ETV Bharat / bharat

पाकिस्तानी चुनाव परिणाम में सामने आई 'सिस्टम' को मात देने की कहानी - पाकिस्तान चुनाव परिणाम

हाल के पाकिस्तान चुनावों और अब तक सामने आए नतीजों ने देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए कुछ बड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी है. इस बीच इमरान खान के करियर को खत्म करने की हरसंभव कोशिश की गई. बड़े पैमाने पर धांधली के आरोपों और जनता की राय का गला घोंटने के साथ देश सरकार बनाने की ओर अग्रसर है. वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर ने पाकिस्तानी सेना की भूमिका, नवाज शरीफ की सत्ता पर प्रहार और भारत के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है, इसका विश्लेषण किया है.

In Pakistan Elections Result, a Story of Defiance Nearly Beating the 'System'
पाकिस्तानी चुनाव परिणाम में 'सिस्टम' को मात देने का साहसी प्रतिरोध सामने आया
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 12, 2024, 1:48 PM IST

हैदराबाद: पाकिस्तान के आम चुनावों में धांधली होने की आशंका थी. हालाँकि, नतीजों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. खासकर उन लोगों को जिन्होंने सोचा कि वे अपने लाभ के लिए लोकतंत्र में हेरफेर कर सकते हैं. एक साहसी पलटवार में मतदाताओं ने पहले इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक इन्साफ (पीटीआई) समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों को देखा और फिर उनका समर्थन किया. वहीं, दूसरी ओर सेना के नेतृत्व वाले प्रतिष्ठान द्वारा पीटीआई को चुनाव में भाग लेने से रोकने, उसके नेता को जेल में डालने, पार्टी को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने, चुनाव चिन्ह छीनने और कई मामलों में इमरान खान को 20 साल के लिए जेल में डालने के घृणित प्रयास किया गया.

पाकिस्तान के दैनिक द डॉन ने शनिवार के संपादकीय में सेना की आलोचना की और कहा कि शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठानों को यह महसूस करना चाहिए कि नागरिक मामलों में हस्तक्षेप अब मतदाताओं को स्वीकार्य नहीं है.' हो सकता है कि सेना इन नतीजों से स्तब्ध हो गई हो, लेकिन पीटीआई के नेतृत्व वाले निर्दलीय उम्मीदवारों को सत्ता में आने से रोकने के लिए वह हरसंभव प्रयास करेगी.

इस लेख को लिखने के दौरान पीटीआई समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने 92 सीटें जीती थीं. ये पाकिस्तान मुस्लिम लीग की 71 से काफी आगे थी. नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) और पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने बहुमत का दावा किया है और सबसे बड़े समूह के रूप में सरकार बनाने का दावा किया है. जिन निर्दलियों ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, उनके लिए बड़ी धनराशि की पेशकश के साथ खरीद-फरोख्त की भी खबरें हैं. चूँकि वे स्वतंत्र टिकटों पर लड़े थे, इसलिए उन्हें दो पार्टियों - पीएमएल (एन) और पीपीपी में से एक द्वारा आसानी से चुना जा सकता है.

इस बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान में मतदान के दौरान कथित धांधली को गंभीरता से नहीं लिया है. हालाँकि, पीटीआई ने पश्चिम पर इमरान खान को सत्ता से बाहर करने का समर्थन करने का आरोप लगाया था, लेकिन तथ्य यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने 8 फरवरी के मतदान में अनियमितताओं की जांच का आग्रह किया है. ये इस बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान में चुनाव कितने भयानक तरीके से कराए गए थे.

कई मीडिया हाउस पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) द्वारा परिणाम घोषित करने में इतना समय लेने की आलोचना कर रहे थे. इंटरनेट और मोबाइल फोन पर प्रतिबंध की उचित आलोचना भी हुई. इसका इस्तेमाल ईसीपी द्वारा देरी को तर्कसंगत बनाने के लिए किया गया. पीटीआई के समर्थक कुछ और ही दावा करते हैं. उनका दावा है कि मतगणना और नतीजों की घोषणा में देरी का इस्तेमाल नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) और पीपीपी को आगे बढ़ाने और उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए किया गया.

यदि सेना का हस्तक्षेप न होता तो उनके कई उम्मीदवार हार जाते. कुछ परिणाम तर्क की अवहेलना करते हैं. कम से कम एक सीट पर मतों की संख्या वोटिंग से ज्यादा होती. इसी तरह के ब्लूपर्स (bloopers) सोशल मीडिया पर बहुतायत में प्रदर्शित किए गए. हालाँकि, नतीजों ने साबित कर दिया है कि शक्तिशाली समूहों द्वारा कोई भी हेरफेर मतदाताओं को अपना रोष व्यक्त करने से नहीं रोक सकता है. जो बात बाध्यकारी थी वह यह थी कि मतदाताओं को सत्ता के डर से प्रभावित नहीं किया जा सकता था.

इमरान खान भले ही एक खराब प्रशासक रहे हों, लेकिन उन्हें एक नेक इरादे वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता था, जिसका दिल पाकिस्तान के लिए धड़कता था. नवाज शरीफ या जरदारी को यह प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है. इस बात की पूरी संभावना है कि नवाज शरीफ और बिलावल-जरदारी खेमे के बीच गठबंधन सरकार बनेगी. निश्चित रूप से वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व वाली सेना को मीडिया द्वारा शिष्टतापूर्वक शक्तिशाली घटक के रूप में वर्णित किया गया. कहा गया कि यह उनका समर्थन करेगी. यह अच्छी तरह से जानते हुए कि इन चुनावों में मतदान करने वालों का बड़ा बहुमत उनके खिलाफ था.

पाकिस्तानी सेना कई मायनों में देश से बड़ी है और हर राजनेता को इस बात का अहसास है. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पाकिस्तानी सेना एक नीतिगत मिश्रण खोजने के लिए संघर्ष कर रही है जो विदेशी निवेशकों और वंचितों को खुश रखे, लेकिन यह काम नहीं कर रहा है. चुनाव से पहले सेना की इच्छा थी कि नागरिक सरकार अर्थव्यवस्था को इस तरह से मैनेज करे कि उन्हें आईएमएफ ऋण मिल सके ताकि अर्थव्यवस्था उस रसातल से बाहर निकल सके जिसमें उसे धकेल दिया गया था.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जिस दयनीय स्थिति में है उसके कारण वहां के लोग समस्या के समाधान के लिए कोई जादुई उपाय ढूंढ रहे हैं. भारत के साथ संबंधों की बहाली इस गड़बड़ी को सुलझाने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन दिल्ली में भाजपा सरकार ने इस्लामाबाद में संकटग्रस्त सरकार को जीवनदान देने में कोई वास्तविक दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

इसके विपरीत इसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) लाकर इसे और अधिक परेशान करने के लिए पर्याप्त काम किया है. हालाँकि इन नीतिगत कदमों से पाकिस्तान को चिंता नहीं होनी चाहिए, लेकिन वे इस धारणा को मजबूत करते हैं कि भारत यह सुनिश्चित करने के लिए समायोजन की नीति नहीं अपनाना चाहता है कि इस्लामाबाद किसी भी सीमा पार दुस्साहस का समर्थन नहीं करता है.

भारत ने सिर्फ बार कुछ गर्मजोशी तब दिखाई थी जब 2014 में तत्कालीन पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के लिए भारत आए थे. इसके एक साल बाद पीएम मोदी ने अचानक लाहौर पहुंचकर सबको चौंका दिया. उस समय संबंधों में दरार सामने दिखाई दे रही थी, लेकिन घरेलू राजनीति की मजबूरियों ने पीएम मोदी को कोई भी बड़ा कदम उठाने से रोक दिया.

बड़ा सवाल यह है कि अगर नवाज शरीफ दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं, तो क्या पीएम नरेंद्र मोदी भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों को यह बताने के लिए उनसे संपर्क करेंगे कि वे अपने हितों की देखभाल के लिए उन पर भरोसा कर सकते हैं और क्षेत्र में शांति के एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं. अतीत में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ पुल बनाने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहे थे.

तब से भारतीय प्रधानमंत्री उत्तरी पड़ोसी के साथ बातचीत शुरू करने में सावधानी बरत रहे हैं. नवाज शरीफ की वापसी और पीएम नरेंद्र मोदी के रूप में एक आत्मविश्वासी भारतीय पीएम की मौजूदगी से दोनों देशों के बीच संबंध फिर से शुरू हो सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो इससे नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को बड़ा आर्थिक लाभ होगा और भारत में भाजपा को संसदीय चुनाव में चुनावी फायदा होगा. यदि सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल हो जाती है तो यह दोनों पक्षों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है. इसके अलावा, यह हमारी सीमा के एक तरफ को स्थिर करने में भी मदद करेगा क्योंकि यह दूसरी तरफ चीन पर कड़ी नजर रखता है.

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान: नवाज और भुट्टो के बीच गठबंधन की सरकार बनाने की कवायद तेज

हैदराबाद: पाकिस्तान के आम चुनावों में धांधली होने की आशंका थी. हालाँकि, नतीजों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. खासकर उन लोगों को जिन्होंने सोचा कि वे अपने लाभ के लिए लोकतंत्र में हेरफेर कर सकते हैं. एक साहसी पलटवार में मतदाताओं ने पहले इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक इन्साफ (पीटीआई) समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों को देखा और फिर उनका समर्थन किया. वहीं, दूसरी ओर सेना के नेतृत्व वाले प्रतिष्ठान द्वारा पीटीआई को चुनाव में भाग लेने से रोकने, उसके नेता को जेल में डालने, पार्टी को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने, चुनाव चिन्ह छीनने और कई मामलों में इमरान खान को 20 साल के लिए जेल में डालने के घृणित प्रयास किया गया.

पाकिस्तान के दैनिक द डॉन ने शनिवार के संपादकीय में सेना की आलोचना की और कहा कि शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठानों को यह महसूस करना चाहिए कि नागरिक मामलों में हस्तक्षेप अब मतदाताओं को स्वीकार्य नहीं है.' हो सकता है कि सेना इन नतीजों से स्तब्ध हो गई हो, लेकिन पीटीआई के नेतृत्व वाले निर्दलीय उम्मीदवारों को सत्ता में आने से रोकने के लिए वह हरसंभव प्रयास करेगी.

इस लेख को लिखने के दौरान पीटीआई समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने 92 सीटें जीती थीं. ये पाकिस्तान मुस्लिम लीग की 71 से काफी आगे थी. नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) और पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने बहुमत का दावा किया है और सबसे बड़े समूह के रूप में सरकार बनाने का दावा किया है. जिन निर्दलियों ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, उनके लिए बड़ी धनराशि की पेशकश के साथ खरीद-फरोख्त की भी खबरें हैं. चूँकि वे स्वतंत्र टिकटों पर लड़े थे, इसलिए उन्हें दो पार्टियों - पीएमएल (एन) और पीपीपी में से एक द्वारा आसानी से चुना जा सकता है.

इस बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान में मतदान के दौरान कथित धांधली को गंभीरता से नहीं लिया है. हालाँकि, पीटीआई ने पश्चिम पर इमरान खान को सत्ता से बाहर करने का समर्थन करने का आरोप लगाया था, लेकिन तथ्य यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने 8 फरवरी के मतदान में अनियमितताओं की जांच का आग्रह किया है. ये इस बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान में चुनाव कितने भयानक तरीके से कराए गए थे.

कई मीडिया हाउस पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) द्वारा परिणाम घोषित करने में इतना समय लेने की आलोचना कर रहे थे. इंटरनेट और मोबाइल फोन पर प्रतिबंध की उचित आलोचना भी हुई. इसका इस्तेमाल ईसीपी द्वारा देरी को तर्कसंगत बनाने के लिए किया गया. पीटीआई के समर्थक कुछ और ही दावा करते हैं. उनका दावा है कि मतगणना और नतीजों की घोषणा में देरी का इस्तेमाल नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) और पीपीपी को आगे बढ़ाने और उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए किया गया.

यदि सेना का हस्तक्षेप न होता तो उनके कई उम्मीदवार हार जाते. कुछ परिणाम तर्क की अवहेलना करते हैं. कम से कम एक सीट पर मतों की संख्या वोटिंग से ज्यादा होती. इसी तरह के ब्लूपर्स (bloopers) सोशल मीडिया पर बहुतायत में प्रदर्शित किए गए. हालाँकि, नतीजों ने साबित कर दिया है कि शक्तिशाली समूहों द्वारा कोई भी हेरफेर मतदाताओं को अपना रोष व्यक्त करने से नहीं रोक सकता है. जो बात बाध्यकारी थी वह यह थी कि मतदाताओं को सत्ता के डर से प्रभावित नहीं किया जा सकता था.

इमरान खान भले ही एक खराब प्रशासक रहे हों, लेकिन उन्हें एक नेक इरादे वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता था, जिसका दिल पाकिस्तान के लिए धड़कता था. नवाज शरीफ या जरदारी को यह प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है. इस बात की पूरी संभावना है कि नवाज शरीफ और बिलावल-जरदारी खेमे के बीच गठबंधन सरकार बनेगी. निश्चित रूप से वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व वाली सेना को मीडिया द्वारा शिष्टतापूर्वक शक्तिशाली घटक के रूप में वर्णित किया गया. कहा गया कि यह उनका समर्थन करेगी. यह अच्छी तरह से जानते हुए कि इन चुनावों में मतदान करने वालों का बड़ा बहुमत उनके खिलाफ था.

पाकिस्तानी सेना कई मायनों में देश से बड़ी है और हर राजनेता को इस बात का अहसास है. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पाकिस्तानी सेना एक नीतिगत मिश्रण खोजने के लिए संघर्ष कर रही है जो विदेशी निवेशकों और वंचितों को खुश रखे, लेकिन यह काम नहीं कर रहा है. चुनाव से पहले सेना की इच्छा थी कि नागरिक सरकार अर्थव्यवस्था को इस तरह से मैनेज करे कि उन्हें आईएमएफ ऋण मिल सके ताकि अर्थव्यवस्था उस रसातल से बाहर निकल सके जिसमें उसे धकेल दिया गया था.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जिस दयनीय स्थिति में है उसके कारण वहां के लोग समस्या के समाधान के लिए कोई जादुई उपाय ढूंढ रहे हैं. भारत के साथ संबंधों की बहाली इस गड़बड़ी को सुलझाने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन दिल्ली में भाजपा सरकार ने इस्लामाबाद में संकटग्रस्त सरकार को जीवनदान देने में कोई वास्तविक दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

इसके विपरीत इसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) लाकर इसे और अधिक परेशान करने के लिए पर्याप्त काम किया है. हालाँकि इन नीतिगत कदमों से पाकिस्तान को चिंता नहीं होनी चाहिए, लेकिन वे इस धारणा को मजबूत करते हैं कि भारत यह सुनिश्चित करने के लिए समायोजन की नीति नहीं अपनाना चाहता है कि इस्लामाबाद किसी भी सीमा पार दुस्साहस का समर्थन नहीं करता है.

भारत ने सिर्फ बार कुछ गर्मजोशी तब दिखाई थी जब 2014 में तत्कालीन पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के लिए भारत आए थे. इसके एक साल बाद पीएम मोदी ने अचानक लाहौर पहुंचकर सबको चौंका दिया. उस समय संबंधों में दरार सामने दिखाई दे रही थी, लेकिन घरेलू राजनीति की मजबूरियों ने पीएम मोदी को कोई भी बड़ा कदम उठाने से रोक दिया.

बड़ा सवाल यह है कि अगर नवाज शरीफ दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं, तो क्या पीएम नरेंद्र मोदी भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों को यह बताने के लिए उनसे संपर्क करेंगे कि वे अपने हितों की देखभाल के लिए उन पर भरोसा कर सकते हैं और क्षेत्र में शांति के एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं. अतीत में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ पुल बनाने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहे थे.

तब से भारतीय प्रधानमंत्री उत्तरी पड़ोसी के साथ बातचीत शुरू करने में सावधानी बरत रहे हैं. नवाज शरीफ की वापसी और पीएम नरेंद्र मोदी के रूप में एक आत्मविश्वासी भारतीय पीएम की मौजूदगी से दोनों देशों के बीच संबंध फिर से शुरू हो सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो इससे नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को बड़ा आर्थिक लाभ होगा और भारत में भाजपा को संसदीय चुनाव में चुनावी फायदा होगा. यदि सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल हो जाती है तो यह दोनों पक्षों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है. इसके अलावा, यह हमारी सीमा के एक तरफ को स्थिर करने में भी मदद करेगा क्योंकि यह दूसरी तरफ चीन पर कड़ी नजर रखता है.

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान: नवाज और भुट्टो के बीच गठबंधन की सरकार बनाने की कवायद तेज
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.