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क्या है माओवादियों की आरपीसी? जिसे ग्रामीण इलाकों में माओवादी कर रहे एक्टिव - What is Maoist RPC

झारखंड के माओवादी अब अपने आरपीसी को फिर से एक्टिव कर रहे हैं. इसके जरिए वे ग्रामीणों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या है आरपीसी और पुलिस के लिए क्यों ये सिर्द दर्द बनती जा रही है, जानिए इस रिपोर्ट में.

MAOIST RPC
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 6, 2024, 5:27 PM IST

पलामू: दो अप्रैल को पुलिस ने पिपरा थाना क्षेत्र में छापेमारी करते हुए पंकज प्रजापति नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार पंकज प्रजापति के पास से पुलिस ने माओवादियों के पोस्टर की एक बड़ी खेप को बरामद किया था. इन पोस्टरों में माओवादियों ने वोट बहिष्कार को लेकर कई बातों का जिक्र किया था. पोस्ट में माओवादियों के वोट बहिष्कार के लिए क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) का जिक्र है. दरअसल कुछ वर्षों से माओवादी अपने पोस्टर और बैनर में आरपीसी शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे. माओवादियों ने कई वर्षों के बाद क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) का इस्तेमाल किया है. माओवादी अपने इस संगठन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं.

क्या है माओवादियों की क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी)

दरअसल प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) एक पोषक संगठन है. जो माओवादियों के हथियारबंद दस्ते को कई तरह से मदद पहुंचाती है. एक पूर्व माओवादी के अनुसार आरपीसी के सदस्य आम ग्रामीण की तरह रहते हैं, इनका काम माओवादियों की बातों को आम ग्रामीणों तक पहुंचाना होता है. एक तरह से ये माओवादियों के हथियारबंद दस्ते और आम ग्रामीणों के बीच पुल का काम करते हैं. माओवादी आरपीसी के सदस्यों के माध्यम से ही पोस्टर बैनर को ग्रामीण इलाकों में लगवाते हैं.

पूर्व माओवादी के अनुसार शुरुआत में गांव में आरपीसी का गठन किया गया था, आरपीसी में एक-एक गांव से छह से सात सदस्य होते थे. कई बार आरपीसी के सदस्य माओवादियों के विभिन्न प्रकार की सूचना उपलब्ध करवाते थे. जबकि कई बार आरपीसी के सदस्य सुरक्षा घेरा भी तैयार करते थे और सामग्री उपलब्ध करवाते थे.

झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाकों में आरपीसी को एक्टिव करने की कोशिश

माओवादी झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्र में आरपीसी को एक्टिव करने की कोशिश कर रहे हैं. पुलिस सूत्रों के अनुसार आरपीसी को एक्टिव करने में 15 लाख इनामी माओवादी कमांडर नितेश यादव, संजय गोदराम और सीताराम रजवार की भूमिका है. जबकि माओवादी कमांडर राजेंद्र सिंह को आरपीसी के लिए बैनर पोस्टर बनवाने की जिम्मेदारी दी गई है. नितेश यादव बिहार के गया के डुमरिया, संजय गोदराम पलामू के छतरपुर थाना क्षेत्र के देवगन, सीताराम रजवार बिहार के औरंगाबाद के नबीनगर जबकि राजेंद्र सिंह बिहार के औरंगाबाद के टंडवा के इलाके का रहने वाला है.

पुलिस ग्रामीणों को कर रही जागरूक और चलाया जा रहा अभियान

पुलिस ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से संपर्क कर रही है और उन्हें जागरूक कर रही है. एंटी नक्सल अभियान में शामिल जवान एवं पुलिस अधिकारी ग्रामीणों से बातचीत करते हैं और उन्हें कई तरह से समझाते है. ग्रामीणों के बीच पुलिस के अधिकारी कॉन्फिडेंस बिल्डिंग भी कर रहे है. पलामू एसपी रीष्मा रमेशन ने बताया कि पुलिस सभी इलाको में नजर बनाए हुए है, लोगों को मुख्यधारा से भटकाने वालो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. नक्सल प्रभावित इलाकों में अभियान चलाया जा रहा है.

ये भी पढ़ें:
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सारंडा में मौजूद माओवादियों के पास पैसे हुए खत्म! दूसरे इलाके के कमांडरों से मांगी जा रही मदद

पलामू: दो अप्रैल को पुलिस ने पिपरा थाना क्षेत्र में छापेमारी करते हुए पंकज प्रजापति नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार पंकज प्रजापति के पास से पुलिस ने माओवादियों के पोस्टर की एक बड़ी खेप को बरामद किया था. इन पोस्टरों में माओवादियों ने वोट बहिष्कार को लेकर कई बातों का जिक्र किया था. पोस्ट में माओवादियों के वोट बहिष्कार के लिए क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) का जिक्र है. दरअसल कुछ वर्षों से माओवादी अपने पोस्टर और बैनर में आरपीसी शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे. माओवादियों ने कई वर्षों के बाद क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) का इस्तेमाल किया है. माओवादी अपने इस संगठन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं.

क्या है माओवादियों की क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी)

दरअसल प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की क्रांतिकारी जन कमेटी जनताना सरकार (आरपीसी) एक पोषक संगठन है. जो माओवादियों के हथियारबंद दस्ते को कई तरह से मदद पहुंचाती है. एक पूर्व माओवादी के अनुसार आरपीसी के सदस्य आम ग्रामीण की तरह रहते हैं, इनका काम माओवादियों की बातों को आम ग्रामीणों तक पहुंचाना होता है. एक तरह से ये माओवादियों के हथियारबंद दस्ते और आम ग्रामीणों के बीच पुल का काम करते हैं. माओवादी आरपीसी के सदस्यों के माध्यम से ही पोस्टर बैनर को ग्रामीण इलाकों में लगवाते हैं.

पूर्व माओवादी के अनुसार शुरुआत में गांव में आरपीसी का गठन किया गया था, आरपीसी में एक-एक गांव से छह से सात सदस्य होते थे. कई बार आरपीसी के सदस्य माओवादियों के विभिन्न प्रकार की सूचना उपलब्ध करवाते थे. जबकि कई बार आरपीसी के सदस्य सुरक्षा घेरा भी तैयार करते थे और सामग्री उपलब्ध करवाते थे.

झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाकों में आरपीसी को एक्टिव करने की कोशिश

माओवादी झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्र में आरपीसी को एक्टिव करने की कोशिश कर रहे हैं. पुलिस सूत्रों के अनुसार आरपीसी को एक्टिव करने में 15 लाख इनामी माओवादी कमांडर नितेश यादव, संजय गोदराम और सीताराम रजवार की भूमिका है. जबकि माओवादी कमांडर राजेंद्र सिंह को आरपीसी के लिए बैनर पोस्टर बनवाने की जिम्मेदारी दी गई है. नितेश यादव बिहार के गया के डुमरिया, संजय गोदराम पलामू के छतरपुर थाना क्षेत्र के देवगन, सीताराम रजवार बिहार के औरंगाबाद के नबीनगर जबकि राजेंद्र सिंह बिहार के औरंगाबाद के टंडवा के इलाके का रहने वाला है.

पुलिस ग्रामीणों को कर रही जागरूक और चलाया जा रहा अभियान

पुलिस ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से संपर्क कर रही है और उन्हें जागरूक कर रही है. एंटी नक्सल अभियान में शामिल जवान एवं पुलिस अधिकारी ग्रामीणों से बातचीत करते हैं और उन्हें कई तरह से समझाते है. ग्रामीणों के बीच पुलिस के अधिकारी कॉन्फिडेंस बिल्डिंग भी कर रहे है. पलामू एसपी रीष्मा रमेशन ने बताया कि पुलिस सभी इलाको में नजर बनाए हुए है, लोगों को मुख्यधारा से भटकाने वालो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. नक्सल प्रभावित इलाकों में अभियान चलाया जा रहा है.

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