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जातिगत गणना के पीछे सरकारी नौकरियों पर नजर? देश में कुल आबादी की महज 1 फीसदी जॉब - Govt Jobs In India

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 16, 2024, 2:02 PM IST

Craze For Govt Jobs: भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और प्राइवेट सेक्टर का विस्तार भी तेजी से हो रहा है, लेकिन कई पढ़े- लिखे युवा सरकारी नौकरी की चाहत में सालों-साल जुटे रहते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी को प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों से अधिक सुरक्षित मानते हैं.

भारत में सरकारी नौकरियां
भारत में सरकारी नौकरियां (Getty Images)

नई दिल्ली: भारत में जातिगत जनगणना की मांग काफी समय से हो रही है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि जाति के अनुसार जो डाटा उपलब्ध है, वह 90 साल पुराना है. इसी डाटा को जातियों के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार के रूप में लिया जाता है.

देश की आजादी के बाद साल 1951 की जनगणना में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की ही अलग से शेड्यूल बनाए गए और अंग्रेजों की जनगणना के तरीके में बदलाव हो गया. तब से जनगणना का यही स्वरूप चला आ रहा है.

संविधान लागू होते ही एससी/एसटी के लिए आरक्षण लागू हो गया था. इसके बाद पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की तरफ से भी आरक्षण की मांग उठने लगी थी. पिछड़े वर्ग की परिभाषा और विकास का स्वरूप तय करने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली सरकार ने साल 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया.

सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सिफारिश
इसके बाद साल 1978 में मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली जनता पार्टी सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग बनाया, जिसने दिसंबर 1980 में रिपोर्ट दी. हालांकि, तब जनता पार्टी की सरकार गिर चुकी थी. इसी मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर पिछड़ी जातियों की पहचान की थी और कुल आबादी में इनकी 52 फीसदी हिस्सेदारी मानी थी. इसी आयोग ने ओबीसी के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की.

यह ही वजह है कि बार-बार आरक्षण की मांग होती रहती है. आम लोगों का मानना है कि इस तरह कि जनगणना से उन समूहों की पहचान होती है, जो वंचित हैं और पहचान होने के बाद उन्हें नीति-निर्माण का हिस्सा बनाया जा सकता है. साथ ही वंचित और पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरी से आगे बढ़ने में मदद मिलती है.

बता दें कि भारत में लाखों लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए संघर्ष करते हैं. लोग हर हाल में कोई भी सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. भारतीय युवाओं में सरकारी नौकरी क्रेज कितना है. इस बात का अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि हाल में 60,000 यूपी पुलिस कांस्टेबल नौकरियों के लिए 48 लाख कैंडिडेट्स ने आवेदन किया था.

यानी सेलेक्शन रेशियो महज 1.25 फीसदी है. इसी तरह सेना के जवानों की भर्ती के लिए सेलेक्शन रेशियो 3 से 4 प्रतिशत है. वहीं, भारत में रोजगार पर ILO की 2024 की रिपोर्ट भी व्यापक रूप से रोजगार सृजन में संकट की ओर इशारा करती है.

प्राइवेट सेक्टर का विस्तार
बेशक भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और प्राइवेट सेक्टर का विस्तार भी तेजी से हो रहा है, लेकिन कई पढ़े- लिखे युवा सरकारी नौकरी की चाहत में सालों-साल जुटे रहते हैं. इसमें कुछ ही को सफलता मिलती है, बाकी को दूसरा विकल्प चुनना पड़ता है. हालांकि, वह इससे संतुष्ट नहीं हो पाते और सरकारी नौकरी पानी की कोशिश में लगे रहते हैं ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा आखिर क्यों हैं?

प्राइवेट जॉब को असुरक्षित मानते हैं लोग
भारत में ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी को प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों से अधिक सुरक्षित मानते हैं. इसके अलावा सरकार आजीवन सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ, पेंशन और घर जैसे सुविधा भी देती है, जो उन्हें प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में नहीं मिलती.

भारत में कितनी सरकारी नौकरियां?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में संगठित क्षेत्र (निजी + सरकारी) में 152 (15 करोड़ 20 लाख) मिलियन नौकरियां हैं. सरकारी (केंद्र + राज्य) नौकरियां 14 मिलियन (एक करोड़ 40 लाख) हैं. यानी भारत में हर 100 में से 2 ही नौकरियां सरकारी हैं. ऐसे में भारत में 100 में से सिर्फ 1.4 कामकाजी आयु के लोग ही सरकारी हो सकते हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं.

गैर-सरकारी नौकरियों की समस्या
मासिक वेतन और पेड लीव जैसे लाभों के साथ निजी क्षेत्र की नौकरियां दुर्लभ हैं. शहरों और कस्बों में भी, लगभग 50 प्रतिशत नौकरियां नियमित वेतन प्रदान करती हैं. इनमें से केवल 47 फीसदी पेड लीव के साथ नौकरियां प्रदान करती हैं. अधिकांश कम कौशल वाली निजी क्षेत्र की नौकरियां जॉब सिक्योरिटी भी प्रदान नहीं करती हैं.

इतना ही नहीं 430 मिलियन से अधिक असंगठित क्षेत्र की नौकरियों में काम करने की स्थितियां और भी बदतर हैं और सरकारी नौकरियों के आंकड़ों में अनपेड घरेलू काम और स्व-रोजगार को रोजगार के रूप में शामिल किया गया है, यह तर्कसंगत है कि इस तरह से काम करने वाले कई लोग नियमित नौकरी करना पसंद करेंगे.

सरकारी नौकरियों का आकर्षण
कम स्किल वाली नौकरी के लिए एंट्री लेवल का सरकारी वेतन 33,000 रुपये है (साथ ही HRA, DA, पेड लीव जैसे लाभ). कम कौशल वाली नौकरी के लिए एंट्री लेवल का निजी क्षेत्र का वेतन लगभग 10,000 रुपये है, अक्सर कोई लाभ नहीं होता. कम कौशल वाली सरकारी नौकरियां भी जॉब सिक्योरिटी प्रदान करती हैं.

2023 तक केंद्र सरकार के अंतर्गत नौकरियां
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के पास 2023 तक 40 लाख से ज़्यादा स्वीकृत पद थे, जिनमें 30 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं और 9.64 लाख से अधिक पद खाली थे. सरकार द्वारा संसद में दी जानकारी के मुताबिक सिविल सेवा क्षेत्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में 1,365 और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में 703 रिक्तियां थीं. इसके अलावा, भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में 1,042 और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में 301 रिक्तियां थीं.

वहीं, गृह मंत्रालय ने बताया था कि सीआरपीएफ, बीएसएफ और दिल्ली पुलिस सहित विभिन्न संगठनों में 1,14,245 पद रिक्त हैं. रिक्तियां विभिन्न समूहों में वितरित की गई हैं, जिनमें ग्रुप 'ए' में 3,075, ग्रुप 'बी' में 15,861 और ग्रुप 'सी' में 95,309 पद हैं. हालांकि, 2023 रेलवे में रिक्तियों की संख्या काफी अधिक थी. 1 जुलाई 2023 तक 2.63 लाख से अधिक पद रिक्त थे. इनमें से 53,178 पद परिचालन सुरक्षा श्रेणियों में थे.

यह भी पढ़ें- आयुष्मान भारत स्कीम के लाभ के लिए 70 साल के बुजुर्ग ऐसे करें अप्लाई, जानें स्टेप बाय स्टेप पूरा प्रोसेस

नई दिल्ली: भारत में जातिगत जनगणना की मांग काफी समय से हो रही है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि जाति के अनुसार जो डाटा उपलब्ध है, वह 90 साल पुराना है. इसी डाटा को जातियों के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार के रूप में लिया जाता है.

देश की आजादी के बाद साल 1951 की जनगणना में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की ही अलग से शेड्यूल बनाए गए और अंग्रेजों की जनगणना के तरीके में बदलाव हो गया. तब से जनगणना का यही स्वरूप चला आ रहा है.

संविधान लागू होते ही एससी/एसटी के लिए आरक्षण लागू हो गया था. इसके बाद पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की तरफ से भी आरक्षण की मांग उठने लगी थी. पिछड़े वर्ग की परिभाषा और विकास का स्वरूप तय करने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली सरकार ने साल 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया.

सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सिफारिश
इसके बाद साल 1978 में मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली जनता पार्टी सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग बनाया, जिसने दिसंबर 1980 में रिपोर्ट दी. हालांकि, तब जनता पार्टी की सरकार गिर चुकी थी. इसी मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर पिछड़ी जातियों की पहचान की थी और कुल आबादी में इनकी 52 फीसदी हिस्सेदारी मानी थी. इसी आयोग ने ओबीसी के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की.

यह ही वजह है कि बार-बार आरक्षण की मांग होती रहती है. आम लोगों का मानना है कि इस तरह कि जनगणना से उन समूहों की पहचान होती है, जो वंचित हैं और पहचान होने के बाद उन्हें नीति-निर्माण का हिस्सा बनाया जा सकता है. साथ ही वंचित और पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरी से आगे बढ़ने में मदद मिलती है.

बता दें कि भारत में लाखों लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए संघर्ष करते हैं. लोग हर हाल में कोई भी सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. भारतीय युवाओं में सरकारी नौकरी क्रेज कितना है. इस बात का अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि हाल में 60,000 यूपी पुलिस कांस्टेबल नौकरियों के लिए 48 लाख कैंडिडेट्स ने आवेदन किया था.

यानी सेलेक्शन रेशियो महज 1.25 फीसदी है. इसी तरह सेना के जवानों की भर्ती के लिए सेलेक्शन रेशियो 3 से 4 प्रतिशत है. वहीं, भारत में रोजगार पर ILO की 2024 की रिपोर्ट भी व्यापक रूप से रोजगार सृजन में संकट की ओर इशारा करती है.

प्राइवेट सेक्टर का विस्तार
बेशक भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और प्राइवेट सेक्टर का विस्तार भी तेजी से हो रहा है, लेकिन कई पढ़े- लिखे युवा सरकारी नौकरी की चाहत में सालों-साल जुटे रहते हैं. इसमें कुछ ही को सफलता मिलती है, बाकी को दूसरा विकल्प चुनना पड़ता है. हालांकि, वह इससे संतुष्ट नहीं हो पाते और सरकारी नौकरी पानी की कोशिश में लगे रहते हैं ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा आखिर क्यों हैं?

प्राइवेट जॉब को असुरक्षित मानते हैं लोग
भारत में ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी को प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों से अधिक सुरक्षित मानते हैं. इसके अलावा सरकार आजीवन सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ, पेंशन और घर जैसे सुविधा भी देती है, जो उन्हें प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में नहीं मिलती.

भारत में कितनी सरकारी नौकरियां?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में संगठित क्षेत्र (निजी + सरकारी) में 152 (15 करोड़ 20 लाख) मिलियन नौकरियां हैं. सरकारी (केंद्र + राज्य) नौकरियां 14 मिलियन (एक करोड़ 40 लाख) हैं. यानी भारत में हर 100 में से 2 ही नौकरियां सरकारी हैं. ऐसे में भारत में 100 में से सिर्फ 1.4 कामकाजी आयु के लोग ही सरकारी हो सकते हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं.

गैर-सरकारी नौकरियों की समस्या
मासिक वेतन और पेड लीव जैसे लाभों के साथ निजी क्षेत्र की नौकरियां दुर्लभ हैं. शहरों और कस्बों में भी, लगभग 50 प्रतिशत नौकरियां नियमित वेतन प्रदान करती हैं. इनमें से केवल 47 फीसदी पेड लीव के साथ नौकरियां प्रदान करती हैं. अधिकांश कम कौशल वाली निजी क्षेत्र की नौकरियां जॉब सिक्योरिटी भी प्रदान नहीं करती हैं.

इतना ही नहीं 430 मिलियन से अधिक असंगठित क्षेत्र की नौकरियों में काम करने की स्थितियां और भी बदतर हैं और सरकारी नौकरियों के आंकड़ों में अनपेड घरेलू काम और स्व-रोजगार को रोजगार के रूप में शामिल किया गया है, यह तर्कसंगत है कि इस तरह से काम करने वाले कई लोग नियमित नौकरी करना पसंद करेंगे.

सरकारी नौकरियों का आकर्षण
कम स्किल वाली नौकरी के लिए एंट्री लेवल का सरकारी वेतन 33,000 रुपये है (साथ ही HRA, DA, पेड लीव जैसे लाभ). कम कौशल वाली नौकरी के लिए एंट्री लेवल का निजी क्षेत्र का वेतन लगभग 10,000 रुपये है, अक्सर कोई लाभ नहीं होता. कम कौशल वाली सरकारी नौकरियां भी जॉब सिक्योरिटी प्रदान करती हैं.

2023 तक केंद्र सरकार के अंतर्गत नौकरियां
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के पास 2023 तक 40 लाख से ज़्यादा स्वीकृत पद थे, जिनमें 30 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं और 9.64 लाख से अधिक पद खाली थे. सरकार द्वारा संसद में दी जानकारी के मुताबिक सिविल सेवा क्षेत्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में 1,365 और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में 703 रिक्तियां थीं. इसके अलावा, भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में 1,042 और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में 301 रिक्तियां थीं.

वहीं, गृह मंत्रालय ने बताया था कि सीआरपीएफ, बीएसएफ और दिल्ली पुलिस सहित विभिन्न संगठनों में 1,14,245 पद रिक्त हैं. रिक्तियां विभिन्न समूहों में वितरित की गई हैं, जिनमें ग्रुप 'ए' में 3,075, ग्रुप 'बी' में 15,861 और ग्रुप 'सी' में 95,309 पद हैं. हालांकि, 2023 रेलवे में रिक्तियों की संख्या काफी अधिक थी. 1 जुलाई 2023 तक 2.63 लाख से अधिक पद रिक्त थे. इनमें से 53,178 पद परिचालन सुरक्षा श्रेणियों में थे.

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