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नेत्रहीन बांसुरीवादक नंदकिशोर घुले की प्रेरक कहानी, बनाई अपनी एक अलग पहचान - Artist in Maharashtra - ARTIST IN MAHARASHTRA

Artist in Maharashtra, महाराष्ट्र के अहमदनगर में एक नेत्रहीन कलाकार ने राज्य में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. इस कलाकार का नाम नंदकिशोर बालाजी घुले है. घुले बचपन से ही नेत्रहीन हैं और एक कुशल मृदंग, तबला, हारमोनियम, बांसुरी वादक हैं.

Blind flautist Nandkishore Ghulay
नेत्रहीन बांसुरीवादक नंदकिशोर घुले
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 26, 2024, 4:20 PM IST

नेत्रहीन बांसुरीवादक नंदकिशोर घुले

अहमदनगर: महाराष्ट्र में अहमदनगर के ग्रामीण इलाकों में कई कलाकार छुपे हुए हैं. महाराष्ट्र में उन कलाकारों को पहचान नहीं मिली है. ऐसे ही एक बुजुर्ग कलाकार अहमदनगर जिले के सावरगांव घुले नामक एक छोटे से गांव से हैं. आइए जानते हैं इस कलाकार की प्रेरक कहानी. राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे पुराने कलाकार हैं, जो राजाश्रय और लोकाश्रय से दूर हैं.

इनमें भजन और कीर्तन जैसी कला के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्धि हासिल करने वाले दिग्गज कलाकार शामिल हैं. युग का एक कलाकार सावरगांव घुले गांव में है. इस कलाकार का नाम नंदकिशोर बालाजी घुले है. वे जन्म से अंधे हैं. दृष्टिहीन होने के बावजूद वे आज के युग के भी उत्कृष्ट मृदंग, तबला, हारमोनियम, बांसुरी वादक और गायक बन गये हैं।

नंदकिशोर का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. जब वह छह महीने के थे, तो उनकी आंखों की रौशनी चली गई थी. घर की खराब हालत और भाग्य की अंधता के कारण उन्हें शिक्षा भी नहीं मिल सकी. कम उम्र में अंधेपन के कारण वह घर पर ही रहते थे, तो उनकी मां एक रेडियो लेकर आईं. इसके बाद उन्होंने रेडियो पर गाना सुनते हुए धीरे-धीरे बांसुरी बजाना शुरू कर दिया. वह आज एक बेहतरीन वादक बन गए.

नंदकिशोर घुले की पत्नी लता ने उनका बहुत सहयोग दिया. नंदकिशोर अपने परिवार के साथ सावरगांव घुले में रहते हैं. उनके बेटे प्रवीण ने भी अपने पिता को देखकर मृदंग बजाना सीखा है. नंदकिशोर धार्मिक आयोजनों के लिए पुणे और मुंबई जैसी जगहों पर जाते हैं. इसके जरिए उन्होंने आज एक अलग छाप छोड़ी है.

नेत्रहीन बांसुरीवादक नंदकिशोर घुले

अहमदनगर: महाराष्ट्र में अहमदनगर के ग्रामीण इलाकों में कई कलाकार छुपे हुए हैं. महाराष्ट्र में उन कलाकारों को पहचान नहीं मिली है. ऐसे ही एक बुजुर्ग कलाकार अहमदनगर जिले के सावरगांव घुले नामक एक छोटे से गांव से हैं. आइए जानते हैं इस कलाकार की प्रेरक कहानी. राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे पुराने कलाकार हैं, जो राजाश्रय और लोकाश्रय से दूर हैं.

इनमें भजन और कीर्तन जैसी कला के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्धि हासिल करने वाले दिग्गज कलाकार शामिल हैं. युग का एक कलाकार सावरगांव घुले गांव में है. इस कलाकार का नाम नंदकिशोर बालाजी घुले है. वे जन्म से अंधे हैं. दृष्टिहीन होने के बावजूद वे आज के युग के भी उत्कृष्ट मृदंग, तबला, हारमोनियम, बांसुरी वादक और गायक बन गये हैं।

नंदकिशोर का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. जब वह छह महीने के थे, तो उनकी आंखों की रौशनी चली गई थी. घर की खराब हालत और भाग्य की अंधता के कारण उन्हें शिक्षा भी नहीं मिल सकी. कम उम्र में अंधेपन के कारण वह घर पर ही रहते थे, तो उनकी मां एक रेडियो लेकर आईं. इसके बाद उन्होंने रेडियो पर गाना सुनते हुए धीरे-धीरे बांसुरी बजाना शुरू कर दिया. वह आज एक बेहतरीन वादक बन गए.

नंदकिशोर घुले की पत्नी लता ने उनका बहुत सहयोग दिया. नंदकिशोर अपने परिवार के साथ सावरगांव घुले में रहते हैं. उनके बेटे प्रवीण ने भी अपने पिता को देखकर मृदंग बजाना सीखा है. नंदकिशोर धार्मिक आयोजनों के लिए पुणे और मुंबई जैसी जगहों पर जाते हैं. इसके जरिए उन्होंने आज एक अलग छाप छोड़ी है.

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