पटना: बिहार में आरक्षण पर लगातार सियासत होता रहा है. 2015 विधानसभा चुनाव में आरक्षण बड़ा मुद्दा बना था, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर जो बयान दिया उसे लालू प्रसाद यादव भुना लिया था. जनता के बीच एक मैसेज देने की कोशिश की गयी कि आरएसएस और बीजेपी आरक्षण को समाप्त करने की कोशिश कर रही है. लालू प्रसाद यादव का प्रयास सफल रहा और महागठबंधन को बंपर सीट मिली.
जातीय गणना के बाद बढ़ी आरक्षण सीमाः लोकसभा चुनाव 2024 में भी आरक्षण समाप्त करने की बात कही जा रही थी, इस बार सफलता लालू प्रसाद यादव को नहीं मिली. लेकिन 2025 विधानसभा चुनाव में आरक्षण एक बार फिर से बड़ा मुद्दा हो सकता है. बिहार में नीतीश कुमार ने जातीय गणना के बाद आरक्षण की तय सीमा 50% से बढ़कर 65% कर दी थी. जातीय गणना में पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलितों की आबादी के आधार पर यह फैसला लिया गया था. इस तरह से बिहार में 75% आरक्षण लागू हो गया था.
बिहार में पुरानी आरक्षण व्यवस्था प्रभावीः इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया. सुनवाई के बाद पटना हाई कोर्ट ने 50% सीमा से बढ़े हुए आरक्षण को रद्द कर दिया. अब बिहार में पुरानी आरक्षण व्यवस्था ही लागू रहेगी. अब नीतीश सरकार के लिए क्या ऑप्शन है. संविधान विशेषज्ञ पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार कह रहे हैं कि सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का ही ऑप्शन है. पटना हाई कोर्ट में भी रिव्यू फाइल किया जा सकता है, लेकिन पटना हाई कोर्ट सुनेगा इसकी संभावना कम है.
"सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ही पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है और 50% से अधिक सीमा आरक्षण देने के फैसले को रद्द किया है. सुप्रीम कोर्ट में यह जब मामला जाएगा तो मराठा आरक्षण, गुजरात में पटेल आरक्षण सहित अन्य आरक्षण को लेकर जो फैसला दिया गया है उसे वहां देखा जाएगा."- आलोक कुमार, पटना हाई कोर्ट के एडवोकेट
नौंवी अनुसूची में शामिल करने पर क्या हो सकता हैः आरक्षण कानून को नौंवी अनुसूची में डाले जाने पर क्या लाभ मिल सकता है, इस पर आलोक कुमार का कहना है सभी स्थितियों में संविधान के अनुसार जो भी प्रावधान है सुप्रीम कोर्ट उसे देखेगा. ऐसा नहीं है कि नौंवी अनुसूची में डाल देने पर सुप्रीम कोर्ट में उसकी सुनवाई नहीं होगी. पटना हाई कोर्ट के एडवोकेट जिन्होंने आरक्षण के खिलाफ पिटीशन दायर किया था, दीनू कुमार का कहना है कि यह पॉलिटिकल फैसला है, सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी जाती है तो कोर्ट इसे इंटरटेन नहीं करेगा.
नौंवी अनुसूची में शामिल करने की क्यों हो रही है मांगः संविधान की नौंवी अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानून की एक सूची है, जिन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. इससे पहले संविधान संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया था पहले संशोधन में इस अनुसूची में कुल 13 कानून को जोड़ा गया था बाद के विभिन्न संशोधनों के बाद इस अनुसूची में संरक्षित कानून की संख्या 284 हो गई है. 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछडे़ वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित कर दी थी.
पटना हाई कोर्ट के फैसले का क्या आधार हैः आरक्षण बढ़ाये जाने की सीमा को पटना हाई कोर्ट ने दो आधार रद्द किया है. हाई कोर्ट का मानना है कि बिहार में सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. कुल 20 लाख 49370 सरकारी कर्मचारियों में पिछडे़ वर्ग के 14 लाख 4374 लोग नियुक्त हैं. कुल कर्मचारियों का 68.52% है. इसके अलावा कोर्ट का मानना है कि आरक्षण 50% से बढ़ाने के लिए कई मुद्दों को ध्यान में रखने की जरूरत है, लेकिन बिहार सरकार ने कोई गहन अध्ययन या विश्लेषण नहीं कराया है.
सरकार का क्या है तर्कः राज्य सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया की जातीय सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि एससी और एसटी सहित पिछडे़ वर्गों को और अधिक आरक्षण की जरूरत है. इन वर्गों के उत्थान के लिए कदम उठाना सरकार का दायित्व है. बिहार सरकार के तर्क को खारिज करते हुए आरक्षण को रद्द करते हुए पटना हाई कोर्ट ने कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए स्वतंत्र है.
कई राज्यों में आरक्षण की सीमा अलग-अलगः उत्तराखंड में 47% आरक्षण लागू है. बंगाल में 55% तो यूपी में 60% आरक्षण लागू है. लक्षद्वीप एकमात्र ऐसा केंद्र शासित प्रदेश है जहां एसटी वर्ग के लिए 100% आरक्षण की व्यवस्था है. इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 80% आरक्षण सिर्फ एसटी समुदाय के लिए लागू है. किसी अन्य को यहां आरक्षण नहीं है. मणिपुर में एससी को तीन प्रतिशत, एसटी को 34% और ओबीसी को 17 % आरक्षण यानी कुल 54% आरक्षण है. त्रिपुरा में सभी वर्गों को मिलाकर 60% आरक्षण की व्यवस्था है.
देश में सबसे अधिक सिक्किम में आरक्षण हैः पंजाब में एसटी वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं है यहां सबसे ज्यादा एसटी को 29%, ओबीसी को 12% और ईडब्ल्यूएस को 10% यानी 51% आरक्षण लागू है. देश में सबसे अधिक सिक्किम में 85 फीसदी आरक्षण लागू है. जिसमें 7% एससी, 18% एसटी, 40% ओबीसी और 20% अन्य समुदाय के लिए है. राजस्थान में 64% आरक्षण लागू है. तमिलनाडु में 69% आरक्षण लागू है और इसमें 50% ओबीसी के लिए है. सबसे कम उत्तराखंड में 47% आरक्षण लागू है, इसमें 19% एससी, चार प्रतिशत एसटी, 14% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए है.
क्या तमिलनाडु मॉडल काम आएगा? : दरअसल, पिछले 35 सालों से तमिलनाडु में लोगों को 69 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि 50 प्रतिशत से अधिक का आरक्षण कैसे में मिल रहा है? उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा से पारित इस मसले को केन्द्र के पास भेजा था. उस वक्त केन्द्र में नरसिंह राव की सरकार थी. उसने जयललिता सरकार के प्रस्ताव को संविधान की नौवीं अनुसूची में भेज दिया. ऐसे में संविधान की नौवीं अनुसीची में जिस कानून को रखा जाता है उसकी समीक्षा का अदिकार न्यायपालिका को नहीं है.
झारखंड और छत्तीसगढ़ में उठ रही मांगः छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर नवमी अनुसूची में नौकरियां और शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ाया गया आरक्षण के 76% कोट की अनुमति देने वाले दो संशोधन विधेयक को शामिल करने की मांग की. झारखंड सरकार ने भी राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 77 फ़ीसदी कर दिया था और उसे संविधान की नवमी अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी. बिहार सरकार की ओर से भी नीतीश कुमार ने केंद्र को पत्र लिखकर आरक्षण की सीमा 65% है बढ़ाने का जो कानून बना है उसे शामिल करने की मांग की थी.
तेजस्वी ने नीतीश और भाजपा पर साधा निशानाः बता दें कि बिहार में जब महागठबंधन की सरकार थी उस समय कैबिनेट से प्रस्ताव पास करा कर केंद्र सरकार को बिहार में आरक्षण की सीमा जो बढ़ाई गई है उसे नौंवी अनुसूची में डालने का आग्रह किया गया था. बाद में नीतीश कुमार वापस एनडीए में आ गए. अभी मामला तूल पकड़ रहा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा था "मैं सीएम नीतीश से कहना चाहता हूं कि आपने कई बार प्रधानमंत्री जी के पैर पकड़े हैं तो इस बार भी प्रधानमंत्री जी के पैर पकड़कर आरक्षण बढ़ाने के फैसले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डलवाइये ." बीजेपी को आरक्षण विरोधी बताया.
मुद्दा को भुनाने की कोशिश: पटना हाई कोर्ट की ओर से आरक्षण रद्द किए जाने के बाद इस पर सियासत भी शुरू हो गई है. अभी तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी तो आरजेडी मजबूती से ले जाएगी. ऐसे में 2025 विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनेगा. इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेंगे.