ग्वालियर. देश के दिल मध्यप्रदेश में मौजूद है संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर. वैसे तो इस जगह को कला संस्कृति और संगीत के लिए पहचाना जाता है लेकिन पूरी दुनिया में यह ऐसी जगह है जिसकी इतिहास में एक बड़ी भूमिका है. क्योंकि इसी ग्वालियर शहर में पूरे विश्व के पहले शून्य का लिखित प्रमाण मिलता है. यह अभिलेख ग्वालियर के खूबसूरत और ऐतिहासिक दुर्ग में स्थित भगवान विष्णु के प्राचीन चतुरभुज मंदिर में मौजूद है. इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार राजा भोजदेव ने सन् 876 ई. में कराया था.
प्राचीन शिलालेख में दर्शाया गया है शून्य
बेहद खूबसूरत नक्काशी और मूर्ति शिल्प के नमूनों से सजा यह मंदिर अपने आप में कला का एक बेहतरीन उदाहरण है. यहां नृत्यरत गणेश, कार्तिकेय, पंचाग्निक पार्वती, नवग्रह, विष्णु त्रिवेंद्रम और अष्टदिकपालों का अंकन देखने को मिलता है. इसके साथ ही मंदिर के मुख मंडप के अंदरूनी भाग में कृष्ण लीलाओं के दृश्यों को उकेरा गया है. मंदिर के अंदर भगवान श्री हरि विष्णु की श्वेतांबर प्रतिमा है और इसी के ठीक पास एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसमें प्राचीन देवनागरी लिपि संस्कृत में जानकारी लिखी हुई है और इसी जानकारी में शून्य का वर्णन भी है .
अभिलेख में दो जगह लिखा है शून्य
पूर्व पुरातत्व अधिकारी व इतिहास विद लाल बहादुर सिंह सोमवंशी बताते हैं, '' इस शिलालेख में यह बताया गया है कि प्रतिदिन इस मंदिर के लिए 50 मालाएं दी जाती थीं और इसके एवज में पुजारी को 270 हाथ जमीन दी गई थी. इस तरह उसे शिलालेख में दो जगह शून्य के उपयोग के साथ दर्शाया गया है. पहले 50 की संख्या लिखने के लिए और दूसरा 270 में. यह पहली बार था जब कहीं शून्य का अभिलेख पहली बार प्रमाणित हुआ. अब इसे लोग जीरो मंदिर के नाम से भी जानने लगे हैं.''
दुनिया ने दी प्रथम शून्य अभिलेख को मान्यता
सोमवंशी कहते हैं, '' भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने विश्व को पहली बार शून्य से अवगत कराया था. इसके बाद 11वीं शताब्दी में यूरोप में काल गणना हुई लेकिन भारत ने जो शून्य दिया शून्य के साथ गणना हुई और इसकी मान्यता लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी दी है कि ग्वालियर किले के नीचे स्थित चतुर्भुज मंदिर में मौजूद शून्य का अभिलेख प्राचीनतम है और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी 1903 में अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है. इसलिए अब पूरी तरह से इसकी मान्यता भारत को मिल चुकी है.''
रिसर्च करने विदेशों से आते हैं गणितज्ञ
इतिहास की दृष्टि से यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. चतुर्भुज मंदिर में मौजूद शिलालेख पर शून्य का मिलना कई गणितज्ञों के लिए रिसर्च का विषय रहा है. इसीलिए समय-समय पर गणित के कई विद्वान यहां रिसर्च के लिए आते रहते हैं. बहरहाल इस मंदिर की महत्वता को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भी भली भांति जानता है. इस लिए यह मंदिर अब सिर्फ खास मौकों पर ही खोला जाता है.