जबलपुर। 21 मार्च को विश्व टैटू दिवस के रूप में मनाया जाता है. टैटू जिसे मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में गोदना कहा जाता है, यह हमारे समाज का सदियों पुराना हिस्सा रहा है. लोगों का दावा है कि टैटू की परंपरा मानव इतिहास में लगभग 3000 साल पुरानी है. इसलिए इसके अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने हैं. आदिवासियों के लिए यह एक धार्मिक विषय है. वहीं शहरी इलाके में यह एक फैशन है. जबकि कुछ लोगों के लिए टैटू उनका किसी के प्रति प्रेम का प्रतीक है.
वर्ल्ड टैटू डे की कब हुई शुरुआत
दुनिया भर के टैटू बनाने वाले कलाकारों ने 2015 में यह तय किया था कि 21 मार्च को विश्व टैटू दिवस के रूप में मनाएंगे. इतिहास में पहला टैटू सम्मेलन 1976 में आयोजित किया गया था. उसके बाद से ही दुनिया भर में टैटू की स्वीकार्यता बढ़ी थी.
आदिवासी और टैटू या गोदना कला
सामान्य लोगों के लिए टैटू फैशन का विषय हो सकता है लेकिन मध्य प्रदेश के गोड और बैगा आदिवासियों के लिए टैटू केवल फैशन का विषय नहीं है, बल्कि इनके लिए टैटू धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है. आदिवासियों का मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर पर बने हुए टैटू ही उनके साथ जाते हैं और वह इन्हें आभूषण मानते हैं. आदिवासियों का मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर पर बने इन्हीं गोदना आभूषणों को बेचा जाता है, इसलिए गोड और बैगा आदिवासी अपने शरीर पर गोदना करवाते हैं. हालांकि यह एक बहुत अधिक दर्द देने वाला काम है. एक मान्यता यह भी है कि ऐसा करने से स्वर्ग में भी जगह मिलती है, इसलिए भी गोदना करवाया जाता है.
शरीर पर होता है असहनीय दर्द
ग्रामीण इलाकों में एक जंगली पेड़ के फलों से काला रंग बनाया जाता है और इसी काले रंग को बेहद नुकीले कांटों में भिगो भिगोकर शरीर की सबसे ऊपरी सतह पर बारीक बारीक छेद करके भरा जाता है. धीरे-धीरे त्वचा उस रंग को सोख लेती है और यह रंग स्थाई रूप से शरीर का हिस्सा बन जाता है. आदिवासी पूरे शरीर पर यह गोदना करवाते हैं. जरा सोचिए कि यह कितना कष्टदायक होता होगा. हालांकि बदलते दौर में आदिवासियों ने अब पूरे शरीर पर गोदना करवाने की बजाय केवल शरीर के कुछ हिस्सों में ही गोदना करवाना शुरू किया है, यहां यह परंपरा खत्म होने की कगार पर है.
शहरों में बढ़ता चलन
जबलपुर के सदर बाजार में अंश एक टैटू शॉप चलते हैं. अंश पिछले 5 सालों से लोगों के शरीर पर टैटू बना रहे हैं. वह इस कला के बड़े माहिर खिलाड़ी बन गए हैं. उन्होंने इसके पहले 10 साल टैटू बनाना सीखा था अब जाकर उन्हें महारत हासिल हुई है. अंश बताते हैं कि ''इन दिनों सबसे ज्यादा टैटू महाकाल के बनवाई जा रहे हैं. लोगों में बढ़ती भगवान शंकर के प्रति आस्था की वजह से लोग उनकी अलग-अलग मुद्राओं के टैटू शरीर पर बनवा रहे हैं.'' अंश का कहना है कि ''उन्हें इस कला में अब महारत हासिल हो गई है और उन्होंने अब तक सबसे महंगा टैटू लगभग डेढ़ लाख रुपए की कीमत का बनाया था.''
टैटू हो सकता है जानलेवा
अंश का कहना है कि ''टैटू बनाना एक कठिन कला है, इसमें बहुत जोखिम भी हैं. कई बार लोग एक ही नीडल का उपयोग एक से ज्यादा लोगों के शरीर पर कर देते हैं. इससे संक्रामक रोग होने का खतरा होता है. वहीं, शरीर की त्वचा की अलग-अलग परतें होती हैं, इनमें यदि टैटू का रंग शरीर के ज्यादा भीतर तक चला जाए तो लोगों को कैंसर तक हो सकता है.''
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टैटू बनवाने की अलग-अलग वजह
सामान्य समाज लंबे समय तक टैटू को पहचान पत्र की तरह इस्तेमाल करता रहा, जिसमें लोग अपने शरीर पर कोई नाम या पहचान लिखवा लेते थे. जिससे उनकी एक अलग स्थाई पहचान होती थी अभी भी यह चलन बरकरार है लेकिन अब इसमें कलात्मक आ गई है और आज का टैटू किसी कलाकृति से कम नहीं है. टैटू बनवाने के अलग-अलग कारण हैं. आदिवासी इसके धार्मिक महत्व की वजह से टैटू बनवाते हैं. वहीं शहरी इलाकों में लोग फैशन की वजह से टैटू बनवाते हैं. आजकल लोगों में भगवान के प्रति बढ़ती हुई आस्था की वजह से लोग भगवानों की तस्वीर और नाम के टैटू बनवाते हैं. वहीं कई लोग अपना प्रेम प्रदर्शन करने के लिए भी शरीर पर प्रेमी और प्रेमिका के नाम का टैटू बनवा रहे हैं. इसके साथ ही कुछ लोग अपने माता-पिता या किसी मित्र की याद में टैटू बनवा रहे हैं.
अनुभवी से ही बनवाएं टैटू
कभी सामान्य गोदने से शुरू हुई टैटू की कला आज एक स्थापित कलाकारी हो गई है. इसमें 2D और 3D टैटू तक बनाए जा रहे हैं. जिन्हें दो अलग-अलग जगह से देखने पर अलग-अलग तरीके के नजर आते हैं. टैटू बनवाना गलत नहीं है लेकिन इसको बनवाते वक्त लोगों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसे हर किसी से भी ना बनवाया जाए, केवल बेहतर हाइजीनिक और अनुभवी लोगों से ही टैटू बनवाएं, वरना यह शौक जानलेवा भी हो सकता है.