कोलकाता : अभिनेत्री कंगना रनौत हमेशा ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. इस समय वह हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा से भाजपा की प्रत्याशी हैं. तीन दिन पहले उन्होंने एक बयान दिया था. इसमें उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को देश का पहला प्रधानमंत्री बताया था. उन्होंने एक टेलीविजन साक्षात्कार के दौरान ऐसा कहा था.
कंगना का यह बयान एक निश्चित राजनीतिक विचारधारा के लिए उत्साहपूर्ण हो सकता है, जो यह मानते हैं कि नेहरू आजादी के बाद सिर्फ 'धक्का' देने वाले व्यक्ति थे. लेकिन जो लोग इतिहास, तर्क और ज्ञान पर भरोसा करते हैं, उनके लिए इस तरह के बयान असहज जरूर हो जाते हैं. कंगना के इस बयान ने पूरे देश में हलचल पैदा कर दी और टीआरपी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रिकॉर्ड के लिए आपको बता दें कि नेताजी एक प्रोविंशियल गवर्नमेंट सरकार के प्रमुख थे, जिसे उस समय कुछ विश्व ताकतों ने अपने उद्देश्यों के लिए अधिक, और भारत की स्वतंत्रता के लिए कम समर्थन दिया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पड़पोते इतिहासकार सुगाता बोस के अनुसार कंगना रनौत का बयान फैक्चुअली इनकरेक्ट है, भले ही कई लोग इसे स्वीकार करने से इनकार करें.
सुगाता बोस ने लिखा, 'दिसंबर 1943 के अंत में जब जापानियों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को सौंप दिया तो इसने (आजाद हिंद सरकार) ने भारतीय क्षेत्र के एक हिस्से पर वैधानिक नियंत्रण प्राप्त कर लिया, हालांकि जापानी नौसैनिकों द्वारा वास्तविक सैन्य नियंत्रण नहीं छोड़ा गया था.'
दुनिया भर में प्रमुख शक्तियों में जर्मनी, इटली और निश्चित रूप से नाजी शामिल थे. उन्होंने नेताजी की सरकार को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नायक का समर्थन करने के बजाय अंग्रेजों का विरोध करने के लिए अधिक मान्यता दी.
इसके अलावा आजाद हिंद सरकार से 28 महीने पहले, भारतीय स्वतंत्रता समिति (आईआईसी) ने काबुल में एक सरकार बनाई थी, जो कि नेताजी की तरह ही थी, जिसे अपने हितों को आगे बढ़ाने और विश्व शक्तियों के रूप में बने रहने के लिए कुछ सहयोगी शक्तियों द्वारा समर्थित किया गया था.
काबुल की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप और प्रधानमंत्री स्वतंत्रता सेनानी मौलाना बरकतुल्ला थे. सरकार में वे लोग शामिल थे जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता को सुविधाजनक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने का प्रयास करते हुए दशकों तक भारत से बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया था, जो अंततः 1947 में हासिल की गई थी. रिकॉर्ड के लिए नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, और घटनाओं के इस ऐतिहासिक मोड़ पर प्रतिस्पर्धा है.
कुछ लोग मान रहे हैं कि कंगना रनौत का बयान राजनीति से अधिक प्रेरित है, बहुत संभव है कि उन्हें इसका राजनीतिक लाभ भी मिल जाए और उन्हें कुछ अतिरिक्त वोट भी हासिल हो जाएं.
रनौत भाजपा के टिकट पर हिमाचल प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं. अपने बयानों से कंगना एक धारणा बनाने की कोशिश कर रहीं हैं, लेकिन वह सच्चाई से बहुत दूर है और देश की आजादी के 75 साल बाद के भारत के इतिहास को 'तोड़ने-मरोड़ने' जैसा है.
सुगाता बोस मानते हैं कि बेहतर होगा कि कंगना रनौत इतिहास की पुस्तकों को पढ़ें और उसके बाद ही कोई राय जाहिर किया करें.
(Disclaimer : इस लेख में लिखे गए विचार सुभाष चंद्र बोस के पड़पोते सुगाता बोस की राय पर आधारित है. ईटीवी भारत का इन विचारों से कोई लेना-देना नहीं है)