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पीढ़िया बदली लेकिन पुजारी नहीं, बेटियां ही क्यों बनती हैं हरसिद्धि मंदिर की उत्तराधिकारी - Indore Mahila Pujari Wala Mandir

जब विरासत सौंपने की बारी आती है तो आमतौर पर घर के बेटों को प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इंदौर का हरसिद्धि मंदिर ऐसा मंदिर है जहां पुजारी के परिवार की बेटियां विरासत संभालती आ रही हैं और दामाद मंदिर की अन्य व्यवस्थाएं देखते हैं. खास बात यह है कि पिछली 10 पीढ़ियों से परिवार में बेटियों ने ही जन्म लिया है.

INDORE MAHILA PUJARI WALA MANDIR
इंदौर का हरसिद्धि मंदिर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 3, 2024, 8:45 PM IST

इंदौर: मंदिरों में पुजारी और पूजा का उत्तराधिकार आमतौर पर पुजारी के ही पुत्रों को मिलता है. लेकिन इंदौर का हरसिद्धि मंदिर पुरुष प्रधान व्यवस्था से बिल्कुल अलग है. यहां पिछली 10 पीढ़ी से मंदिर की उत्तराधिकारी पुजारी परिवार की बेटियां ही रही हैं. जो मंदिर की पूजा और व्यवस्था का काम अपने घर जमाई पतियों से कराती आई हैं. कमोवेश देश में यह पहला मंदिर है जहां बेटियों के प्रतिनिधि के तौर पर पूजा पाठ और मंदिर का कामकाज उनके घरजमाई पति ही करते आए हैं. मंदिर के पुजारी परिवार को लेकर आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि पिछली कई पीढियां से पुजारी परिवार की बेटियों के घर में बेटियां ही जन्म लेती हैं, जो मंदिर की तमाम व्यवस्थाओं की उत्तराधिकारी होती हैं.

अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था मंदिर
इंदौर में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर द्वारा तैयार कराया गया 258 साल पुराना प्राचीन हरसिद्धि माता मंदिर आज भी अहिल्याबाई होल्कर की तरह ही महिला समानता और सशक्तिकरण का प्रतीक है. दरअसल इस मंदिर में पिछली 10 पीढ़ी से यहां के पुजारी परिवार की बेटियां ही मंदिर की उत्तराधिकारी बनती हैं जो मंदिर की पूजा पाठ और अन्य व्यवस्थाओं का कामकाज अपने घरजमाई पति और दामादों के जरिए संचालित करती आई हैं.

बेटियां होती हैं हरसिद्धि मंदिर मंदिर की उत्तराधिकारी (ETV Bharat)

पुजारी को सपने में दिखी थी देवीजी की मूर्ति
वर्तमान में मंदिर की पुजारी नमिता शुक्ला के घरजमाई पति सुनील शुक्ला बताते हैं कि, ''मंदिर का निर्माण 1766 में हुआ था. इस स्थान को लेकर जनार्दन भट्ट नामक पुजारी को सपना आया था कि मंदिर के सामने बावड़ी में देवीजी की मूर्ति है. जब यह स्वप्न उन्होंने होलकर राजवंश परिवार के लोगों को बताया तो बावड़ी खाली कराई गई और यहां पर देवी की मूर्ति निकली. इसके बाद होल्कर राज परिवार ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया और मंदिर की वंशानुगत सनद पुजारी जनार्दन भट्ट को सौंप दी गई.''

10 पीढ़ियों से बेटियों ने ही लिया परिवार में जन्म
दरअसल मंदिर होलकर राज परिवार ने बनवाया था, इसलिए राज परिवार की प्रेरणा से ही मंदिर में आज भी अहिल्याबाई होल्कर की तरह मंदिर वंशानुगत सनद का उत्तराधिकार बेटियों को मिलता है. मान्यता यह भी है कि इस परिवार में पिछली 10 पीढ़ियों से बेटियों के घर में बेटियों ने ही जन्म लिया है. इसलिए उनके वंशानुगत उत्तराधिकार बेटियों को ही मिलते रहे हैं.

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बालिकाओं को दी जाती है वैदिक पूजा पाठ की शिक्षा
बेटियों के विवाह के पहले उन्हें बाकायदा पंडिताई और पुरोहित की तमाम शिक्षा दीक्षा प्रदान की जाती है और पूजन पाठ के शास्त्र सम्मत ज्ञान और विधि में पारंगत बनाया जाता है. विवाह के उपरांत जब मंदिर के उत्तराधिकार सौंपने की बारी आती है तो बेटियों की ओर से पूजन पाठ के अलावा मंदिर का कामकाज बेटियों के प्रतिनिधि के तौर पर घर जमाई पति संभालते हैं. वर्तमान में मंदिर की पुजारी नमिता शुक्ला की ओर से पूजा पाठ संभालने वाले घरजमाई पुजारी सुनील शुक्ला ने बताया, ''जिस प्रकार अहिल्याबाई होलकर बालिका शिक्षा को जोर देती थीं, उन्हीं की प्रेरणा से मंदिर में बालिकाओं को वैदिक पूजा पाठ और अन्य व्यवस्थाओं की शिक्षा दी जाती है. मंदिर में ही पुजारी का उत्तराधिकार विधि विधान से प्रदान किया जाता है.''

इंदौर: मंदिरों में पुजारी और पूजा का उत्तराधिकार आमतौर पर पुजारी के ही पुत्रों को मिलता है. लेकिन इंदौर का हरसिद्धि मंदिर पुरुष प्रधान व्यवस्था से बिल्कुल अलग है. यहां पिछली 10 पीढ़ी से मंदिर की उत्तराधिकारी पुजारी परिवार की बेटियां ही रही हैं. जो मंदिर की पूजा और व्यवस्था का काम अपने घर जमाई पतियों से कराती आई हैं. कमोवेश देश में यह पहला मंदिर है जहां बेटियों के प्रतिनिधि के तौर पर पूजा पाठ और मंदिर का कामकाज उनके घरजमाई पति ही करते आए हैं. मंदिर के पुजारी परिवार को लेकर आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि पिछली कई पीढियां से पुजारी परिवार की बेटियों के घर में बेटियां ही जन्म लेती हैं, जो मंदिर की तमाम व्यवस्थाओं की उत्तराधिकारी होती हैं.

अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था मंदिर
इंदौर में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर द्वारा तैयार कराया गया 258 साल पुराना प्राचीन हरसिद्धि माता मंदिर आज भी अहिल्याबाई होल्कर की तरह ही महिला समानता और सशक्तिकरण का प्रतीक है. दरअसल इस मंदिर में पिछली 10 पीढ़ी से यहां के पुजारी परिवार की बेटियां ही मंदिर की उत्तराधिकारी बनती हैं जो मंदिर की पूजा पाठ और अन्य व्यवस्थाओं का कामकाज अपने घरजमाई पति और दामादों के जरिए संचालित करती आई हैं.

बेटियां होती हैं हरसिद्धि मंदिर मंदिर की उत्तराधिकारी (ETV Bharat)

पुजारी को सपने में दिखी थी देवीजी की मूर्ति
वर्तमान में मंदिर की पुजारी नमिता शुक्ला के घरजमाई पति सुनील शुक्ला बताते हैं कि, ''मंदिर का निर्माण 1766 में हुआ था. इस स्थान को लेकर जनार्दन भट्ट नामक पुजारी को सपना आया था कि मंदिर के सामने बावड़ी में देवीजी की मूर्ति है. जब यह स्वप्न उन्होंने होलकर राजवंश परिवार के लोगों को बताया तो बावड़ी खाली कराई गई और यहां पर देवी की मूर्ति निकली. इसके बाद होल्कर राज परिवार ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया और मंदिर की वंशानुगत सनद पुजारी जनार्दन भट्ट को सौंप दी गई.''

10 पीढ़ियों से बेटियों ने ही लिया परिवार में जन्म
दरअसल मंदिर होलकर राज परिवार ने बनवाया था, इसलिए राज परिवार की प्रेरणा से ही मंदिर में आज भी अहिल्याबाई होल्कर की तरह मंदिर वंशानुगत सनद का उत्तराधिकार बेटियों को मिलता है. मान्यता यह भी है कि इस परिवार में पिछली 10 पीढ़ियों से बेटियों के घर में बेटियों ने ही जन्म लिया है. इसलिए उनके वंशानुगत उत्तराधिकार बेटियों को ही मिलते रहे हैं.

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