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हाई कोर्ट ने K-FON परियोजना की CBI जांच मांग वाली याचिका खारिज की - KERALA HIGH COURT

Kerala High Court, केरल हाई कोर्ट ने विपक्ष के नेता वीडी सतीशन के द्वारा केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (K-FON) परियोजना में भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई जांच कराने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. पढ़िए पूरी खबर...

Leader of Opposition in the Kerala Assembly VD Satheesan
केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन (file photo- ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 13, 2024, 5:15 PM IST

कोच्चि (केरल): केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन को झटका देते हुए केरल हाई कोर्ट ने शुक्रवार को उनकी जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार की केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (K-FON) परियोजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था और इसकी सीबीआई जांच की मांग की गई थी. कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया गया क्योंकि इसमें हस्तक्षेप करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं मिला.

बता दें कि इस मुद्दे पर केरल विधानसभा के अंदर और बाहर विरोध प्रदर्शनों का दौर चल पड़ा था. मामले में न्यायमूर्ति एके जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वीएम की खंडपीठ ने कहा हम प्रतिवादियों द्वारा लिए गए निर्णयों में हस्तक्षेप करने या प्रतिवादियों को परियोजना के कार्यान्वयन से रोकने का कोई कारण नहीं देखते हैं, जिन पर रिट याचिका में आरोप लगाया गया है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि हम यह भी नहीं समझते कि इस स्तर पर याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच सीबीआई को सौंपना आवश्यक है. जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, सीएजी की रिपोर्ट जब उपलब्ध हो जाएगी तो विधानमंडल द्वारा उसकी जांच की जा सकेगी और यदि आवश्यक हुआ तो उचित कार्रवाई की जा सकेगी.

के-एफओएन मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की एक प्रमुख परियोजना थी जिसे उन्होंने 2021 में लॉन्च किया था और इसका उद्देश्य राज्य के सभी लोगों को हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करना था. इसे केरल राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (KSEB) के विद्युत नेटवर्क के समानांतर चलने वाले एक नए ऑप्टिक फाइबर मार्ग के माध्यम से चालू करने की परिकल्पना की गई थी. विधानसभा में इस मुद्दे पर हंगामा मचाने के बाद सतीशन ने एक जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया कि इसके ठेके एक एकल लाभार्थी कंपनी को सौंप दिए गए, जिसके हाई-प्रोफाइल कनेक्शन हैं.

जनहित याचिका में कहा गया कि एक परियोजना जो राज्य में डिजिटल पहुंच के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती थी, उसे अक्षम व्यक्तियों को सौंप दिया गया है, जिन्होंने आम आदमी की कीमत पर लाभ कमाने के लिए इसे बर्बाद कर दिया है. साथ ही अपनी जनहित याचिका में उन्होंने राज्य में सड़क यातायात को नियंत्रित करने के लिए एआई कैमरे लगाने में एक भ्रष्ट सौदे का भी उल्लेख किया.

ये भी पढ़ें- 'सीबीआई पिंजरे में बंद तोता ... इस छवि से बाहर निकलने की जरूरत'

कोच्चि (केरल): केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन को झटका देते हुए केरल हाई कोर्ट ने शुक्रवार को उनकी जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार की केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (K-FON) परियोजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था और इसकी सीबीआई जांच की मांग की गई थी. कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया गया क्योंकि इसमें हस्तक्षेप करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं मिला.

बता दें कि इस मुद्दे पर केरल विधानसभा के अंदर और बाहर विरोध प्रदर्शनों का दौर चल पड़ा था. मामले में न्यायमूर्ति एके जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वीएम की खंडपीठ ने कहा हम प्रतिवादियों द्वारा लिए गए निर्णयों में हस्तक्षेप करने या प्रतिवादियों को परियोजना के कार्यान्वयन से रोकने का कोई कारण नहीं देखते हैं, जिन पर रिट याचिका में आरोप लगाया गया है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि हम यह भी नहीं समझते कि इस स्तर पर याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच सीबीआई को सौंपना आवश्यक है. जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, सीएजी की रिपोर्ट जब उपलब्ध हो जाएगी तो विधानमंडल द्वारा उसकी जांच की जा सकेगी और यदि आवश्यक हुआ तो उचित कार्रवाई की जा सकेगी.

के-एफओएन मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की एक प्रमुख परियोजना थी जिसे उन्होंने 2021 में लॉन्च किया था और इसका उद्देश्य राज्य के सभी लोगों को हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करना था. इसे केरल राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (KSEB) के विद्युत नेटवर्क के समानांतर चलने वाले एक नए ऑप्टिक फाइबर मार्ग के माध्यम से चालू करने की परिकल्पना की गई थी. विधानसभा में इस मुद्दे पर हंगामा मचाने के बाद सतीशन ने एक जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया कि इसके ठेके एक एकल लाभार्थी कंपनी को सौंप दिए गए, जिसके हाई-प्रोफाइल कनेक्शन हैं.

जनहित याचिका में कहा गया कि एक परियोजना जो राज्य में डिजिटल पहुंच के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती थी, उसे अक्षम व्यक्तियों को सौंप दिया गया है, जिन्होंने आम आदमी की कीमत पर लाभ कमाने के लिए इसे बर्बाद कर दिया है. साथ ही अपनी जनहित याचिका में उन्होंने राज्य में सड़क यातायात को नियंत्रित करने के लिए एआई कैमरे लगाने में एक भ्रष्ट सौदे का भी उल्लेख किया.

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