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भरण-पोषण रद्द करने संबंधी याचिका खारिज, कोर्ट ने एक लाख रुपये लगाया जुर्माना - One Lakh Exemplary Costs - ONE LAKH EXEMPLARY COSTS

Jammu kashmir High Court : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक मामले में याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की भाषा को 'अपमानजनक' और 'किसी भी सभ्य समाज में अस्वीकार्य' बताते हुए इसकी निंदा की. जानिए क्या है पूरा मामला.

High Court
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट (ETV Bharat File photo)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 11, 2024, 3:54 PM IST

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) रद्द करने मांग संबंधी याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने 'पूरी तरह से गलत' आरोपों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता प्रोफेसर अब्दुल गनी भट पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

प्रोफेसर अब्दुल गनी भट (81) ने अपने बेटे का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए जम्मू-कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 488 के तहत अपनी बहू द्वारा शुरू की गई भरण-पोषण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके बेटे ने महिला (बहू) को तलाक दे दिया है, इसलिए भरण-पोषण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. साथ ही उन्होंने महिला पर कई गंभीर आरोप लगाए. इसके अतिरिक्त उन्होंने चौथे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौहर मजीद दलाल पर पक्षपात और कदाचार का आरोप लगाया.

हालांकि, मामले में न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने याचिकाकर्ता की भाषा को 'अपमानजनक' और 'किसी भी सभ्य समाज में अस्वीकार्य' बताते हुए इसकी निंदा की. न्यायमूर्ति कुमार ने टिप्पणी की कि 'लगाए गए आरोप केवल याचिकाकर्ता की महिलाओं, विशेषकर अपनी बहू के प्रति दूषित मानसिकता को दिखाते हैं.'

कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी : फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि याचिकाकर्ता 'आदतन वादी' है. उसे न्यायिक प्रणाली में कम विश्वास है. न्यायाधीशों को लगातार परेशान करने के कारण वह 'न्यायपालिका के लिए कैंसर' बन गया है. अदालत ने याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर एक लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया. निर्देश का पालन नहीं करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी.

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प्रोफेसर अब्दुल गनी भट (81) ने अपने बेटे का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए जम्मू-कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 488 के तहत अपनी बहू द्वारा शुरू की गई भरण-पोषण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके बेटे ने महिला (बहू) को तलाक दे दिया है, इसलिए भरण-पोषण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. साथ ही उन्होंने महिला पर कई गंभीर आरोप लगाए. इसके अतिरिक्त उन्होंने चौथे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौहर मजीद दलाल पर पक्षपात और कदाचार का आरोप लगाया.

हालांकि, मामले में न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने याचिकाकर्ता की भाषा को 'अपमानजनक' और 'किसी भी सभ्य समाज में अस्वीकार्य' बताते हुए इसकी निंदा की. न्यायमूर्ति कुमार ने टिप्पणी की कि 'लगाए गए आरोप केवल याचिकाकर्ता की महिलाओं, विशेषकर अपनी बहू के प्रति दूषित मानसिकता को दिखाते हैं.'

कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी : फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि याचिकाकर्ता 'आदतन वादी' है. उसे न्यायिक प्रणाली में कम विश्वास है. न्यायाधीशों को लगातार परेशान करने के कारण वह 'न्यायपालिका के लिए कैंसर' बन गया है. अदालत ने याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर एक लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया. निर्देश का पालन नहीं करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी.

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