पटना: फागुन का महीना है और फागुन के महीने में आपके कान में झाल की थाप, हारमोनियम की साज और ढोलक के ताल पर यदि कोई लोक गीत सुनाई देता है तो उसे फगुआ कहते हैं. जी हां, बिहार और उत्तर प्रदेश में फगुआ गीत गाने की एक परंपरा है और यह फागुन की महीने में गाया जाता है.
यूपी बिहार में जमकर होता है फगुआ : इस फगुआ का जिक्र कई बॉलीवुड फिल्मों में भी आया है. आपको याद होगा जब नदिया के पार फिल्म में होली खेली जाती है तो फगुआ गाया जाता है, जिसमें जोगी जी गाना है. यह फगुआ के ताल और लय पर गाया गया था. यह गाना काफी हिट हुआ था. हर किसी का ताल्लुक गांव-देहात से रहता ही है और यूपी बिहार फगुआ गीत खूब गाए जाते हैं.
क्या है फगुआ गीत?: होली के मौके पर गाए जाने वाले गीत को ही फगुआ कहते हैं. भारतीय कैलेंडर और महीने के अनुसार होली का त्यौहार फागुन माह में मनाया डाता है. इसलिए फागुन में गाए जाने वाले गीतों को फगुआ गीत कहते हैं.
फाग या फगुआ के बिना होली अधूरी: सिर्फ होली के दिन ही यह फगुआ नहीं गाया जाता है. होली के ठीक एक महीना पहले से भगवा गाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. सरस्वती पूजा यानी बसंत पंचमी से गांव कस्बो में फगुआ गीत के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाने लगता है. इस आयोजन में कई गांवों में कंपटीशन भी होता है, जिसका सबसे बढ़िया फगुआ होता है उसे इनाम भी दिया जाता है. इस दौरान गांव के उन लोगों को चुना जाता है जो फगुआ गाते हैं, झाल, हारमोनियम और ढोलक बजाते हैं. उसके बाद फगुआ जो जमता है वह हर किसी को थिरकने पर मजबूर कर देता है.
टोली बनाकर गाया जाता है फगुआ गीत: अब जरा फगुआ गीत के बारे में आप जान लीजिए. फगुआ फागुन के महीने से बना हुआ है. बसंत पंचमी से लेकर होली तक गाये जाने के कारण इसे फगुआ नाम दिया गया है. होली के दिन गांव के ही कुछ युवा टोली बनाकर घर-घर घूम कर लोगों को होली की बधाई देते हैं.
घर-घर में होता है टोली का स्वागत: जिनके द्वार पर टोली जाते हैं वह उन्हें पकवान और ड्राई फ्रूट्स खिलाते हैं. टोली के लोग बाबा हरिहरनाथ सोनपुर में होली खेले...आज बृज में होली हो रसिया...अखियां लाले लाल, अखियां लाले लाल...जैसे फगुआ गीत गाते हैं.
पतझड़ के बाद होता है प्रकृति का श्रृंगार : छपरा के परसा के रहने वाली राम अयोध्या राय बताते हैं कि फागुन में इसलिए फगुआ गाया जाता है क्योंकि फागुन से पहले पतझड़ होता है और उस पतझड़ के बाद प्रकृति में नई खूबसूरती के साथ नए पत्ते आते हैं और वह काफी खूबसूरत होते हैं. इसे प्रकृति का श्रृंगार भी कहा जाता है. प्रकृति अपने आप को पूरी तरह से रंग लेती है और इस फगुआ गीत के माध्यम से उस प्रकृति को बताया जाता है.
प्रेम का महीना 'फागुन': यह महीना प्रेम का भी होता है इसलिए कई ऐसे मजाक के रिश्ते होते हैं जिसमें रंग लगाकर लोग अपने प्रेम का इजहार भी करते हैं. राम अयोध्या बताते हैं कि यह सदियों से चली आ रही परंपरा है. भगवान श्री कृष्णा और मां राधा की लीलाओं को भी फगुआ में समेटा जाता है.
फगुआ शब्द संस्कृत के शब्द फाल्गुन का अपभ्रंश: लोक साहित्य पर कई वर्षों तक काम करने वाले और लोक साहित्य की विभिन्न मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार चंदन कुमार बताते हैं कि हमारे लोक परंपरा में 6 ऋतु हैं और 12 महीने हैं, विभिन्न मौसमों को जोड़ने के लिए ऋतु है. फगुआ जो शब्द है वह संस्कृत के शब्द फाल्गुन का अपभ्रंश है.
"हिंदू धर्म में 12 महीने विभिन्न नक्षत्र के नाम पर रखे गए हैं और फाल्गुन भी एक नक्षत्र है. फरवरी-मार्च के महीने में फाल्गुन का महीना शुरू होता है और जिस दिन फाल्गुन खत्म होता है और चैत महीने की शुरुआत होती है उसे दिन हम होली मनाते हैं."- चंदन कुमार ,वरिष्ठ पत्रकार
फगुआ में अश्लीलता की कोई जगह नहीं: हमारी परंपरा में हर मौसम और हर महीने को उत्साह से मनाने के लिए गीत बने हैं. गीत गाना खुशी का प्रतीक है और उत्साह में ही हम गीत गाते हैं. होली के समय भी हम फाल्गुन मास के विदा होने और चैत मास के आगमन के मौके पर फगुआ गाते हैं. फाग राग का उत्सव है और और होली का मतलब ही होता है एक दूसरे का हो लेना. हमारी परंपरा में कोई भी उत्सव हम करते हैं तो सबसे पहले भगवान को याद करते हैं और होली के समय जब हम फगुआ गाते हैं तो सबसे पहले भगवान को याद करते हैं.
फगुआ का धार्मिक महत्व: बाबा हरिहरनाथ सोनपुर में होली खेलते हैं तो कान्हा ब्रिज में और राम अयोध्या में खेलते हैं और इसे फगुआ गायन के माध्यम से वर्णित किया जाता है. फगुआ में हम मस्ती मजाक और चुहल करते हैं लेकिन अश्लीलता की कोई जगह नहीं होती. मस्ती-मजाक जहां तक आनंद देने लायक है स्वीकार किया जा रहा है वह सलिल है और जहां से ही किसी को बुरा लगने लगता है वह अश्लील हो जाता है.
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