ETV Bharat / bharat

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: प्रशासनिक देरी के कारण किसी व्यक्ति को परेशानी नहीं होनी चाहिए - JK High Court

JK HC Departmental Lapses Not Impact Promotion Eligibility: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने विभागीय लापरवाही के कारण नियुक्ति में देरी के एक मामले में पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि प्रशासनिक देरी के कारण किसी व्यक्ति को परेशानी नहीं होनी चाहिए.

Jammu and Kashmir High Court
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 8, 2024, 12:52 PM IST

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने सीधी भर्ती के दौरान विभागीय लापरवाही से जुड़े एक मामले में पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि विभागीय लापरवाही के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में हुई देरी का खामियाजा उम्मीदवार नहीं भुगत सकता है. पेश में मामले में नियुक्ति प्रक्रिया में विभागीय लापरवाही के कारण एक उम्मीदवार को देरी से नौकरी मिली जिसके कारण उसे पदोन्नति में भी पीछे रहना पड़ा.

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्षता यह तय करती है कि प्रशासनिक देरी के कारण किसी व्यक्ति को परेशानी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर विभागीय त्रुटियों के कारण नियुक्ति में देरी होती है, तो उम्मीदवार को समय पर नियुक्त किए गए साथियों की तुलना में नुकसान नहीं होना चाहिए.

यह मामला डॉ. अफाक अहमद खान से जुड़ा था, जिन्होंने 2015 में शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में सहायक प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था. यद्यपि उनका चयन तो हो गया था, लेकिन उनके अंकों की गलत गणना के कारण उनकी नियुक्ति 27 नवंबर 2019 तक के लिए टाल दी गई, जबकि उनके साथियों की नियुक्ति अक्टूबर 2018 में हो गई थी.

खान ने अपनी नियुक्ति और पदोन्नति की पात्रता को अपने साथियों के साथ संरेखित करने के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव की मांग की. एसकेआईएमएस ने शुरू में आश्वासन दिया लेकिन बाद में अपर्याप्त सेवा अवधि और अन्य कारणों से उन्हें पदोन्नति के लिए अयोग्य घोषित कर दिया.

खान ने अधिवक्ता सलीह पीरजादा के माध्यम से निर्णय का विरोध करते हुए तर्क दिया कि देरी उनकी गलती नहीं थी और इससे उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति की संभावनाओं पर असर नहीं पड़ना चाहिए. न्यायालय ने सी. जयचंद्रन बनाम केरल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए उनके मामले का समर्थन किया और खान की नियुक्ति को 3 अक्टूबर, 2018 से पूर्ववत करने का आदेश दिया, साथ ही उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति पात्रता को बहाल किया.

ये भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा, अतीत का संबंध घरेलू हिंसा के मामले को वैध बनाता है

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने सीधी भर्ती के दौरान विभागीय लापरवाही से जुड़े एक मामले में पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि विभागीय लापरवाही के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में हुई देरी का खामियाजा उम्मीदवार नहीं भुगत सकता है. पेश में मामले में नियुक्ति प्रक्रिया में विभागीय लापरवाही के कारण एक उम्मीदवार को देरी से नौकरी मिली जिसके कारण उसे पदोन्नति में भी पीछे रहना पड़ा.

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्षता यह तय करती है कि प्रशासनिक देरी के कारण किसी व्यक्ति को परेशानी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर विभागीय त्रुटियों के कारण नियुक्ति में देरी होती है, तो उम्मीदवार को समय पर नियुक्त किए गए साथियों की तुलना में नुकसान नहीं होना चाहिए.

यह मामला डॉ. अफाक अहमद खान से जुड़ा था, जिन्होंने 2015 में शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में सहायक प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था. यद्यपि उनका चयन तो हो गया था, लेकिन उनके अंकों की गलत गणना के कारण उनकी नियुक्ति 27 नवंबर 2019 तक के लिए टाल दी गई, जबकि उनके साथियों की नियुक्ति अक्टूबर 2018 में हो गई थी.

खान ने अपनी नियुक्ति और पदोन्नति की पात्रता को अपने साथियों के साथ संरेखित करने के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव की मांग की. एसकेआईएमएस ने शुरू में आश्वासन दिया लेकिन बाद में अपर्याप्त सेवा अवधि और अन्य कारणों से उन्हें पदोन्नति के लिए अयोग्य घोषित कर दिया.

खान ने अधिवक्ता सलीह पीरजादा के माध्यम से निर्णय का विरोध करते हुए तर्क दिया कि देरी उनकी गलती नहीं थी और इससे उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति की संभावनाओं पर असर नहीं पड़ना चाहिए. न्यायालय ने सी. जयचंद्रन बनाम केरल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए उनके मामले का समर्थन किया और खान की नियुक्ति को 3 अक्टूबर, 2018 से पूर्ववत करने का आदेश दिया, साथ ही उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति पात्रता को बहाल किया.

ये भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा, अतीत का संबंध घरेलू हिंसा के मामले को वैध बनाता है
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.