रामनगर: संयुक्त विपक्षी भाजपा और जद (एस) ने कथित मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण साइट आवंटन घोटाले के खिलाफ रविवार को दूसरे दिन बेंगलुरु से मैसूर तक अपना सप्ताह भर का विरोध मार्च जारी रखा और कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को घेरने की कोशिश की.
मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती सहित अन्य लोगों को कथित धोखाधड़ी से भूमि आवंटन के खिलाफ और उनके इस्तीफे की मांग को लेकर 'मैसूर चलो' पदयात्रा के दूसरे दिन यहां बिदादी से शुरू हुई. पदयात्रा केंगल पहुंचने के लिए 22 किलोमीटर की दूरी तय करेगी.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक बी वाई विजयेन्द्र, जद (एस) के प्रदेश अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री एच डी कुमारस्वामी, विधान परिषद में विपक्ष के नेता चलवधी नारायणस्वामी, जद (एस) नेता निखिल कुमारस्वामी, दोनों पार्टियों के कई विधायक, नेता और कार्यकर्ता आज बिदादी से शुरू हुए मार्च में शामिल हुए.
दोनों पार्टियों के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और नेता ढोल-नगाड़ों के साथ भाजपा और जद(एस) के झंडे और तख्तियां लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए मार्च करते देखे गए. जिस रास्ते से मार्च गुजरा, उसे दोनों पार्टियों के झंडों, कई जगहों पर प्रमुख नेताओं की तस्वीरों से सजाया गया.
शनिवार को बेंगलुरु के पास केंगेरी से शुरू हुआ यह मार्च अपने पहले दिन 16 किलोमीटर की दूरी तय करके बिदादी पहुंचा. मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण 'घोटाले' में यह आरोप लगाया गया है कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में भूखंड आवंटित किया गया था, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था.
इसे मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित किया गया था. मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने पार्वती को 3.16 एकड़ जमीन के बदले 50:50 अनुपात वाली योजना के तहत प्लॉट आवंटित किए थे. जहां मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था.
विवादास्पद योजना के तहत, मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने आवासीय लेआउट बनाने के लिए उनसे अधिग्रहित अविकसित भूमि के बदले में भूमि खोने वालों को 50 प्रतिशत विकसित भूमि आवंटित की. भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण घोटाला 4,000 करोड़ से 5,000 करोड़ रुपये का है.
कांग्रेस सरकार ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण घोटाले की जांच के लिए 14 जुलाई को पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी एन देसाई के नेतृत्व में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था. अधिवक्ता और कार्यकर्ता टी जे अब्राहम द्वारा दायर याचिका के आधार पर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 26 जुलाई को 'कारण बताओ नोटिस' जारी किया था.
इसमें मुख्यमंत्री को निर्देश दिया गया था कि वे सात दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोपों पर अपना जवाब प्रस्तुत करें कि उनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति क्यों न दी जाए. कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को राज्यपाल को मुख्यमंत्री को जारी किए गए 'कारण बताओ नोटिस' को वापस लेने की 'दृढ़ता से सलाह' दी और राज्यपाल पर 'संवैधानिक कार्यालय के घोर दुरुपयोग' का आरोप लगाया. बैठक के बाद मंत्रिपरिषद ने कहा था कि राजनीतिक कारणों से कर्नाटक में विधिपूर्वक निर्वाचित बहुमत वाली सरकार को अस्थिर करने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है.