रांची: झारखंड की राजनीति मुख्य रूप से संथाल के इर्द-गिर्द घूमती है. संथाल को जेएमएम का गढ़ माना जाता है, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में एक क्षेत्र ने इस आकलन को पूरी तरह गलत साबित कर दिया और दिखा दिया कि जेएमएम का असली गढ़ कौन सा है. यह क्षेत्र है कोल्हान.
2019 में अगर बीजेपी को किसी क्षेत्र में सबसे बड़ा झटका लगा था तो वो कोल्हान ही था. यहां बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. वहीं, इस क्षेत्र में एक को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर जेएमएम और कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. अब एक बार फिर जेएमएम को कोल्हान से ऐसी ही उम्मीदें हैं. लेकिन क्या इस बार जेएमएम पिछली बार का जादू दोहरा पाएगा या फिर उसे इस बार झटका लगेगा?
2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान ने दिखा दिया कि झारखंड की राजनीति का असली किंग वही है. कोल्हान ने बीजेपी को ऐसा झटका दिया कि बीजेपी के हाथ से सरकार छिन गई. भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास को खुद अपनी परंपरागत सीट से हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के लिए सबसे बुरी बात यह रही कि कोल्हान में भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई.
कोल्हान का समीकरण
कोल्हान प्रमंडल में तीन जिले आते हैं. इन तीनों जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं. इन 14 में से 9 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. वहीं, एक सीट एससी के लिए आरक्षित है. कोल्हान ने झारखंड को अब तक चार सीएम दिए हैं. यहां से आने वाले अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुवर दास और चंपाई सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. कोल्हान ने ही झारखंड को पहला गैर आदिवासी मुख्यमंत्री भी दिया है. संथाल के बाद कोल्हान झारखंड की राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है.
2019 के चुनाव का नतीजा
2019 के विधानसभा चुनाव का नतीजा कोल्हान में सबसे चौंकाने वाला रहा था. इस इलाके में भाजपा की अच्छी पकड़ मानी जाती थी. लेकिन इस चुनाव ने इस आकलन को पूरी तरह गलत साबित कर दिया. कोल्हान की 14 सीटों में से भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई. रघुवर दास मुख्यमंत्री रहते हुए भी अपनी परंपरागत सीट नहीं बचा पाए. वहीं, झामुमो और कांग्रेस के गठबंधन ने यहां शानदार प्रदर्शन किया. दोनों पार्टियों ने कोल्हान की 14 में से 13 सीटों पर जीत दर्ज की. झामुमो ने 11 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय ने जीत दर्ज की. सरयू राय ने जमशेदपुर पश्चिम सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हराया था.
इस चुनाव में पार्टियों की रणनीति
2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने अपनी खोई जमीन वापस पाने की बड़ी चुनौती है. शायद यही वजह है कि भाजपा ने कोल्हान में कड़ी मेहनत की है. गृह मंत्री अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी ने कोल्हान में जनसभाएं की हैं. चंपाई सोरेन का झामुमो से भाजपा में आना भी भाजपा के लिए अच्छा कदम माना जा रहा है. भाजपा नेताओं ने कोल्हान में बोली जाने वाली हो भाषा को लेकर भी कई घोषणाएं की हैं.
वहीं, झामुमो और कांग्रेस मौजूदा हेमंत सरकार की योजनाओं को लेकर इस क्षेत्र में लोगों के बीच गए हैं. संविधान को खतरा, आरक्षण और जाति जनगणना को भी मुद्दा बनाया गया. मंईयां सम्मान योजना को लेकर झामुमो नेता सबसे मुखर होकर लोगों के बीच पहुंचे. झामुमो पिछली बार की जीत को दोहराने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन क्या यह आसान होने वाला है?
झामुमो नेताओं का दावा
जाहिर है, इस बार झामुमो को कोल्हान में चंपाई सोरेन के रूप में बड़ा झटका लगा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके भाजपा में शामिल होने से झामुमो को नुकसान होगा. झामुमो के कुछ नेताओं का मानना भी है कि इस बार उन्हें पिछली बार से कम सीटें मिल सकती हैं. वहीं, कुछ का मानना है कि इस बार भी वे पिछली बार की तरह जीत दर्ज करेंगे, बल्कि पिछली बार से ज्यादा सीटें जीतेंगे. उन्होंने आंकड़े भी बताए हैं, जिसके आधार पर वे फिर से सत्ता में वापसी का दावा कर रहे हैं.
झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य की मानें तो इस बार झामुमो को 12 सीटें मिलने वाली हैं. ऐसे में पिछली बार जहां उन्हें 11 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार उन्हें एक सीट ज्यादा मिलेगी. हालांकि, उनकी अपनी पार्टी के प्रवक्ता उनके इस आकलन से सहमत नहीं हैं. झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय का मानना है कि इस बार उन्हें एक सीट का नुकसान हो सकता है. उनके मुताबिक इस बार कोल्हान में झामुमो 10 सीटें जीतेगा.
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