नई दिल्ली : भारत ने संयुक्त ऱाष्ट्र के लिए निर्धारित बजट में कटौती कर दी है. पिछले साल भारत ने यूएन को 382 करोड़ रु. की मदद की थी, जबकि इस साल यह बजट घटकर 175 करोड़ रु. हो गया है. भारत ने एक फरवरी को इसकी घोषणा की थी. अब ऐसे में हर कोई ये सवाल पूछ रहा है कि भारत ने ऐसा क्यों किया.
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में सुधारों का पक्षधर रहा है. वह लंबे समय से इसकी मांग भी कर रहा है. भारत ने कई मौकों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या में बदलाव करने का मुद्दा उठाया है. भारत खुद इसका प्रमुख दावेदार है. लेकिन यूएन की ओर से अभी तक कोई पहल नहीं की गई है. चीन उसके रास्ते में रोड़ा बन रहा है. यह भी अपने आप में विचित्र बात है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत अब तक यूएनएससी का स्थायी सदस्य नहीं बना है.
पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रायसीना डायलॉग के मंच से बात करते हुए कहा था कि भारत की राह में पश्चिमी देश बाधक नहीं हैं, बल्कि कोई और है. उनका इशारा चीन की ओर था, हालांकि, उन्होंने नाम नहीं लिया.
आपको बता दें कि यूएनएससी में पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, रुस, फ्रांस और चीन स्थायी सदस्य हैं. यूएन का सबसे अहम अंग यूएनएससी है. यह पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है. अस्थायी सदस्यों का नाम रोटेशन के आधार पर तय होता है. अंतिम बार भारत 2021-22 में भारत इसका सदस्य था.
इस समय भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान के बाद भारत का स्थान आता है. दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत की आर्थिक वृद्धि दर भी अधिक है. भारत की तरह ही ब्राजील, जापान और जर्मनी भी यूएनएससी के स्थायी सदस्य बनना चाहते हैं. इन चारों देशों ने जी-4 नाम से एक ग्रुप बनाकर यूएन में सुधार की बात उठाई है. इनका कहना है कि बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यूएन में व्यापक सुधार समय की मांग है. आप 70 साल पहले बनाए गए फॉर्मूले पर आज की स्थिति को हैंडल नहीं कर सकते हैं.
खुद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि जिस समय यूएन की स्थापना हुई थी, उस समय करीब 50 देश इसके सदस्य थे. लेकिन तब से लेकर अब तक सदस्यों की संख्या में चार गुना इजाफा हो चुका है. वैश्विक चुनौतियां बढ़ गई हैं. सीमाएं प्रभावित हुई हैं. नए-नए विषय सामने आ गए हैं.
विदेश मंत्री ने कहा कि इन नई परिस्थितियों और यूएन की घटती भूमिका कुछ अलग ही संदेश दे रहा है. उन्होंने कहा कि यूएन न तो इजराइल-हमास युद्ध को रोक सका, और न ही रूस और यूक्रेन का युद्ध. इसी तरह से यूएन जलवायु संकट पर भी विभिन्न देशों के बीच कोई आम सहमति नहीं बना सका.
यही वजह है कि भारत ने प्रतीकात्मक संदेश देने की कोशिश की है. यूएन का टोटल बजट 3.4 बिलियन डॉलर है. भारत ने मात्र दो करोड़ डॉलर की कटौती की है. लिहाजा, यूएन की स्थिति पर कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा. लेकिन एक संदेश जो भारत देना चाहता है, उसकी गूंज जरूर सुनाई देगी.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बिना किसी दूसरे देशों का नाम लिए कहा कि कुछ देश अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि ऐसा लंबे समय तक नहीं हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में कई ऐसी समस्याएं हैं जिसके लिए आप पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, लेकिन यूएनएससी में सुधार के लिए चीन सबसे बड़ा अवरोध बना हुआ है और वह इसलिए सशंकित है कि कहीं दुनिया में उसका प्रभुत्व घट न जाए.
सोशल मीडिया पर यह बहस छिड़ चुकी है कि भारत को न सिर्फ बजट कटौती करनी चाहिए, बल्कि उसे यूएन शांति सुरक्षा मिशन में भी अपना सहयोग नहीं करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 78वें सत्र के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने जनवरी 2024 में अपनी भारत यात्रा के दौरान, यूएनएससी के स्थायी सदस्य होने के लिए भारत की पात्रता को स्वीकार किया.
पिछले 70 सालों में भारत के दो लाख सैनिकों और पुलिस बलों ने अपना योगदान दिया है. इस समय भी भारत के 6073 सैनिक यूएन के अलग-अलग मिशन का हिस्सा बने हुए हैं. भारत से आगे नेपाल और बांग्लादेश हैं. चीन का आठवां स्थान है. फ्रांस का 28वां स्थान है.
संयुक्त राष्ट्र के तहत कुल 66,839 शांति सैनिकों में से भारत का योगदान लगभग 10 प्रतिशत है, फिर भी यह अन्य सभी पी-5 देशों के योगदान से अधिक है. यूएन के 71 पीसकीपिंग मिशन्स में से भारत ने 49 में अपनी सेवा दी है.
ये भी पढ़ें : रायसीना डायलॉग में बोले जयशंकर, 'पिछले पांच सालों हम बड़े मुद्दों पर बहुपक्षीय समाधान नहीं ढूंढ पाए