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हरियाणा चुनाव के लिए JJP, ASP में गठबंधन, जजपा 70, आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर लड़ेगी चुनाव, जानिए सियासी मायने - JJP ASP Alliance in Haryana

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Aug 27, 2024, 3:15 PM IST

Updated : Aug 27, 2024, 3:39 PM IST

Haryana Assembly Election: हरियाणा विधानसभा के चुनावी रण में बसपा और इनेलो के गठबंधन के बाद जेजेपी और आजाद समाज पार्टी का गठबंधन देखने को मिल रहा है. जननायक जनता पार्टी 70, जबकि आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. आखिर इस गठबंधन के क्या सियासी मायने हैं, आइए समझने की कोशिश करते हैं.

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हरियाणा चुनाव के लिए जेजेपी और एएसपी में गठबंधन (Etv Bharat)

चंडीगढ़/दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले विधायकों के पार्टी छोड़ने से कमजोर पड़ी जननायक जनता पार्टी अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष करती दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद से ही पार्टी हरियाणा में कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. वहीं अब पार्टी ने राजनीतिक हालत बदलने के लिए गठबंधन का सहारा ले लिया है. दिल्ली में जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम ) के नेता चंद्रशेखर आजाद ने जॉइंट प्रेस कांफ्रेंस करते हुए गठबंधन का ऐलान कर दिया है. जजपा जहां 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस दौरान उन्होंने कहा कि वे आगे भी किसानों की लड़ाई लड़ते रहेंगे. साथ ही युवाओं की आवाज़ को उठाने का काम करेंगे.

गठबंधन की राजनीति: जननायक जनता पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ चुनावी दंगल में उतरेगी. यानी जेजेपी की जाट वोट के साथ, दलित वोट बैंक का समीकरण साधते हुए आगे बढ़ने की तैयारी है. हालांकि इससे पहले विधानसभा चुनाव के लिए इंडियन नेशनल लोकदल और बीएसपी के बीच गठबंधन हो चुका है. हरियाणा के यह दोनों दल जाट वोट बैंक और यूपी के दोनों दल अनुसूचित जाति के वोट बैंक के सहारे अपनी राजनीति करते हैं. ऐसे में हरियाणा में जाट और अनुसूचित जाति के वोट बैंक पर इन सभी की नजर है.

जाट वोट बैंक पर नजर: हरियाणा की बात करें तो प्रदेश में जहां जाट वोट बैंक करीब 24 फीसदी है वहीं दलित वोट बैंक करीब 21 फीसदी है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से देखें तो अभी तक जाट वोट बैंक कांग्रेस के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. वहीं हरियाणा का जो जाट वोट बैंक पहले इनेलो के साथ दिखाई देता था, इनेलो में टूट के बाद 2019 में वो जेजेपी के साथ चला गया था. इस बार जाट वोट बैंक पर तीन पार्टियों कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी की खास नजर है. जिसमें अभी कांग्रेस आगे दिखाई दे रही है.

दलित वोट बैंक पर पकड़ की कोशिश: वहीं दलित वोट बैंक की बात करें तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस वोट बैंक का नुकसान उठाना पड़ा था. इसको देखते हुए बीजेपी ने बीते रविवार को ही कुरुक्षेत्र में दलित महासम्मेलन कर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश की. लेकिन इस वोट बैंक पर कांग्रेस की भी नजरें हैं. इनेलो और जेजेपी अलग - अलग अब बीएसपी और आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ गठबंधन कर दलित वोट बैंक को साधने में जुटी हैं.

क्या है राजनीतिक जानकारों की राय: ऐसे में अब सवाल यह है कि जाट और दलित वोट बैंक को साधने की सभी दलों की जो रणनीति बनी है, और जेजेपी का आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ जो गठबंधन हुआ है, उससे हरियाणा की सियासत में किसे फायदा और नुकसान होगा? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि "इस बार हरियाणा में किसी भी गठबंधन का असर होगा इसकी उम्मीद कम ही दिखाई देती है. वे मानते हैं कि इस बार प्रदेश में सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस में दिखाई दे रही है. इस बात का अंदाजा लोकसभा चुनाव के नतीजों से भी लग चुका है. जेजेपी और इनेलो, जाट और दलित वोट बैंक के सहारे हरियाणा में अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं. ऐसे में इन दोनों का ये गठबंधन प्रतीकात्मक से ज्यादा कुछ और दिखाई नहीं देता है".
कुछ ऐसा ही वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल भी मानते हैं. वे कहते हैं कि "वर्तमान स्थितियों में हरियाणा में कोई भी गठबंधन प्रभावी दिखाई नहीं देता है. भले ही मैदान में इस बार कई दल हों, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा. बाकी दल किसका नुकसान करेंगे, इसका सही आंकलन चुनावी नतीजे के बाद ही हो पाएगा. लेकिन वर्तमान में किसी भी गठबंधन का असर हरियाणा में दिखाई नहीं दे रहा है.

ये भी पढ़ें: हरियाणा बीजेपी में कितने सीएम उम्मीदवार? जानें चुनाव में पार्टी को कितना होगा फायदा या कितना नुकसान - Haryana Assembly Election 2024

ये भी पढ़ें: क्या रानियां सीट पर दादा-पोता होंगे आमने-सामने, जानिए क्या बोले इनेलो नेता अर्जुन चौटाला - INLD on Raniyan assembly seat

चंडीगढ़/दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले विधायकों के पार्टी छोड़ने से कमजोर पड़ी जननायक जनता पार्टी अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष करती दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद से ही पार्टी हरियाणा में कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. वहीं अब पार्टी ने राजनीतिक हालत बदलने के लिए गठबंधन का सहारा ले लिया है. दिल्ली में जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम ) के नेता चंद्रशेखर आजाद ने जॉइंट प्रेस कांफ्रेंस करते हुए गठबंधन का ऐलान कर दिया है. जजपा जहां 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस दौरान उन्होंने कहा कि वे आगे भी किसानों की लड़ाई लड़ते रहेंगे. साथ ही युवाओं की आवाज़ को उठाने का काम करेंगे.

गठबंधन की राजनीति: जननायक जनता पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ चुनावी दंगल में उतरेगी. यानी जेजेपी की जाट वोट के साथ, दलित वोट बैंक का समीकरण साधते हुए आगे बढ़ने की तैयारी है. हालांकि इससे पहले विधानसभा चुनाव के लिए इंडियन नेशनल लोकदल और बीएसपी के बीच गठबंधन हो चुका है. हरियाणा के यह दोनों दल जाट वोट बैंक और यूपी के दोनों दल अनुसूचित जाति के वोट बैंक के सहारे अपनी राजनीति करते हैं. ऐसे में हरियाणा में जाट और अनुसूचित जाति के वोट बैंक पर इन सभी की नजर है.

जाट वोट बैंक पर नजर: हरियाणा की बात करें तो प्रदेश में जहां जाट वोट बैंक करीब 24 फीसदी है वहीं दलित वोट बैंक करीब 21 फीसदी है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से देखें तो अभी तक जाट वोट बैंक कांग्रेस के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. वहीं हरियाणा का जो जाट वोट बैंक पहले इनेलो के साथ दिखाई देता था, इनेलो में टूट के बाद 2019 में वो जेजेपी के साथ चला गया था. इस बार जाट वोट बैंक पर तीन पार्टियों कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी की खास नजर है. जिसमें अभी कांग्रेस आगे दिखाई दे रही है.

दलित वोट बैंक पर पकड़ की कोशिश: वहीं दलित वोट बैंक की बात करें तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस वोट बैंक का नुकसान उठाना पड़ा था. इसको देखते हुए बीजेपी ने बीते रविवार को ही कुरुक्षेत्र में दलित महासम्मेलन कर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश की. लेकिन इस वोट बैंक पर कांग्रेस की भी नजरें हैं. इनेलो और जेजेपी अलग - अलग अब बीएसपी और आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ गठबंधन कर दलित वोट बैंक को साधने में जुटी हैं.

क्या है राजनीतिक जानकारों की राय: ऐसे में अब सवाल यह है कि जाट और दलित वोट बैंक को साधने की सभी दलों की जो रणनीति बनी है, और जेजेपी का आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के साथ जो गठबंधन हुआ है, उससे हरियाणा की सियासत में किसे फायदा और नुकसान होगा? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि "इस बार हरियाणा में किसी भी गठबंधन का असर होगा इसकी उम्मीद कम ही दिखाई देती है. वे मानते हैं कि इस बार प्रदेश में सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस में दिखाई दे रही है. इस बात का अंदाजा लोकसभा चुनाव के नतीजों से भी लग चुका है. जेजेपी और इनेलो, जाट और दलित वोट बैंक के सहारे हरियाणा में अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं. ऐसे में इन दोनों का ये गठबंधन प्रतीकात्मक से ज्यादा कुछ और दिखाई नहीं देता है".
कुछ ऐसा ही वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल भी मानते हैं. वे कहते हैं कि "वर्तमान स्थितियों में हरियाणा में कोई भी गठबंधन प्रभावी दिखाई नहीं देता है. भले ही मैदान में इस बार कई दल हों, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा. बाकी दल किसका नुकसान करेंगे, इसका सही आंकलन चुनावी नतीजे के बाद ही हो पाएगा. लेकिन वर्तमान में किसी भी गठबंधन का असर हरियाणा में दिखाई नहीं दे रहा है.

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Last Updated : Aug 27, 2024, 3:39 PM IST
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