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हाईकोर्ट का बड़ा आदेश, कम दहेज का ताना देना दंडात्मक अपराध नहीं - High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कम दहेज का ताना देना दंडात्मक अपराध नहीं है.

High Court
High Court (photo source: etv bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 22, 2024, 6:48 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी महिला को कम दहेज लाने के लिए ताना मारना कानून के तहत दंडनीय अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट आरोप से आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का अपराध गठित नहीं होता है जब तक की किसी के विरुद्ध विशिष्ट आरोप न लगाए गए हों. मात्र सामान्य प्रकृति के आरोप आपराधिक कार्यवाही चलने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि हर आरोपी द्वारा किए गए अपराध और उसमें उसकी भूमिका के बारे में विशिष्ट विवरण देना अनिवार्य है.

बदायूं के शब्बन खान और उनके तीन रिश्तेदारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम दी चौहान ने दिया है. कोर्ट ने पति शब्बन खान के अलावा उसके तीन रिश्तेदारों (दो बहनों और बहनोई) के खिलाफ चल रही दहेज उत्पीड़न की कार्रवाई को रद कर दिया है.

याचीगण के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए ,323, 506 और 3/4 दहेज उत्पीड़न अधिनियम के तहत बदायूं के बिलासी थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था. शब्बन की पत्नी का आरोप था कि विवाह के बाद उसके पति और उनके रिश्तेदार कम दहेज लाने पर उसका उत्पीड़न कर रहे हैं. उसके साथ मारपीट की गई और धमकी दी गई तथा दहेज की मांग पूरी न होने पर घर से निकलने के लिए धमकाया गया. इस मुकदमे के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या तीनों रिश्तेदारों पर लगाए गए आरोप इतने विशिष्ट हैं कि दहेज उत्पीड़न का केस चलाया जा सके तथा क्या कम दहेज का ताना देना आईपीसी की धारा 498 ए में दहेज उत्पीड़न के तहत क्रूरता की श्रेणी में आता है. अदालत ने कहा कि अस्पष्ट प्रकृति के आरोप, आरोपी के निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार को प्रभावित कर सकते हैं.

सिर्फ कानून की धारा में दी गई भाषा को वर्णित करने मात्र से आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई चलाने का पर्याप्त आधार नहीं होता है. हर आरोपी द्वारा किए गए अपराध और उसकी भूमिका के बारे में विशेष विवरण देना अनिवार्य है. कोर्ट ने कहा कि कानून दहेज की मांग को अपराध मांगता है मगर कम दहेज के लिए ताना मारना दंडात्मक अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. याचियो के विरुद्ध सामान्य और अस्पष्ट आरोप विवाह के बाद लगाए गए हैं. कोर्ट ने पति के अलावा अन्य तीनों आरोपियों के खिलाफ़ मुकदमें की कार्यवाही को रद्द कर दिया है.

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बदायूं के शब्बन खान और उनके तीन रिश्तेदारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम दी चौहान ने दिया है. कोर्ट ने पति शब्बन खान के अलावा उसके तीन रिश्तेदारों (दो बहनों और बहनोई) के खिलाफ चल रही दहेज उत्पीड़न की कार्रवाई को रद कर दिया है.

याचीगण के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए ,323, 506 और 3/4 दहेज उत्पीड़न अधिनियम के तहत बदायूं के बिलासी थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था. शब्बन की पत्नी का आरोप था कि विवाह के बाद उसके पति और उनके रिश्तेदार कम दहेज लाने पर उसका उत्पीड़न कर रहे हैं. उसके साथ मारपीट की गई और धमकी दी गई तथा दहेज की मांग पूरी न होने पर घर से निकलने के लिए धमकाया गया. इस मुकदमे के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या तीनों रिश्तेदारों पर लगाए गए आरोप इतने विशिष्ट हैं कि दहेज उत्पीड़न का केस चलाया जा सके तथा क्या कम दहेज का ताना देना आईपीसी की धारा 498 ए में दहेज उत्पीड़न के तहत क्रूरता की श्रेणी में आता है. अदालत ने कहा कि अस्पष्ट प्रकृति के आरोप, आरोपी के निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार को प्रभावित कर सकते हैं.

सिर्फ कानून की धारा में दी गई भाषा को वर्णित करने मात्र से आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई चलाने का पर्याप्त आधार नहीं होता है. हर आरोपी द्वारा किए गए अपराध और उसकी भूमिका के बारे में विशेष विवरण देना अनिवार्य है. कोर्ट ने कहा कि कानून दहेज की मांग को अपराध मांगता है मगर कम दहेज के लिए ताना मारना दंडात्मक अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. याचियो के विरुद्ध सामान्य और अस्पष्ट आरोप विवाह के बाद लगाए गए हैं. कोर्ट ने पति के अलावा अन्य तीनों आरोपियों के खिलाफ़ मुकदमें की कार्यवाही को रद्द कर दिया है.

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