इंदौर। देश भर में जलकुंभी की चुनौती से जूझ रहे जल स्रोतों को अब नष्ट होने से बचाया जा सकेगा. दरअसल केरल के वनस्पति एवं जंतु विज्ञान विशेषज्ञ डॉ नागेंद्र प्रभु ने जलकुंभी से आसान तरीके से कागज बनाने के साथ अन्य कई उत्पाद बनाकर जलकुंभी से मुक्ति की राह आसान कर दी है. यही वजह है कि अब उनके इंस्टिट्यूट में बड़े पैमाने पर कागज के साथ तरह-तरह के उपकरण अब जलकुंभी से तैयार किए जा रहे हैं. Solving Water Hyacinth Problem
आसानी से नष्ट होगा जलकुंभी
जलीय खरपतवार के रूप में भारतीय नदियों जल स्रोतों और पोखरों के लिए चुनौती बन चुका जलकुंभी का पौधा अब आसानी से नष्ट किया जा सकेगा. दरअसल जलकुंभी का अब तक कोई प्राकृतिक अथवा जलीय शत्रु नहीं होने के कारण इससे न केवल जल स्रोत बल्कि जल संरचना में रहने वाले जीव जंतु और पारिस्थितिक तंत्र को खतरा होता है. यह पौधा पानी पर इतनी तेजी से वृद्धि करता है कि पानी में ऑक्सीजन की कमी के साथ जल स्रोत का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाता है. धीरे-धीरे करके बाद में जल स्रोत नष्ट होने की कगार पर आ जाता है.
जलकुंभी से मुक्ति की युक्ति
जलकुंभी को लेकर सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि जल स्रोतों से इसे बार-बार हटाने के बाद भी यह फिर से पानी के तल उगने के बाद फिर तेजी से विकसित हो जाता है. इसी परेशानी के मद्देनजर केरल के वनस्पति एवं जंतु विज्ञान विशेषज्ञ डॉ नागेंद्र प्रभु ने जलकुंभी से मुक्ति के लिए जो युक्ति निकाली उसके तहत इस पौधे को छोटे से प्रयास की बदौलत कागज में तब्दील किए जाने लगा. इतना ही नहीं जो कागज तैयार हुआ वह उत्कृष्ट श्रेणी का और आकर्षक स्वरूप में तैयार किया जाने लगा. इसमें भी खास बात यह रही की जलकुंभी से ग्रामीण स्तर पर ही कागज बनाने की पहला रंग लाई.
जलकुंभी से कागज बनाने का प्रशिक्षण
इसके बाद डॉ नागेंद्र प्रभु ने सेंटर फॉर रिसर्च ऑफ एक्वेटिक रिसोर्स नमक अपने इंस्टिट्यूट के जरिए अन्य विद्यार्थियों और ग्रामीणों को जलकुंभी से कागज बनाने का प्रशिक्षण देना शुरू किया. फिलहाल इन 3 दशकों में स्थिति यह है कि डॉक्टर नागेंद्र प्रभु के इस अभियान को न केवल भारत सरकार बल्कि केरल सरकार के भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं. हाल ही में उन्हें यूएनडीपी के जलीय प्रदूषण रोकने की श्रेणी में पुरस्कृत किया गया है.
ऐसे बनता है जलकुंभी से कागज
डॉक्टर नागेंद्र प्रभु ने जलकुंभी से कागज बनाने के लिए आसान सा प्रयोग किया है. जिसमें उन्होंने जलकुंभी को तालाब से निकालकर उसे काटने के बाद मिक्सी में क्रश किया. उसके बाद जलकुंभी के टुकड़ों को उबाल लिया, बाद में उबली हुई जलकुंभी को कागज की लुगड़ी के साथ मिलाकर घोल तैयार कर लिया. इसके बाद कागज की लुगदी और जलकुंभी के घोल को एक छलनी में छानकर सुखाया. फिर जलकुंभी और कागज की लुगड़ी के गोल से जो कागज तैयार होता है उच्च कोटि का होता है. इसके अलावा जलकुंभी की लुगदी से तरह-तरह की कलात्मक चीज भी बनाई जा सकती हैं, जो डॉक्टर नागेंद्र प्रभु के इंस्टिट्यूट में तैयार हो रही हैं. इतना ही नहीं कलात्मक कलाकृतियों की बिक्री से इन्हें बनाने वाले कलाकारों को खासी आमदनी भी हो रही है.