श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने शोपियां के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 26 वर्षीय निवासी जफर अहमद पर्रे पर लगाए गए निवारक हिरासत आदेश को अमान्य कर दिया है. अदालत ने लोकतंत्र और कानून के शासन के सिद्धांतों पर जोर देते हुए कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किए बिना उसे हिरासत में नहीं ले सकतीं.
न्यायमूर्ति राहुल भारती ने बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करते हुए जफर अहमद की रिहाई का आदेश दिया. इस दौरान कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आपराधिक आरोपों के बिना मनमाने ढंग से हिरासत में लेना नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है.
कड़ी चेतावनी दी : पीठ ने भारत की एक पुलिस राज्य के रूप में धारणा को कायम रखने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी और दोहराया कि इस तरह की कार्रवाइयां देश के लोकतांत्रिक लोकाचार के विपरीत हैं.
ये है मामला : वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) शोपियां द्वारा तैयार किए गए एक डोजियर,आरोपों के आधार पर जफर अहमद को जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 के तहत हिरासत में लिया गया था, जिसमें उनकी पहचान 'एलईटी/एचएम आतंकवादी संगठनों के कट्टर ओजीडब्ल्यू' के रूप में की गई थी. हिरासत आदेश में उसके आतंकवादी संगठनों के सबूत के रूप में पूछताछ के दौरान कथित खुलासों का हवाला दिया गया.
उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक रिट याचिका के माध्यम से उनकी हिरासत को चुनौती देते हुए जफर अहमल के वकील ने तर्क दिया कि आदेश में ठोस सबूतों का अभाव था. उन्होंने तर्क दिया कि हिरासत में आधारहीन आरोप लगाए गए थे.