रांची: चंपाई सोरेन प्रकरण ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर की खींचतान और अंतर्द्वंद की राजनीति को सार्वजनिक कर दिया है. चंपाई सोरेन के सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से कहीं बात से एक बात तो साफ हो गया है कि राज्य की राजनीति में अब चंपाई सोरेन ने झामुमो से अलग-अपनी राह पकड़ ली है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर से अपने नेतृत्व के खिलाफ कोई सशक्त आवाज उठी है. अगर इससे पहले भी पार्टी के नेताओं ने बगावत और दल बदल की है तो उनकी राजनीति कैसी रही है.
झारखंड की राजनीति को बेहद नजदीक से देखने समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि झामुमो में शिबू सोरेन से बगावत कर कोल्हान के ही कृष्णा मार्डी ने पार्टी ही तोड़ दी थी और अलग मार्डी गुट बना लिया था. जिसमें कई सांसद और विधायक उनके साथ थे लेकिन आज कृष्णा मार्डी कहां हैं शायद ही कोई सामान्य व्यक्ति जनता हो. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि अर्जुन मुंडा और विद्युत वरण महतो को छोड़ दें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर किसी भी नेता का राजनीति ग्राफ ऊपर नहीं चढ़ सका.
सूरज मंडल, साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, टेकलाल महतो जैसे झामुमो के दिग्गज नेता समय-समय पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को छोड़ कर दूसरे दल में गए. लेकिन वह मुकाम हासिल नहीं कर सकें जितना बड़ा उनका कद झामुमो में था.
कृष्णा मार्डी- कभी कोल्हान क्षेत्र के कद्दावर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता रहे कृष्णा मार्डी ने 1992 में 09 विधायकों के साथ झामुमो को तोड़ दिया, तब वह खुद भी सांसद थे. उस समय ऐसा लगने लगा था कि राज्य की राजनीति में झारखंड मुक्ति मोर्चा का डाउन फॉल शुरू हो गया है. लेकिन दिशोम गुरु शिबू सोरेन की पार्टी कमबैक किया. कृष्णा मार्डी और उनकी पार्टी नेपथ्य में चलती चली गयी. इसके बाद कोल्हान के बड़े नेता रहे कृष्णा मार्डी झामुमो, भाजपा, आजसू, कांग्रेस तक में गए लेकिन कहीं सफल नहीं हुए.
सीता सोरेन को भी हार का ही करना पड़ा सामना
झामुमो से बगावत कर राजनीति में असफल होने का सबसे ताजा उदाहरण सीता सोरेन का है. जामा से झामुमो की विधायिकी से इस्तीफा देकर उन्होंने भाजपा के सिंबल पर दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ीं और झामुमो उम्मीदवार नलिन सोरेन से पराजित हो गयीं.
सूरज मंडल- शिबू सोरेन-हेमंत सोरेन की नीतियों का विरोध कर पार्टी से अलग होने में सबसे बड़ा नाम सूरज मंडल का है. झारखंड के अलग राज्य बनने से बने झारखंड स्वायतशासी परिषद के उपाध्यक्ष रहे सूरज मंडल का नाम झामुमो में गुरुजी के बाद दूसरे नंबर पर होता था. इसके बाद में उनकी गुरुजी से अनबन बढ़ती गयी उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. जेएमएम से बाहर रहकर वह राजनीति में कोई जलवा नहीं दिखा सके.
झामुमो नेतृत्व से की बगावत, आज राजनीति के हाशिये पर
चंपाई सोरेन से पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा में नेताओं की लंबी कतार है, जिन्होंने पार्टी से बगावत की लेकिन राजनीति में सफल नहीं हो सके. इनमें हेमलाल मुर्मू, अर्जुन महतो, शिवा महतो, दुलाल भुइयां, साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी, कुणाल सारंगी, अमित महतो जैसे कई नाम हैं, जो पार्टी से अलग हुए. इनमें से कई असफल होने के बाद घर वापसी कर ली तो कई अभी भी संघर्ष की राजनीति कर रहे हैं.
झामुमो से अलग होकर सिर्फ ये तीन हुए सफल
झारखंड मुक्ति मोर्चा से बगावत कर अलग होने वाले नेताओं की सूची में सिर्फ तीन ही ऐसे नाम हैं जो पार्टी से अलग होने के बाद भी अपनी राजनीतिक साख को बरकरार रखा है. इसमें बड़ा नाम अर्जुन मुंडा का है, जिनका राजनीतिक जीवन झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुरू हुआ और फिर भाजपा में शामिल होकर तीन-तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री का पद भी सुशोभित किया. वहीं जमशेदपुर से सांसद विद्युतवरण महतो भी ऐसे नेता रहे जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर भी अपनी पहचान कायम रखी और लगातार तीसरी बार 2024 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. इसी कड़ी में तीसरा नाम जयप्रकाश भाई पटेल का भी है जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर मांडू से विधानसभा चुनाव जीता. यह और बात है कि वह अब भाजपा छोड़ कर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टी कांग्रेस के साथ हो गए है.
'व्यक्ति नहीं संगठन महत्वपूर्ण, दल छोड़ कर जाने वालों ने देखा अपना हाल'
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य और प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि किसी एक व्यक्ति के जाने आने से कोई फर्क पार्टी को नहीं पड़ता है. इसका इतिहास भी लोगों ने देखा है कोल्हान के ही एक बड़े नेता कृष्णा मार्डी ने तो पार्टी तोड़कर एक धड़ा ही बना लिया था उनका आज क्या हाल है यह राज्य की जनता जानती है. सूरज मंडल, स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी सहित तमाम बड़े नाम है जो कभी न कभी हमारा साथ छोड़ कर गए और उसमें से कई राजनीति के हाशिये पर चले गए तो कई फिर से अपने घर लौट आए.
बात मुद्दा के है- शिवपूजन पाठक
इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग उनके नेता क्यों सफल नहीं होते या झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता बताएंगे कि उनका क्या जादू और टोटका है. भाजपा के मीडिया प्रभारी ने कहा कि सवाल जीत हार का नहीं है, बल्कि मुद्दे की बात है. क्या यह सही है कि संविधान की शपथ लिए हुए व्यक्ति को सरकारी आयोजन करने से कोई तीसरा व्यक्ति रोक दे. आज की तारीख में यह बात हेमंत सोरेन के साथ को तो उन्हें क्या यह अच्छा लगेगा? जनता इसका जवाब आनेवाले चुनाव में जरूर देगी. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि जो भी व्यक्ति कष्ट में हो उसको लेकर इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए कि वह भविष्य में सफल नहीं होगा या असफल होगा.