से हराया था. भाजपा के अमित मंडल आठवें स्थान पर रहे. उन्होंने राजद के संजय प्रसाद यादव को 4,512 वोट से शिकस्त दी थी.

पिछले पांच वर्षों में इन आठ सीटों का समीकरण भी बदल गया है. जामा से विधायक रहीं सीता सोरेन अब भाजपा में जा चुकी हैं. जरमुंडी चुनाव जीतकर कृषि मंत्री बने बादल पत्रलेख को चुनाव के ठीक पहले मंत्री पद से हटा दिया गया है. उनके टिकट पर संशय बना हुआ है. मांडू चुनाव जीतने वाले जे.पी.पटेल लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जा चुके हैं. बाघमारा से विधायक रहे ढुल्लू महतो अब धनबाद से भाजपा के सांसद बन गये. इनके अलावा भाजपा की नीरा यादव और अमित मंडल पार्टी के साथ अगली पारी खेलने की तैयारी में हैं. रही बात सिमडेगा से कांग्रेस विधायक भूषण बाड़ा की तो उनपर भी तलवार लटक रही है क्योंकि 2019 में सबसे कम वोट के अंतर से उन्हीं की जीत हुई थी.

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