रंगिया (कामरूप): असम के रंगिया कस्बे में दुर्गा पूजा सांप्रदायिक सद्भाव का उत्सव है. दुर्गा पूजा हिंदुओं का त्योहार है और शायद बिहू के बाद सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला त्योहार है. कस्बे के मुसलमान भी सदियों से दुर्गा पूजा के पीछे अपनी भूमिका निभाते आ रहे हैं. रंगिया में मूर्तियों को बनाने वाली सबसे पुरानी कार्यशालाओं में से एक अजंता शिल्पालय रंगिया और आस-पास के इलाकों में मूर्तियों की जरूरतों को पूरा करती रही है.
कार्यशाला के मालिक ने शहर के मुसलमानों की तारीफ की है जो सदियों से उनकी कार्यशाला के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करते रहे हैं. अजंता शिल्पालय के मौजूदा मालिक नंदापाल ने कहा कि मैं इस कार्यशाला को चलाने वाली तीसरी पीढ़ी हूं. हमारी कार्यशाला 1950 के दशक से चल रही है. यहां कोई हिंदू या मुसलमान नहीं है. हिंदू और मुसलमान पीढ़ियों से हमें समान रूप से सामग्री की आपूर्ति कर रहे हैं.
अपने एक आपूर्तिकर्ता अब्दुल रहमान का जिक्र करते हुए पाल कहते हैं कि अब्दुल लंबे समय से हमें मिट्टी और चावल की भूसी की आपूर्ति कर रहे हैं. मैं और अब्दुल दोनों अब बूढ़े हो चुके हैं, वह हमारे स्थायी आपूर्तिकर्ताओं में से एक है.
इसी तरह, पाल ने कहा कि खबीर अहमद उन्हें लकड़ी, चावल की भूसी और घास का ढेर प्रदान करते हैं, जो मूर्तियों को बनाने के लिए आवश्यक हैं. मूर्ति निर्माताओं को दुर्गा और अन्य मूर्तियों को बनाने के लिए विशेष मिट्टी की आवश्यकता होती है. पाल ने कहा कि हमें मूर्तियां बनाने के लिए बहुत सारे बांस की भी जरूरत होती है.
हिंदू और मुसलमान दोनों ही हमें इस मौसम में जरूरी बांस मुहैया कराते हैं. असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित रंगिया एक चहल-पहल वाला शहर है, जहां कम से कम 15 छोटे और बड़े पूजा पंडाल हैं. पाल का अजंता शिल्पालय मूर्तियों के लिए एक मशहूर कार्यशाला है और इस बार उन्होंने और उनकी टीम ने 15 दुर्गा मूर्तियां बनाई हैं - जबकि उनमें से आठ को बाहरी इलाकों में स्थित पूजा पंडालों में ले जाया जाएगा, उनकी सात मूर्तियां केवल रंगिया शहर में स्थित पंडालों में ले जाई जाएंगी.