बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अपील पर गुरुवार को सुनवाई की. एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कथित MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच के लिए कर्नाटक के राज्यपाल की मंजूरी को बरकरार रखा था.
खंडपीठ में जस्टिस केवी अरविंद भी शामिल हैं. गुरुवार को सुनवाई के दौरान कई प्रमुख वरिष्ठ वकीलों ने अपनी दलीलें पेश कीं. सीएम सिद्धारमैया की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि राज्यपाल की मंजूरी को बरकरार रखने वाला एकल न्यायाधीश का आदेश त्रुटिपूर्ण था.
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत, किसी भी जांच को आगे बढ़ाने से पहले सक्षम प्राधिकारी से पूर्व मंजूरी की जरूरत होती है. उन्होंने सवाल किया कि क्या राज्यपाल का हस्तक्षेप इस कानूनी सीमा को पूरा करता है. उन्होंने तर्क दिया कि राज्य मंत्रिमंडल की सलाह पर विचार किया जाना चाहिए था.
राज्य सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले के व्यापक संवैधानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल द्वारा मंजूरी देने के निर्णय में स्थापित अपवादों का पालन किया जाना चाहिए. सिब्बल ने कहा, "यह एक व्यक्ति के रूप सिद्धारमैया के बारे में नहीं है; यह संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा के बारे में है." उन्होंने इस बात पर स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर दिया कि क्या राज्यपाल ने कानून के दायरे में काम किया है.
मुख्य दलील और आपत्तियां
इस बीच, विवाद में मूल भूमि मालिक देवराजू की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने 80 वर्षीय किसान के रूप में उनकी भूमिका पर जोर दिया, जिन्होंने सिद्धारमैया की पत्नी के भाई को संबंधित भूमि बेची थी. उन्होंने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश की टिप्पणियों ने उन्हें निष्पक्ष सुनवाई के बिना दोषी ठहराया, जिससे उन्हें संभावित आपराधिक कार्यवाही में निस्सहाय बना दिया गया. दवे ने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल राजनीति में शामिल नहीं हैं. वह सिर्फ कष्ट देने वाली मुकदमेबाजी से सुरक्षा चाहते हैं.
दूसरी ओर, शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता केजी राघवन ने सीएम सिद्धारमैया की याचिका पर सवाल उठाते हुए इसका विरोध किया. उन्होंने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश के आदेश ने केवल एक नोटिस जारी किया था और खंडपीठ द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी.
महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने राघवन का समर्थन करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सूचित किया जाना चाहिए, और कोई एकतरफा रोक नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि अपीलों को जनवरी तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए, जिस पर बाद में सहमति बन गई.
अदालत की टिप्पणियां
खंडपीठ ने पूरी सुनवाई के दौरान तटस्थ रुख बनाए रखा और इस बात पर जोर दिया कि वह इस स्तर पर मामले की योग्यता पर टिप्पणी नहीं करेगी. मुख्य न्यायाधीश अंजारिया ने स्पष्ट किया कि एकल न्यायाधीश की कार्यवाही को प्रभावित करने से बचने के लिए सभी संबंधित मामलों की एक साथ सुनवाई की जाएगी.
जबकि शिकायतकर्ता के वकील ने अदालत से अपील को पूरी तरह से खारिज करने का आग्रह किया. लेकिन पीठ ने सभी पक्षों को नोटिस जारी करने का फैसला किया और सुनवाई 20 जनवरी, 2025 तक के लिए स्थगित कर दी.
क्या है मामला
यह मामला मुडा भूमि घोटाले से जुड़ा है और सीएम सिद्धारमैया के कार्यकाल के दौरान भूमि की अधिसूचना रद्द करने से सामने आया. शिकायतकर्ताओं का तर्क है कि अधिसूचना रद्द करने से कुछ व्यक्तियों को फायदा हुआ. साथ ही शहरी विकास मानदंडों का उल्लंघन हुआ. सिद्धारमैया के बचाव पक्ष ने कहा है कि अधिसूचना रद्द करना वैध था और राज्यपाल द्वारा जांच की मंजूरी राजनीति से प्रेरित थी. यह मामला एक मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी में राज्यपाल की भूमिका और अधिकार के बारे में संवैधानिक सवाल भी उठाता है.
यह भी पढ़ें- कर्नाटक हाई कोर्ट ने जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ चुनावी बांड मामला खारिज किया